सरकार ने लगाई हाई-डोज निमेसुलाइड दवाओं पर रोक, जानिए क्या है वजह और आम लोगों पर असर

यह आदेश ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 की धारा 26A के तहत जारी किया गया है. इस फैसले से साफ संकेत मिलता है कि सरकार अब दवाओं की सुरक्षा को लेकर कोई समझौता नहीं करना चाहती.

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निमेसुलाइड एक नॉन-स्टेरॉयडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग (NSAID) है.

दर्द और बुखार होने पर भारत में बड़ी संख्या में लोग सीधे पेनकिलर का सहारा लेते हैं. कई बार बिना डॉक्टर की सलाह के ही ऐसी दवाएं खा ली जाती हैं, जिनका शरीर पर गंभीर असर पड़ सकता है. इसी कड़ी में केंद्र सरकार ने जनहित में एक अहम और बड़ा फैसला लिया है, जो दवाओं की सुरक्षा से सीधे जुड़ा हुआ है. सरकार ने 100 मिलीग्राम से ज्यादा मात्रा वाली निमेसुलाइड की ओरल (खाने वाली) इमीडिएट-रिलीज दवाओं के निर्माण, बिक्री और वितरण पर तुरंत प्रभाव से रोक लगा दी है. यह आदेश ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 की धारा 26A के तहत जारी किया गया है. इस फैसले से साफ संकेत मिलता है कि सरकार अब दवाओं की सुरक्षा को लेकर कोई समझौता नहीं करना चाहती.

स्वास्थ्य मंत्रालय की अधिसूचना में कहा गया है कि इतनी ज्यादा मात्रा वाली निमेसुलाइड दवाओं का इस्तेमाल मानव स्वास्थ्य के लिए जोखिम भरा हो सकता है और बाजार में इसके ज्यादा सुरक्षित विकल्प पहले से उपलब्ध हैं. इसलिए जनहित में यह कड़ा कदम उठाया गया है.

क्या है निमेसुलाइड और क्यों है विवादों में? | What Is Nimesulide and Why Is It Controversial?

निमेसुलाइड एक नॉन-स्टेरॉयडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग (NSAID) है, जिसका इस्तेमाल दर्द, सूजन और बुखार के इलाज में किया जाता है. भारत में यह दवा लंबे समय से इस्तेमाल हो रही है, लेकिन दुनियाभर में इसके लिवर को नुकसान पहुंचाने वाले दुष्प्रभावों को लेकर चिंता जताई जाती रही है.

कई अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट्स और मेडिकल ऑब्जर्वेशन में यह बात सामने आई है कि हाई-डोज निमेसुलाइड से लिवर टॉक्सिसिटी, उल्टी, पेट दर्द और अन्य गंभीर साइड इफेक्ट्स का खतरा बढ़ सकता है. खासतौर पर अगर यह दवा लंबे समय तक या बिना डॉक्टर की निगरानी में ली जाए.

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सरकार ने यह फैसला क्यों लिया?

स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, 100 mg से ज्यादा निमेसुलाइड वाली इमीडिएट-रिलीज दवाओं से फायदे की तुलना में नुकसान का जोखिम ज्यादा है.

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इसके अलावा:

  • सुरक्षित विकल्प पहले से मौजूद हैं.
  • हाई-डोज दवाओं की जरूरत मेडिकल साइंस में सीमित है.
  • मरीजों की सुरक्षा सर्वोपरि है.

फैसला लेने से पहले सरकार ने ड्रग्स तकनीकी सलाहकार बोर्ड (DTAB) से सलाह ली. DTAB दवाओं की क्वालिटी और सुरक्षा पर सरकार को तकनीकी सलाह देने वाली सर्वोच्च संस्था है.

नाइमेसुलाइड को लेकर लंबे समय से चिंताएं जताई जाती रही हैं. साल 2011 में स्वास्थ्य मंत्रालय ने 12 साल से कम उम्र के बच्चों में नाइमेसुलाइड के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया था.

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इसके बाद जनवरी 2025 में सरकार ने पशुओं  के लिए नाइमेसुलाइड की सभी दवाओं के निर्माण, बिक्री और वितरण पर रोक लगा दी थी. बाजार से जुड़े आंकड़ों के अनुसार, भारत में नाइमेसुलाइड दवाओं का बाजार करीब 497 करोड़ रुपये का है और पिछले 12 महीनों में इसमें 11 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है. यह आंकड़े मार्केट रिसर्च फर्म फार्माट्रैक के हैं.

Photo Credit: iStock

प्रतिबंध के दायरे में क्या आएगा और क्या नहीं?

यह समझना जरूरी है कि यह प्रतिबंध हर तरह की निमेसुलाइड दवाओं पर नहीं है.

प्रतिबंध में शामिल:

  • 100 mg से ज्यादा निमेसुलाइड वाली ओरल दवाएं.
  • जो इमीडिएट-रिलीज यानी तुरंत असर करने वाली हैं.
  • इंसानों के इलाज के लिए बनाई गई दवाएं.

प्रतिबंध से बाहर:

  • कम मात्रा (लो-डोज) वाली निमेसुलाइड दवाएं.
  • अन्य सुरक्षित दर्द निवारक विकल्प.
  • डॉक्टर की सलाह से दी जाने वाली वैकल्पिक NSAIDs.

यानी मरीजों के इलाज में कोई रुकावट न आए, इसका भी ध्यान रखा गया है.

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दवा कंपनियों को क्या करना होगा?

अधिसूचना के मुताबिक:

  • जिन कंपनियों की हाई-डोज निमेसुलाइड दवाएं बाजार में हैं, उन्हें तुरंत उत्पादन बंद करना होगा.
  • बाजार में मौजूद प्रभावित बैचों को वापस मंगाना (रिकॉल) होगा.
  • इस आदेश का पालन पूरे देश में अनिवार्य होगा.

यह कदम दवाओं की निगरानी और रेगुलेशन को और सख्त बनाने की दिशा में माना जा रहा है.

फार्मा इंडस्ट्री पर क्या असर पड़ेगा?

विश्लेषकों का मानना है कि:

बड़ी फार्मा कंपनियों पर ज्यादा आर्थिक असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि कुल NSAID बिक्री में निमेसुलाइड का हिस्सा सीमित है. हालांकि, छोटी कंपनियां, जिनकी कमाई का बड़ा हिस्सा इस दवा पर निर्भर था, उन्हें नुकसान हो सकता है. लेकिन, सरकार का साफ संदेश है कि आर्थिक हितों से ज्यादा जरूरी लोगों की सेहत है.

पहले भी लग चुकी है कई दवाओं पर रोक:

यह पहली बार नहीं है जब सरकार ने धारा 26A का इस्तेमाल किया हो. इससे पहले भी कई खतरनाक दवाओं और फिक्स्ड-डोज कॉम्बिनेशन (FDCs) पर रोक लगाई जा चुकी है, ताकि लोगों को अनावश्यक और जोखिम भरी दवाओं से बचाया जा सके.

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दवाओं के कच्चे माल को लेकर सरकार की बड़ी तैयारी

सरकार ने यह भी बताया कि:

सितंबर 2025 तक पिछले साढ़े तीन साल में बल्क ड्रग पार्क योजना के तहत 4,763.34 करोड़ रुपये का निवेश किया गया. यह निवेश छह साल में तय 4,329.95 करोड़ रुपये के लक्ष्य से भी ज्यादा है.

इसके अलावा, बल्क ड्रग्स के लिए PLI योजना का कुल बजट 6,940 करोड़ रुपये है. इसका मकसद जरूरी दवाओं में इस्तेमाल होने वाले API (सक्रिय फार्मास्युटिकल घटक) की सप्लाई को मजबूत करना और किसी एक देश पर निर्भरता कम करना है.

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आम लोगों के लिए इस फैसले का क्या मतलब?

इस फैसले से आम जनता को यह संदेश मिलता है कि बिना डॉक्टर की सलाह के पेनकिलर लेना खतरनाक हो सकता है. हर तुरंत असर देने वाली दवा सुरक्षित नहीं होती. सरकार अब दवाओं की सुरक्षा को लेकर ज्यादा सतर्क है.

हाई-डोज निमेसुलाइड दवाओं पर प्रतिबंध एक जरूरी और समय पर लिया गया फैसला है। यह कदम दिखाता है कि सरकार अब इलाज से जुड़े जोखिमों को गंभीरता से ले रही है. आम लोगों के लिए सबक साफ है दवा चाहे कितनी ही आम क्यों न हो, उसे हल्के में न लें और हमेशा डॉक्टर की सलाह से ही इस्तेमाल करें. यही सुरक्षित और समझदारी भरा रास्ता है.

(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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