'उस रात से मैं कभी सो नहीं पाया' प्लेन क्रैश में इकलौते बचे रमेश इस बीमारी के हो गए शिकार, सुनकर कांप उठेगा दिल

Ahmedabad Plane Crash Survivor Story: प्लेन क्रैश में इकलौते बचे रमेश PTSD और सर्वाइवर गिल्ट जैसी गंभीर मानसिक बीमारियों से जूझ रहे हैं, जो हादसे के बाद उनके जीवन को पूरी तरह बदल चुकी हैं.

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प्लेन क्रेश में रमेश का बचना एक चमत्कार नहीं, बल्कि उनके लिए सजा बन गया है.

Ahmedabad Air Crash 2025 Survivor: 12 जून 2025 को अहमदाबाद में हुए एयर इंडिया प्लेन हादसे में 241 लोगों की मौत हो गई थी. इस भयावह दुर्घटना में केवल एक व्यक्ति, विश्वास कुमार रमेश जीवित बचे. यह घटना जितनी चौंकाने वाली थी, उतनी ही भावनात्मक रूप से तोड़ देने वाली भी. रमेश को लोग “सबसे भाग्यशाली इंसान” कहते हैं, लेकिन उनके लिए यह बचाव एक चमत्कार नहीं, बल्कि सजा बन गया है. रमेश ने खुद कहा, “मैं उसी पल में फंसा हुआ हूं.” उनका शरीर तो बच गया, लेकिन मन उस हादसे में ही अटका रह गया. वे आज भी उस दिन की चीखें, आग की लपटें और अपनों को खोने का दर्द भूल नहीं पाए हैं.

PTSD को हो गए शिकार, हादसे के बाद की मानसिक जंग

रमेश जिस बीमारी से जूझ रहे हैं, उसे कहते हैं PTSD (Post-Traumatic Stress Disorder). यह एक मानसिक स्थिति है जो किसी गंभीर हादसे, युद्ध, या इमोशनल ट्रॉमा के बाद होती है.

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PTSD के लक्षण | Symptoms of PTSD

  • बार-बार हादसे की यादें आना.
  • नींद न आना या डरावने सपने आना.
  • अचानक गुस्सा या बेचैनी महसूस करना.
  • लोगों से दूरी बनाना, अकेलापन पसंद करना.
  • हादसे से जुड़ी चीजों से डरना या बचना.

रमेश के मामले में वे अपने परिवार से बात नहीं करते, पत्नी और बेटे से दूरी बना ली है. उनकी मां दरवाजे पर बैठी रहती हैं, लेकिन रमेश खुद को उस पल से बाहर नहीं निकाल पा रहे.

मैं ही क्यों बचा? सर्वाइवर गिल्ट में हैं रमेश

PTSD के साथ-साथ रमेश को सर्वाइवर गिल्ट भी है. यानी उस हादसे में बच जाने का अपराधबोध. उन्हें लगता है कि जब सब मारे गए, तो वे क्यों बच गए? यह सोच उन्हें अंदर ही अंदर खा रही है.

वे अपने भाई को उस हादसे में खो चुके हैं और अब उन्हें लगता है कि उनका जीवित रहना एक बोझ है. यह भावना उन्हें और ज्यादा अकेला और मानसिक रूप से कमजोर बना रही है.

इलाज और सहारे की जरूरत

PTSD और सर्वाइवर गिल्ट का इलाज संभव है, लेकिन इसके लिए समय, प्रोफेशनल हेल्प और परिवार का साथ जरूरी होता है. मनोचिकित्सक की मदद से रमेश जैसे लोग धीरे-धीरे उस दर्द से बाहर आ सकते हैं.

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इलाज के विकल्प क्या हैं?

  • काउंसलिंग और थेरेपी
  • मेडिटेशन और माइंडफुलनेस
  • परिवार और दोस्तों का भावनात्मक सहारा
  • दवाओं के माध्यम से मानसिक संतुलन

बचना ही सब कुछ नहीं होता

रमेश की कहानी हमें यह सिखाती है कि किसी हादसे से बचना ही जीवन की जीत नहीं होती. असली लड़ाई तो उसके बाद शुरू होती है, मन की लड़ाई, भावनाओं की लड़ाई और खुद को फिर से जीने की कोशिश.

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हमें ऐसे लोगों को समझना चाहिए, उन्हें अकेला नहीं छोड़ना चाहिए. क्योंकि, कभी-कभी सबसे भाग्यशाली दिखने वाला इंसान अंदर से सबसे ज्यादा टूटा होता है.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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