International FASD Day 2025: हर साल 9 सितंबर को 'अंतरराष्ट्रीय भ्रूण अल्कोहल सिंड्रोम दिवस' मनाया जाता है. यह तारीख साल के नौवें महीने का नौवां दिन होती है. यह दिवस संदेश देता है कि पूरे 9 महीने, गर्भावस्था के दौरान एक भी बूंद अल्कोहल नहीं लेना है. इस खास दिन नोएडा स्थित सीएचसी भंगेल की सीनियर मेडिकल ऑफिसर और प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. मीरा पाठक ने अल्कोहल से होने वाले गंभीर प्रभावों को लेकर बातचीत की.
डॉ. पाठक ने बताया, ''गर्भावस्था में अल्कोहल लेना बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं है, चाहे मात्रा कितनी भी कम क्यों न हो. प्रेग्नेंसी के दौरान अल्कोहल की कोई सेफ लिमिट नहीं होती. यहां तक कि एक घूंट अल्कोहल भी बच्चे की सेहत के लिए गंभीर खतरा बन सकती है. यही कारण है कि 9 सितंबर को दुनिया भर में यह जागरूकता फैलाने का प्रयास होता है कि जो महिलाएं गर्भवती हैं या बनने की योजना बना रही हैं, वे पूरी तरह अल्कोहल से दूर रहें.''
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उन्होंने कहा, ''जब कोई महिला अल्कोहल लेती है, तो वह अल्कोहल उसके शरीर से होते हुए प्लेसेंटा के जरिए सीधे भ्रूण तक पहुंच जाता है. भ्रूण का शरीर अभी विकसित हो रहा होता है और वह किसी भी तरह के जहरीले पदार्थ, खासकर अल्कोहल, से खुद को नहीं बचा सकता. ऐसे में बच्चे के शरीर, दिमाग और व्यवहार पर गंभीर असर पड़ सकता है. सबसे खतरनाक बात यह है कि अधिकतर प्रेग्नेंसी बिना किसी योजना के होती हैं. ऐसे में महिलाओं को पता ही नहीं होता कि वे गर्भवती हैं और वे आम दिनों की तरह सामाजिक तौर पर या आदतन अल्कोहल लेती रहती हैं. जब तक उन्हें गर्भावस्था का पता चलता है, तब तक भ्रूण अल्कोहल के संपर्क में आ चुका होता है और दुष्प्रभाव शुरू हो चुके होते हैं."
अल्कोहल के कारण भ्रूण पर पड़ने वाले प्रभावों का जिक्र करते हुए डॉ. पाठक ने आगे कहा, ''अल्कोहल गर्भ में बच्चे के शरीर में कई तरह की जन्मजात विकृतियां पैदा कर सकता है. बच्चे का जन्म समय से पहले हो सकता है, वजन सामान्य से काफी कम हो सकता है, उसका विकास धीमा पड़ सकता है, और गर्भपात की संभावना भी बढ़ सकती है. चेहरे की बनावट में भी असामान्यताएं देखी जाती हैं, जैसे ऊपरी होंठ पतला होना, नाक और होंठ के बीच की जगह, जिसे फिल्ट्रम कहते हैं, पूरी तरह से स्मूद हो जाना, और आंखों का आकार सामान्य से छोटा होना जैसी चीजें शामिल हैं. ये सब लक्षण फीटल अल्कोहल सिंड्रोम के संकेत होते हैं.''
उन्होंने बताया, ''सिर्फ शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक और व्यवहारिक समस्याएं भी ऐसे बच्चों में पाई जाती हैं, जैसे कमजोर याददाश्त, कम आईक्यू, पढ़ाई में दिक्कत, हाइपर-एक्टिविटी, नींद की समस्या, सामाजिक संपर्क की कमी और आत्मविश्वास की भारी कमी. ये सभी समस्याएं बच्चे के पूरे जीवन को प्रभावित करती हैं. इस सिंड्रोम का कोई इलाज नहीं है. इसका सिर्फ एक ही उपाय है 'बचाव' और बचाव का सबसे कारगर तरीका है कि जो महिलाएं प्रेग्नेंसी की योजना बना रही हैं, वे कम से कम तीन महीने पहले ही अल्कोहल का सेवन पूरी तरह बंद कर दें. इससे शरीर पूरी तरह से डिटॉक्स हो जाएगा और शिशु को सुरक्षित माहौल मिलेगा. गर्भावस्था का जैसे ही पता चले, तुरंत अल्कोहल से दूरी बना लेनी चाहिए.''
डॉ. मीरा पाठक ने साफ कहा, "गर्भावस्था में अल्कोहल की कोई भी मात्रा सुरक्षित नहीं है. यह एक मनगढ़ंत बात है कि थोड़ी-बहुत अल्कोहल से कोई फर्क नहीं पड़ता. असलियत यह है कि एक घूंट अल्कोहल भी जिंदगीभर के लिए बच्चे को नुकसान दे सकती है."
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