हार्मोनल में गड़बड़ी की वजह से भी होती है एंजाइटी, डाइट के साथ सप्लीमेंट लेना भी जरूरी

प्रोजेस्टेरोन एक ऐसा हार्मोन है जो महिलाओं के पीरियड साइकिल में अहम रोल निभाता है. ये हार्मोन नींद, मूड और दिमाग की शांति को बैलेंस में रखने में मदद करता है.

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प्रोजेस्टेरोन एक ऐसा हार्मोन है जो महिलाओं के पीरियड साइकिल में अहम रोल निभाता है.

मेंटल हेल्थ को लेकर जागरूकता पिछले कुछ सालों में जरूर बढ़ी है, लेकिन आज भी जब किसी को बार-बार चिंता या घबराहट होती है, तो ज्यादातर लोग इसे सिर्फ ‘मेंटल हेल्थ इश्यू' ही मानते हैं. अब इस पर सोशल मीडिया पर भी खुलकर बात होने लगी है. इंस्टाग्राम पर वायरल हो रही एक पोस्ट ने इस मुद्दे पर एक अहम सवाल उठाया है. इस पोस्ट में लिखा है - “What if your anxiety isn't just mental… but it has to do with something no one talks about: Progesterone” (यानी क्या हो अगर आपकी एंग्जायटी का कारण सिर्फ दिमाग न होकर एक ऐसा हार्मोन हो, जिसके बारे में शायद ही कोई बात करता हो: प्रोजेस्टेरोन.)

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प्रोजेस्टेरोन की कमी और बदलता मूड (Relationship Between Low Progesterone And Mood Swings)

प्रोजेस्टेरोन एक ऐसा हार्मोन है जो महिलाओं के पीरियड साइकिल में अहम रोल निभाता है. ये हार्मोन नींद, मूड और दिमाग की शांति को बैलेंस में रखने में मदद करता है. अगर किसी महिला के शरीर में प्रोजेस्टेरोन का लेवल कम हो जाए, तो उसे घबराहट, चिड़चिड़ापन या अंदरूनी बेचैनी जैसी फीलिंग्स हो सकती हैं. दिक्कत ये है कि इन लक्षणों को अक्सर सीधे मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम मान लिया जाता है, जबकि असली वजह शरीर के अंदर चल रहा हार्मोनल इंबैलेंस हो सकता है.

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शरीर के हार्मोन एक-दूसरे से जुड़े होते हैं?

शरीर में कोई भी हार्मोन अकेले काम नहीं करता. सब आपस में जुड़े होते हैं और एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं. जैसे अगर आप बहुत देर तक कुछ नहीं खाते या अचानक ज्यादा मीठा खा लेते हैं, तो इससे ब्लड शुगर लेवल तेजी से ऊपर-नीचे होता है. इस उतार-चढ़ाव से कोर्टिसोल नाम का स्ट्रेस हार्मोन एक्टिव हो जाता है. और जब कोर्टिसोल बढ़ता है, तो वो प्रोजेस्टेरोन को दबाने लगता है. इसलिए अगर आप खाना मिस कर रहे हैं, नींद ठीक नहीं ले रहे या रोज़ का रूटीन डिस्टर्ब है, तो आपकी एंग्जायटी का कारण सिर्फ सोच या भावनात्मक तनाव नहीं, बल्कि शरीर के अंदर की केमिकल रिएक्शन भी हो सकती है.

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सिर्फ डाइट या सप्लीमेंट लेना काफी नहीं

हेल्दी रहने का मतलब सिर्फ हेल्दी खाना या सप्लीमेंट लेना नहीं है. आपकी रोजाना की लाइफस्टाइल, जैसे सूरज की रोशनी मिल रही है या नहीं, स्क्रीन टाइम कितना है, नींद कैसी है, और नर्वस सिस्टम कैसा रिस्पॉन्ड कर रहा है, ये सब भी आपकी बॉडी को बैलेंस करने में अहम रोल निभाते हैं. इसलिए अगर शरीर में कोई गड़बड़ है, तो सिर्फ खानपान पर ध्यान देना काफी नहीं है. पूरी लाइफस्टाइल को एक साथ देखना जरूरी है.

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महिलाओं को अपने हार्मोन को समझना क्यों जरूरी है?

महिलाओं का शरीर सिर्फ सर्कैडियन रिदम यानी 24 घंटे के साइकल पर नहीं चलता. उनके शरीर में इनफ्रेडियन रिदम भी होता है जो हर महीने चलता है. इस साइकल में हर हफ्ते हार्मोन चेंज होते रहते हैं और इसका असर सीधे मूड, एनर्जी, भूख, नींद और दिमाग की हालत पर पड़ता है. अगर कोई महिला अपने ओव्यूलेशन को ट्रैक करना शुरू करे और समझे कि उसकी बॉडी किस फेज़ में है, तो वो ना सिर्फ अपने शरीर को बेहतर समझ पाएगी बल्कि अपनी मेंटल हेल्थ को भी एक नए नजरिए से देख पाएगी.

ट्रीटमेंट की सोच भी बदलनी होगी

महिलाओं की मेंटल हेल्थ की जांच करते वक्त उनके हार्मोन की भी जांच की जानी चाहिए. बार-बार थकावट, घबराहट, मूड में उतार-चढ़ाव या ध्यान न लगने जैसी प्रॉब्लम्स को सिर्फ मन से जुड़ा हुआ मसला मान लेना सही नहीं है. अगर सही समय पर डायग्नोसिस हो जाए और ट्रीटमेंट हार्मोन बैलेंस को ध्यान में रखकर किया जाए, तो एंग्ज़ायटी जैसी हालत को लंबे वक्त तक कंट्रोल में रखा जा सकता है.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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