Ekadashi and rice : एकादशी के एक दिन पहले और एकादशी (ekadashi aur chawal) के दिन चावल लोग नहीं खाते हैं, आखिर चावल में ऐसा क्या होता है जो एकादशी के दिन खाने से लोग परहेज करते हैं. आज इसी सवाल का जवाब आर्टिकल में आपको मिल जाएगा, लेख में हम आपको इससे जुड़ी मान्यताओं (Relation between rice and ekadashi) के बारे में विस्तार से बताएंगे जिससे आपके एक-एक करके सारे डाउट क्लीयर हो जाएंगे, तो चलिए बिना देर किए जानते हैं.
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क्यों नहीं खाते हैं एकादशी को चावल
1- मान्यता है कि इस दिन चावल खाना मतलब महर्षि मेधा के मांस खाने के बराबर है. असल में महर्षि मेधा माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए एकादशी के ही दिन अपने शरीर का त्याग कर दिया था. मान्यता है कि महर्षि का जन्म चावल और जौ के रूप में हुआ था इसलिए इस दिन चावल लोग नहीं खाते हैं. चावल को सात्विक भोजन नहीं मानते हैं.
2- इस दिन चावल को मांस के बराबर मानते हैं. ऐसी भी मान्यता है कि इस दिन चावल खाने से रेंगने वाले जीव के रूप में जन्म होता है. वहीं, साइंस की मानें तो चावल में पानी की मात्रा अधिक होती है और चंद्रमा का पानी और मन पर बहुत प्रभाव होता है. ऐसे में इस दिन चावल खाने से मन चंचल हो सकता है जिससे आप पूजा पाठ में ध्यान नहीं लगा पाएंगे. यही कारण है कि इस दिन चावल ना खाने पर जोर दिया जाता है.
3- एकादशी के दिन वैसे तो सभी को दान करना अच्छा माना गया है, लेकिन व्रती को इस दिन सामर्थ्य के अनुसार अन्न, वस्त्र, जल, जूता, आसन, पंखा, छतरी और फल इत्यादि का दान करना चाहिए. मान्यता है कि इस दिन जल से भरे कलश का दान करने से बहुत अधिक पुण्य प्राप्त होता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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