दिल्ली में सांसों का संकट, 3 साल में 2 लाख लोग पहुंचे सीधे इमरजेंसी, 30 हजार एडमिट, हवा बनी 'साइलेंट किलर'

Delhi Air Pollution: तीन सालों में सिर्फ इन 6 अस्पतालों में ही 2 लाख से ज्यादा सांस की दिक्कत के मामले सामने आए, जिनमें से 30 हजार से ज्यादा को अस्पताल में भर्ती करना पड़ा.यह आंकड़ा क्या बताता है, किन कारणों की वजह से यह समस्या इतनी बड़ी हो गई है और आखिर दिल्लीवासियों के लिए इसका क्या मतलब हो सकता है.

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Delhi Air Pollution: लगभग 15 प्रतिशत (30,420) मरीजों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा.

Respiratory Illness In Delhi: राजधानी दिल्ली को हर सर्दी मौसम में कभी धुंध, कभी स्मॉग और अक्सर खतरनाक वायु प्रदूषण जकड़ लेता है. सालों से राजधानी की हवा पर सवाल उठते रहे हैं, बच्चों की खांसी, बुज़ुर्गों की सांसों की तकलीफ, हार्ट, फेफड़े की बीमारियां, ये सब अक्सर प्रदूषण (Pollution) से जोड़कर देखा जाता रहा है. लेकिन, अब पहली बार सरकारी आंकड़ों के रूप में यह साफ आंकड़ा सामने आया है कि 2022 से 2024 के बीच दिल्ली के स्वास्थ्‍य ढांचे में कितनी भारी मांग पड़ी और हवा की बदत्तर गुणवत्ता और श्वसन बीमारियों (Respiratory Disease) के बीच कितनी गहरी कड़ी बन चुकी है.

हाल ही में, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) ने संसद में यह रिपोर्ट पेश की है कि राजधानी के 6 प्रमुख सरकारी अस्पतालों में 2022–2024 में 2,04,758 तीव्र श्वसन बीमारी (Acute Respiratory Illness - ARI) के मामले आपातकालीन (Emergency) विभागों में दर्ज हुए. इनमें से लगभग 15 प्रतिशत (30,420) मरीजों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा.

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दिल्ली में सांसों का संकट कितनी गंभीर?

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने जो आंकड़े पेश किए हैं, वे 6 प्रमुख सरकारी अस्पतालों, जैसे कि ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (AIIMS), सफदरजंग हॉस्पिटल, लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज (LHMC) ग्रुप, राम मनोहर लोहिया हॉस्पिटल (RML), नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ ट्यूबरक्लोसिस एंड रेस्पिरेटरी डिजीज (NITRD) और वल्लभ भाई पटेल चेस्ट इंस्टिट्यूट (VPCI) से जुड़े हैं.

2022 से 2024 तक के आंकड़े देखें:

वर्षआपातकालीन मामलेअस्पताल में भर्ती
202267,0549,874
202369,2939,727
202468,41110,819

इस डेटा का एक मतलब है 2024 में कुल आपातकालीन मामलों में हल्की गिरावट आई, लेकिन भर्ती मामलों (Hospitalisation) में बढ़ोत्तरी हुई. यानी, 2024 में उन मरीजों की संख्या ज्यादा थी, जिन्हें सांस की गंभीर समस्या के कारण अस्पताल में भरती करना पड़ा.   

कुल मिलाकर, तीन सालों में सिर्फ इन 6 अस्पतालों में ही 2 लाख से ज्यादा ARI मामले सामने आए, जिनमें से 30 हजार से ज्यादा को अस्पताल में भर्ती करना पड़ा. यह आंकड़ा राजधानी की जनसंख्या, मौसम, प्रदूषण और स्वास्थ्य-प्रणाली को मिलाकर कितनी पैनी चिंता दिखाता है, इसे बयां करता है.

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ये आंकड़े संसद में प्रस्तुत किए गए हैं:

ये आंकड़े स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा संसद में प्रस्तुत किए गए हैं.  हालांकि, रिपोर्ट में यह भी साफ किया गया है कि, वायरस/बीमारी केवल प्रदूषण की वजह से हुई है यह कहा नहीं जा सकता. स्वास्थ्य मंत्रालय ने माना है कि श्वसन रोगों के बढ़ने में वायु-प्रदूषण एक बड़ा ट्रिगर फैक्टर हो सकता है, लेकिन अन्य कई कारक भी इसके लिए जिम्मेदार हैं जैसे कि: खान-पान, वर्किंग कंडीशन्स, आर्थिक-सामाजिक स्थिति, पहले से गुलजार बीमारियां, मरीज की इम्यूनिटी, वंशानुगत स्वास्थ्य-इतिहास आदि.

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इसलिए, यह पूरी तरह से कहना कि सभी मामलों की वजह प्रदूषण है अभी संभव नहीं है. लेकिन, यह आंकड़ा प्रदूषण और स्वास्थ्य पर उसके असर की एक मजबूत चेतावनी जरूर है.

प्रदूषण और सांस की बीमारियों क्या रिश्ता है?

1. वायु गुणवत्ता और प्रदूषण

दिल्ली की हवा सालों से समस्या थी, सर्दियों में धुंध, जरूरत से ज्यादा वाहनों का धुआं, निर्माण-कार्य, पड़ोसी राज्यों में पराली जलाना और मौसम की वजह से धुएं व कण (PM2.5, PM10) अब राजधानी में ठहर जाते हैं. जब हवा में ये कण ज्यादा होते हैं, तो फेफड़ों में जमा होकर सांसों की तकलीफ, खांसी, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस व अन्य संक्रमण हो सकते हैं.

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कई अध्ययन जैसे कि इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) का ये संबंध दिखाते हैं कि जैसे-जैसे प्रदूषण बढ़ता है, आपातकालीन विभागों में श्वसन समस्या से जुड़ी भीड़ भी बढ़ती है.

2. मौसमी बदलाव: सर्दियां, धुंध, स्मॉग

सर्दी के महीने खासकर दिवाली के बाद दिल्ली में एयर क्वालिटी काफी गिर जाती है. धुंध और स्मॉग के कारण हवा में विषाक्त कण ज्यादा मात्रा में जमा होते हैं. ऐसे समय में जिन लोगों की इम्यूनिटी कमजोर होती है बच्चे, बूढ़े, फेफड़े या हार्ट पेशेंट्स उन पर खास असर पड़ता है. इस कारण अस्पतालों में भर्ती मामलों की संख्या बढ़ जाती है.   

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3. पुरानी बीमारियां, अस्थमा, COPD

वे लोग जो पहले से अस्थमा, COPD (क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज), कमजोर इम्यूनिटी या अन्य सांस-से जुड़ी बीमारियों से पीड़ित हैं उनके लिए प्रदूषण और बदलती एयर क्वालिटी जानलेवा हो सकती है. मामूली धुंध अथवा हवा-की खराबी भी उनकी स्थिति को गंभीर बना सकती है. कई डॉक्टर और मेडिकल एक्सपर्ट यह मानते हैं कि प्रदूषण, मौसमी संक्रमण और लाइफस्टाइल तीनों का कॉम्बिनेशन तीव्र श्वसन बीमारी (ARI) और अन्य श्वसन बीमारियों के लिए खतरनाक साबित हो रहा है.

हेल्थ सिस्टम पर असर: अस्पतालों और आम लोगों के लिए

जो आंकड़ा सामने आया है 2 लाख तीव्र श्वसन बीमारी (ARI) मामले, 30 हजार से ज्यादा भर्ती वह सिर्फ एक चेतावनी नहीं, बल्कि वास्तविक बोझ है.

पहले जब हवा खराब होती थी, लोग हल्के खांसी-ज़ुकाम या अस्थमा की शिकायत करते थे, लेकिन अब, जब अस्पताल पहुंचते हैं कई बार सांस फूलना, ऑक्सीजन लेवल गिर जाना, संक्रमण या निमोनिया जैसी गंभीर हालत होती है. 2024 में भर्ती की संख्या बढ़ना इस गंभीरता को दर्शाता है.

इससे स्वास्थ्य-सेवा संसाधनों पर दबाव बढ़ गया है, अस्पतालों के इमरजेंसी डिपार्टमेंट, बेड, वेंटिलेशन, ऑक्सीजन आदि की मांग बढ़ गई है. खासतौर से सर्दियों में जब वायु-गुणवत्ता गिरती है, अस्पतालों में नामित स्मॉग-सिजन के लिए तैयारी करनी पड़ती है.

आम लोगों के लिए खासकर वे जिनकी इम्यूनिटी कमजोर है, यह स्थिति संकेत है कि उन्हें प्रदूषण के समय ज्यादा सतर्क रहना चाहिए. मास्क पहनना, जरूरत न हो तो बाहर कम निकलना, धुएं वाले इलाकों से बचना आदि यह नए युग की जरूरत बन चुकी है.

लेकिन क्या प्रदूषण ही अकेली वजह है?

स्वास्थ्य मंत्रालय ने खुद कहा है कि हां, वायु-प्रदूषण एक ट्रिगर फैक्टर है. लेकिन, साथ में यह भी कहा कि श्वसन रोगों पर असर डालने वाले अन्य बहुत से कारक भी हैं खान-पान, लाइफस्टाइल, काम करने की स्थिति, रोगी की आयु, पहले की बीमारियां, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, जन सुविधा आदि. 

मतलब यह कि हर श्वसन रोगी का मामला अलग हो सकता है, कुछ तो प्रदूषण की वजह से, कुछ अन्य वजहों (जैसे स्टाइल, जॉब, धुआं, धूल, कमजोर इम्यूनिटी) से.

यही वजह है कि स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्पष्ट रूप से कहा है कि सीधे प्रदूषण की वजह से मृत्यु/बीमारी का डेटा अभी उपलब्ध नहीं है. लेकिन, ट्रिगर फैक्टर के रूप में प्रदूषण का असर जिस तरह के हालात हमने देखे बहुत बड़ा और खतरनाक है.

दिल्ली के लिए यह संदेश क्या है?

यह आंकड़ा और उसके पीछे का कारण, हमें दिखाता है कि दिल्ली में सुधार की कितनी जरूरत है. यह सिर्फ एक स्वास्थ्य समस्या नहीं, बल्कि शहर की लाइफस्टाइल, पर्यावरण, प्रशासन, सार्वजनिक जागरूकता सबको जोड़ने वाला मुद्दा है.

  • हवा की क्वालिटी सुधारने के लिए जरूरी है कि वैकल्पिक ऊर्जा, गाड़ियों पर कंट्रोल, निर्माण-धूल पर रोक, पराली जलाने पर पाबंदी, ग्रीन एरिया (पेड़, पार्क) बढ़ाने जैसे कदम लिए जाएं.
  • अस्पतालों और स्वास्थ्य-प्रणाली को स्मॉग-सीजन को ध्यान में रखकर बेहतर तरीके से तैयार करना चाहिए, ज्यादा बेड, बेहतर वेंटिलेशन, इमरजेंसी सेवाएं, सार्वजनिक जानकारियां और आम लोगों को सचेत करना.
  • आम लोगों को कोशिश करनी चाहिए कि वे प्रदूषण वाले दिनों में बाहर निकलने से बचें, मास्क पहनें, घर में हवा को शुद्ध रखने की कोशिश करें और अगर सांस की परेशानी, खांसी या अस्थमा हो, तो सही समय पर डॉक्टर से संपर्क करें.

दिल्ली की सांसों की लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई

2022–2024 के तीन सालों में 2 लाख से ज्यादा तीव्र श्वसन बीमारी के मामले और 30 हजार से ज्यादा अस्पताल भर्ती यह संख्या सिर्फ आंकड़ा नहीं है, बल्कि दिल्लीवासियों के लिए एक चेतावनी है. यह दिखाती है कि प्रदूषण सिर्फ मौसम की समस्या नहीं, यह स्वास्थ्य, जीवन, बचपन, बूढ़े लोगों की सुरक्षा सब पर असर डालने वाली गंभीर समस्या है.

स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्वीकार किया है कि यह सिर्फ प्रदूषण ही नहीं, बल्कि कई कारकों का संयुक्त असर है. लेकिन, यह भी माना है कि हवा, लाइफस्टाइल और सामाजिक व्यवस्था तीनों को बदलना होगा.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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