Heart Attack आने पर CPR देकर बच्चों समेत कोई भी बचा सकता है जिंदगी, ऑस्ट्रेलियाई बच्चे सीख रहे लाइफ सपोर्ट प्रोसेस

बुनियादी लाइफ सपोर्ट में कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (सीपीआर) और अगर जरूरी हो तो पोर्टेबल डीफाइब्रिलेटर (एईडी) का उपयोग करना शामिल है. इमरजेंसी में इस्तेमाल की जाने वाली इन प्रक्रियाओं का मकसद दिल का दौरा पड़ने की स्थिति में लोगों की जान बचाना है.

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CPR: कई ऑस्ट्रेलियाई बच्चे सीख रहे हैं कि वे ऐसी स्थिति में किस प्रकार मदद कर सकते हैं.

मेलबर्न: ऑस्ट्रेलिया में हर साल दिल का दौरा पड़ने के 26,000 से अधिक मामले सामने आ रहे हैं और इनमें से अधिकतर मामलों में लोगों को घर पर ही यह समस्या हुई. ऐसे में कई ऑस्ट्रेलियाई बच्चे सीख रहे हैं कि वे ऐसी स्थिति में किस प्रकार मदद कर सकते हैं, लेकिन बच्चे क्यों? जवाब आसान है. जीवन बचाना हर कोई सीख सकता है.

बुनियादी लाइफ सपोर्ट में कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (सीपीआर) और अगर जरूरी हो तो पोर्टेबल डीफाइब्रिलेटर (एईडी) का उपयोग करना शामिल है. इमरजेंसी में इस्तेमाल की जाने वाली इन प्रक्रियाओं का मकसद दिल का दौरा पड़ने की स्थिति में लोगों की जान बचाना है.

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दिल का दौरा कब पड़ता है? | When Does A Heart Attack Happen?

धड़कन रुक जाने पर दिल का दौरा पड़ता है, यानी हार्ट पंप की तरह काम करना बंद देता है, जिसके कारण ऑक्सीजन दिमाग तक नहीं पहुंच पाती और ऐसा होने पर व्यक्ति बेहोश हो जाता है और उसकी सांस रुक जाती है. तत्काल सीपीआर नहीं मिलने पर व्यक्ति की मौत हो सकती है.

सीपीआर के दौरान सीने पर दबाव डाला जाता है, यह हृदय में पंप की तरह काम करता है और पूरे शरीर, विशेष रूप से दिमाग में ब्लड और ऑक्सीजन पहुंचाने में मदद करता है. एईडी व्यक्ति के हृदय की गति का विश्लेषण करके जरूरत पड़ने पर बिजली के झटके देने का काम करता है, ताकि धड़कन सामान्य हो सके. एईडी को जनता के उपयोग के लिए बनाया गया है.

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कोई भी सीख सकता है:

कोई भी व्यक्ति ये जीवन रक्षक प्रक्रियाएं सीख सकता है और इन प्रक्रियाओं का इस्तेमाल जितनी जल्दी किया जाए, व्यक्ति की जान बचने की संभावना उतनी ही अधिक होती हैं.

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‘ऑस्ट्रेलियन रिससिटेशन काउंसिल' का मानना है कि स्कूल में बेसिक लाइफ सपोर्ट प्रोसेस, सीपीआर और एईडी का इस्तेमाल सिखाना इसके लिए ट्रेंड करने का सर्वश्रेष्ठ तरीका है.

मौजूदा ऑस्ट्रेलियाई सिलेबस बेसिक लाइफ सपोर्ट एजुकेशन को सपोर्ट देता है. कुछ स्कूल में ‘रेड क्रॉस' जैसे संगठन छात्रों एवं शिक्षकों को ट्रेंड करने आते हैं.

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काउंसिल स्कूल में हर साल दो घंटे ट्रेनिंग अनिवार्य करने के लिए फेडरल गर्वमेंट से अनुरोध कर रही है.

सीपीआर सीखने के लिए कितनी आयु को बहुत कम माना जाए?

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 12 साल की उम्र से हर साल बच्चों को दो घंटे सीपीआर सिखाने का सपोर्ट किया है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि इससे छोटे बच्चों को यह नहीं सिखाया जाना चाहिए कि आपात स्थिति से उन्हें कैसे निपटना है.

चार साल से कम उम्र के बच्चों को सिखाया जा सकता है कि, किसी आपात स्थिति को कैसे पहचाना जाए और एम्बुलेंस को कैसे फोन किया जाए.

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हम माता-पिता को प्रोत्साहित करते हैं कि वे बच्चों को स्कूल में बेसिक लाइफ सपोर्ट ट्रेनिंग देने की वकालत करें और ऑनलाइन वीडियो की मदद से सामान्य सीपीआर खुद अपने बच्चों को सिखाएं. ऐसा करने से किसी की जान बचाई जा सकती है. कुछ न करने से कोशिश करना बेहतर है.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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