गुजरात में 1 और 5 दिसंबर को दो चरणों में मतदान होगा. नतीजे 8 दिसंबर को आएंगे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्थायी प्रभाव से लेकर महंगाई और बेरोजगारी पर असंतोष तक, 182 सदस्यीय गुजरात विधानसभा चुनाव में ये 10 बड़े कारण नतीजों में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं.
- नरेंद्र मोदी: बीजेपी के पास प्रधानमंत्री के रूप में एक तुरुप का पत्ता है, जो 2001 से 2014 तक गुजरात के मुख्यमंत्री थे. उन्हें कुर्सी छोड़े आठ साल हो चुके हैं, लेकिन उनके गृह राज्य में उनका प्रभाव अभी भी बरकरार है, और कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि वह आगामी चुनावों में एक बड़ा निर्णायक कारक होंगे.
- बिलकिस बानो केस के दोषियों की सजा से छूट: गुजरात को संघ परिवार की हिंदुत्व प्रयोगशाला माना जाता है. बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले में दोषियों की सजा में छूट का असर बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदायों पर अलग तरह से पड़ेगा. मुसलमान बिलकिस बानो के लिए न्याय की मांग कर रहे हैं, जबकि हिंदुओं का एक वर्ग इस मुद्दे की अनदेखी करना चाहेगा.
- सत्ता विरोधी लहर: राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है 1998 के बाद से भाजपा के 24 साल के शासन के कारण समाज के वर्गों में असंतोष बढ़ रहा है. राजनीतिक पर्यवेक्षक हरि देसाई ने कहा कि लोगों का मानना है कि भाजपा के इतने वर्षों के शासन के बाद भी महंगाई, बेरोजगारी और जीवन से जुड़े बुनियादी मुद्दे अनसुलझे हैं.
- मोरबी ब्रिज का गिरना: 30 अक्टूबर को मोरबी में पुल ढहने से 135 लोगों की मौत हुई थी. इसमें प्रशासन और अमीर व्यापारियों के बीच गठजोड़ का मामला सामने आया. जब लोग अगली सरकार चुनने के लिए मतदान करने जाएंगे तो यह मुद्दा लोगों के दिमाग में हावी होने की संभावना है.
- पेपर लीक और सरकारी भर्ती परीक्षाओं का स्थगन: बार-बार पेपर लीक होने और सरकारी भर्ती परीक्षाओं के स्थगित होने से सरकारी नौकरी पाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे युवाओं की उम्मीदों पर पानी फिर गया है, जिससे काफी नाराजगी है.
- दूरदराज के इलाकों में बुनियादी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव: दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में अगर स्कूल की कक्षाओं का निर्माण किया जाता है तो शिक्षकों की कमी हो जाती है, और यदि शिक्षकों की भर्ती की जाती है, तो शिक्षा को प्रभावी बनाने वाली कक्षाओं की कमी है. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और डॉक्टरों की कमी भी ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है.
- किसानों के मुद्दे: पिछले दो साल से अधिक बारिश से फसल को हुए नुकसान का मुआवजा नहीं मिलने को लेकर राज्य के कई हिस्सों में किसान आंदोलन कर रहे हैं.
- खराब सड़कें: गुजरात पहले अपनी अच्छी सड़कों के लिए जाना जाता था. लेकिन, पिछले पांच से छह वर्षों में, राज्य सरकार और नगर निगम अच्छी सड़कों का निर्माण या पुरानी सड़कों का रखरखाव नहीं कर पाए हैं. गड्ढों वाली सड़कों की शिकायतें पूरे राज्य में आम हैं.
- उच्च बिजली दरें: गुजरात देश में सबसे अधिक बिजली दरों में से एक वाला प्रदेश है. आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की ओर से हर महीने 300 यूनिट मुफ्त देने के ऑफर का लोग बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. दक्षिणी गुजरात चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने हाल ही में वाणिज्यिक बिजली दरों में कमी की मांग करते हुए कहा कि उन्हें प्रति यूनिट ₹7.50 का भुगतान करना होगा, जबकि महाराष्ट्र और तेलंगाना में उनके उद्योग समकक्षों को ₹4 प्रति यूनिट का भुगतान करना होगा.
- भूमि अधिग्रहण: विभिन्न सरकारी परियोजनाओं के लिए जिन किसानों और भूमि मालिकों का अधिग्रहण किया जा रहा है, उनमें असंतोष है. उदाहरण के लिए, किसानों ने अहमदाबाद और मुंबई के बीच हाई-स्पीड बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण का विरोध किया. उन्होंने वडोदरा और मुंबई के बीच एक्सप्रेस-वे परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण का भी विरोध किया.
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