भगवान श्रीराम और माता सीता के विवाह की वर्षगांठ के तौर पर विवाह पंचमी का उत्सव मनाया जाता है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इस तिथि का विशेष महत्व है. ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन तुलसीदास जी के द्वारा रामचरितमानस भी पूरी की गई थी. इस दिन माता सीता और भगवान श्री राम के मंदिरों में भव्य आयोजन किए जाते हैं. धार्मिक परंपराओं में इस दिन को विवाह पंचमी के रूप में हर साल मनाए जाने की परंपरा है. इस दिन भक्त व्रत करते हैं और वैवाहिक जीवन की खुशहाली के लिए माता सीता और रामजी का आशीर्वाद मांगते हैं. पौराणिक मान्यता अनुसार, इस दिन माता सीता का स्वयंवर हुआ था, जिसमें भगवान श्रीराम से उनका विवाह हुआ. यूं तो विवाह पंचमी का सभी पुराणों में विशेष महत्व है, इसके बावजूद कई जगह इस दिन कोई विवाह नहीं किया जाता है.
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धार्मिक मान्यातओं की मानें तो इस दिन भगवान श्री राम और माता सीता का विवाह हुआ था. यूं तो विवाह पंचमी का सभी पुराणों में विशेष महत्व है, इसके बावजूद कई जगह इस दिन कोई विवाह नहीं किया जाता है. इस बार विवाह पंचमी 08 दिसंबर 2021, यानि आज (बुधवार) मनाई जा रही है. इतना शुभ दिनों होने के बावजूद इस दिन विवाह नहीं किया जाता है. आइए जानते हैं आखिर क्यों विवाह पंचमी के दिन विवाह नहीं किया जाता और जानिए क्या है इससे जुड़ी पौराणिक कथा.
श्रीराम-सीता की विवाह कथा
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, श्री राम और माता सीता भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी के अवतार हैं. त्रेता युग में दोनों ने ही समाज में आदर्श और मर्यादित जीवन की मिसाल के लिए अवतार लिया. अगहन शुक्ल पंचमी को राम-सीता का विवाह मिथिलांचल में हुआ था. कथा के अनुसार, माता सीता का जन्म धरती से हुआ है, जब जनक हल चला रहे थे तो उन्हें नन्हीं-सी बच्ची मिली थी, इसे ही नाम दिया गया सीता, यही जनकनंदिनी कहलाईं. पुराणों में कथन है जब सीता छोटी थीं तब उन्होंने मंदिर में रखा शिव धनुष बड़ी ही सहजता से उठा लिया था, जिसे इससे पूर्व परशुराम के अतिरिक्त कोई नहीं उठा पाया था. तब जनक ने निर्णय लिया कि जो भगवान शिव के इस धनुष को उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा, उससे सीता का विवाह होगा. सीता स्वयंवर में भगवान राम और लक्ष्मण दर्शक के रूप में पहुंचे थे. कई राजाओं ने प्रयास किए, लेकिन कोई धनुष हिला न सका. तब महर्षि वशिष्ठ के साथ आए भगवान राम ने उनके आदेशानुसार, धनुष को उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाने का प्रयास करने लगे, लेकिन धनुष टूट गया. इस तरह उन्होंने स्वयंवर की शर्त को पूरा किया. इस तरह मार्गशीर्ष माष के शुक्ल पक्ष की पंचमी को राम-सीता का विवाह संपन्न हुआ.
विवाह पंचमी पर विवाह नहीं होने की पीछे की मान्यता
राम और सीता भारतीय जनमानस में प्रेम, समर्पण, उदात्त मूल्य और आदर्श के परिचायक पति-पत्नी हैं. हमारे समाज में भगवान श्री राम और माता सीता को आदर्श पति-पत्नी के रूप में स्वीकारा, सराहा और पूजा जाता है, लेकिन फिर भी विवाह पंचमी के दिन विवाह करना सही नहीं माना जाता है. इसका कारण है राम-सीता के विवाह के बाद का उनका कष्ट भरा जीवन.
माता सीता मिथिला की बेटी कही जाती हैं, इसलिए भी मिथिलावासी उनके कष्टों के लिए बेहद संवेदनशील हैं. 14 साल वनवास के बावजूद गर्भवती माता सीता का परित्याग किए जाने के बाद राजकुमारी को महारानी का सुख नहीं मिला. इस दौरान माता सीता को अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ा. मर्यादा परुषोत्तम भगवान श्री राम ने गर्भवती माता सीता का परित्याग किया, जिसके बाद माता सीता का आगे का सारा जीवन अपने जुड़वां बच्चों लव और कुश के साथ वन में ही बीता. यही वजह है कि विवाह पंचमी के दिन लोग बेटियों की शादी नहीं करते हैं. आशंका रहती है कि कहीं सीता की तरह ही उनकी बेटी का वैवाहिक जीवन दुखमय न हो.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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