CSE की रिपोर्ट में खुलासा! मां के गर्भ से ही बच्चों पर प्रदूषण का हमला...इन बीमारियों का मंडरा रहा है खतरा

प्रदूषण का असर सिर्फ जन्म तक सीमित नहीं रहता. ये बच्चों पर जिंदगी भर बीमारियों का बोझ डालता है. CSE की रिपोर्ट बताती है कि गर्भ में प्रदूषण का सामना करने वाले बच्चे बाद में कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का शिकार होते हैं.

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जब एक गर्भवती मां प्रदूषित हवा में सांस लेती है, तो हवा में मौजूद छोटे, ज़हरीले कण (धूल और धुआं) उसके शरीर से होते हुए बच्चे तक पहुंच जाते हैं.

Air pollution impact unborn children india cse report : सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की एक रिपोर्ट ने आंखें खोल देने वाली चेतावनी दी है, जिसके मुताबिक, वायु प्रदूषण मां के गर्भ से ही बच्चे के स्वास्थ्य को खतरे में डाल रहा है. जब एक गर्भवती मां प्रदूषित हवा में सांस लेती है, तो हवा में मौजूद छोटे, जहरीले कण (धूल और धुआं) उसके शरीर से होते हुए बच्चे तक पहुंच जाते हैं. विज्ञान साफ कहता है कि इन कणों की वजह से मां के फेफड़े प्रभावित होते हैं. इसका सीधा मतलब है कि बच्चे को सही मात्रा में ऑक्सीजन और जरूरी पोषक तत्व नहीं मिल पाते.

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इसका नतीजा बेहद खतरनाक होता है. मुख्य रूप से तीन बड़ी समस्याएं सामने आती हैं-

  • बच्चा गर्भ (Stillbirth) में ही दम तोड़ देता है.
  • बच्चा समय से पहले पैदा (Preterm Birth) हो जाता है, जो बहुत कमजोर होता है.
  • बच्चा छोटा और कमजोर पैदा (Low Birth Weight) होता है, जिससे वह बीमारियों से ठीक से लड़ नहीं पाता.

जीवन भर का बोझ

प्रदूषण का असर सिर्फ जन्म तक सीमित नहीं रहता. ये बच्चों पर जिंदगी भर बीमारियों का बोझ डालता है. CSE की रिपोर्ट बताती है कि गर्भ में प्रदूषण का सामना करने वाले बच्चे बाद में कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का शिकार होते हैं.

फेफड़े कमजोर

बच्चों के फेफड़े ठीक से विकसित नहीं हो पाते, जिससे आगे चलकर सांस की बीमारियां होती हैं.

दिमाग का विकास रुकना

सबसे चिंताजनक बात यह है कि प्रदूषण बच्चे के दिमागी विकास को रोक देता है. इससे बच्चों में ध्यान की कमी (ADHD) और कम बुद्धिमत्ता (Low IQ) जैसी समस्याएं पैदा होती हैं.

डायबिटीज और मोटापा

ये बच्चों में हार्मोन और पाचन संबंधी बीमारियां (जैसे डायबिटीज) भी पैदा करता है, जो बड़े होने पर भी पीछा नहीं छोड़तीं.
5 से कम उम्र के बच्चों पर तो इसका असर और भी गहरा होता है, क्योंकि उनके फेफड़े और शरीर के बाकी अंग अभी बन ही रहे होते हैं.

अगर हम भारत की बात करें, तो स्थिति बेहद गंभीर है. रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के एक-चौथाई (25%) नवजात शिशु पहले महीने में ही मर जाते हैं, और इसका सबसे बड़ा कारण प्रदूषण है, जिसकी शुरुआत गर्भ से ही हो जाती है. हम 'ग्लोबल साउथ' (विकासशील देश) में रहते हैं, जहां गाड़ियों, उद्योगों और जलावन के धुएं ने हवा को जहरीला बना दिया है.गरीब परिवारो ंके लिए ज्यादा बड़ा खतरा

गरीब परिवारों के लिए यह खतरा दोगुना है. उनके पास न अच्छा इलाज होता है, न ही साफ हवा या पानी. उनके बच्चे अक्सर खुली, प्रदूषित हवा में खेलते हैं, जिससे उनका नुकसान बढ़ जाता है.

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क्या करें?

वैज्ञानिकों और सरकारों ने साफ चेतावनी दी है कि यह एक महामारी जैसा संकट है. हमें अब सिर्फ वयस्कों को बचाने के बारे में नहीं सोचना है, बल्कि उन बच्चों के लिए भी लड़ना है जो अभी दुनिया में आए भी नहीं हैं.

ऐसे में हमें साफ हवा के लिए बड़े कदम उठाने होंगे, क्योंकि यह सिर्फ सांस की बीमारी नहीं, बल्कि हमारे बच्चों के भविष्य, उनके दिमाग और उनकी पूरी जिंदगी का सवाल है.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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