पंडित के अनुसार रखेंगे वट सावित्री का व्रत तो म‍िलेगा ज्‍यादा पुण्य, उपवास में इस बात का रखें खास ख्याल 

वट सावित्री व्रत के दौरान बरगद के वृक्ष के नीचे बैठकर पूजा एवं कथा सुनने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं एवं महिलाओं को सुखद वैवाहिक जीवन की प्राप्ति होती है. ऐसे में आइए जानते हैं ज्योतिषाचार्य डॉ. गौरव कुमार दीक्षित से इस साल यह व्रत कब रखा जाएगा, पूजा विधि क्या है और इसकी कथा. 

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महिलाओं के वैवाहिक जीवन या जीवन साथी के जीवन पर किसी प्रकार का कोई संकट आता भी है तो वो टल जाता है.

Vat Savitri Vrat 2025 : वट सावित्री का व्रत हर साल ज्येष्ठ महीने में विवाहित स्त्रियों द्वारा पति की लंबी आयु के लिए रखा जाता है. इस दिन महिलाएं 16 श्रृंगार करके वट वृक्ष की पूजा करती हैं. इस व्रत में सावित्री और सत्यवान की कथा पढ़ी जाती है. मान्यता है बरगद के वृक्ष में ब्रह्मा विष्णु महेश का वास होता है. वट सावित्री व्रत के दौरान बरगद के वृक्ष के नीचे बैठकर पूजा एवं कथा सुनने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं एवं महिलाओं को सुखद वैवाहिक जीवन की प्राप्ति होती है. ऐसे में आइए जानते हैं ज्योतिषाचार्य डॉ. गौरव कुमार दीक्षित से इस साल यह व्रत कब रखा जाए, पूजा विधि क्या है और इसकी कथा.

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कब है वट सावित्री - when is Vat Savitri 

पंचांग के मुताबिक, ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि यानी 26 मई 2025 को दोपहर 12 बजकर 11 मिनट पर शुरु होगी, जो मई 27 को रात 8 बजकर 31 मिनट पर समाप्त होगी. उदयातिथि के अनुसार, वट सावित्री का व्रत 26 मई दिन सोमवार को रखा जाएगा.

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वट सावित्री पूजा नियम - Vat Savitri puja niyam

वट सावित्री व्रत में बरगद के वृक्ष को जल चढ़ाकर रोली चंदन धूप दीप नैवेद्य समर्पित करें. इसके पश्चात कच्चे सूत को बरगद के तने के चारों ओर 7 अथवा 11 बार परिक्रमा करते हुए लपेटें. 

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इस परिक्रमा के पश्चात महिलाएं 7  या 11 सुहागिन स्त्रियों को सुहाग की सामग्री और वस्त्र दान करें. साथ ही वट सावित्री व्रत की कथा सुनें.

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वट सावित्री व्रत कथा - Vat Savitri Vrat katha

भद्र देश के एक राजा थे, जिनका नाम अश्वपति था. इनकी कोई संतान नहीं थी. उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियां दीं. अठारह वर्षों तक यह क्रम जारी रहा. इसके बाद सावित्री देवी ने प्रकट होकर वरदान दिया किराजन तुझे एक तेजस्वी कन्या पैदा होगी. इसके बाद राजा के घर कन्या का जन्म हुआ जिसका नाम सावित्री रखा गया. कन्या बड़ी होकर बेहद रूपवान हुई. योग्य वर न मिलने की वजह से सावित्री के पिता दुःखी थे. उन्होंने कन्या को खुद से वर तलाशने के लिए भेजा. इस दौरान सावित्री तपोवन में भटकने लगी.

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वहां शाल्व देश के राजा द्युमत्सेन रहते थे, क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था. उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में उनका चुनाव किया.

 नारद मुनि को जब यह बात पता चली तो वह राजा अश्वपति के पास पहुंचे और कहा कि हे राजन! यह क्या कर रहे हैं आप? सत्यवान गुणवान हैं, धर्मात्मा हैं और बलवान भी हैं, पर उसकी आयु बहुत छोटी है, वह अल्पायु हैं. एक वर्ष के बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी.

ऋषिराज नारद की बात सुनकर राजा अश्वपति घोर चिंता में डूब गए. सावित्री ने उनसे कारण पूछा, तो राजा ने कहा, पुत्री तुमने जिस राजकुमार को अपने वर के रूप में चुना है वह अल्पायु हैं. तुम्हें किसी और को अपना जीवन साथी बनाना चाहिए. इस पर सावित्री ने कहा कि पिताजी, आर्य कन्याएं अपने पति का एक बार ही वरण करती हैं, राजा एक बार ही आज्ञा देता है और पंडित एक बार ही प्रतिज्ञा करते हैं और कन्यादान भी एक ही बार किया जाता है.

सावित्री हठ करने लगीं और बोलीं मैं सत्यवान से ही विवाह करूंगी. राजा अश्वपति ने सावित्री का विवाह सत्यवान से कर दिया. सावित्री अपने ससुराल पहुंचते ही सास-ससुर की सेवा करने लगी. समय बीतता चला गया. नारद मुनि ने सावित्री को पहले ही सत्यवान की मृत्यु के दिन के बारे में बता दिया था. वह दिन जैसे-जैसे करीब आने लगा, सावित्री अधीर होने लगीं. उन्होंने तीन दिन पहले से ही उपवास शुरू कर दिया. नारद मुनि द्वारा कथित निश्चित तिथि पर पितरों का पूजन किया.

हर दिन की तरह सत्यवान उस दिन भी लकड़ी काटने जंगल चले गये साथ में सावित्री भी गईं. जंगल में पहुंचकर सत्यवान लकड़ी काटने के लिए एक पेड़ पर चढ़ गये. तभी उसके सिर में तेज दर्द होने लगा, दर्द से व्याकुल सत्यवान पेड़ से नीचे उतर गये. सावित्री अपना भविष्य समझ गईं.

सत्यवान के सिर को गोद में रखकर सावित्री सत्यवान का सिर सहलाने लगीं. तभी वहां यमराज आते दिखे. यमराज अपने साथ सत्यवान को ले जाने लगे. सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ीं. यमराज ने सावित्री को समझाने की कोशिश की  यही विधि का विधान है. लेकिन सावित्री नहीं मानी.सावित्री की निष्ठा और पति परायणता को देख कर यमराज ने सावित्री से कहा कि हे देवी, तुम धन्य हो. तुम मुझसे कोई भी वरदान मांगो.

सावित्री ने कहा कि मेरे सास-ससुर वनवासी और अंधे हैं, उन्हें आप दिव्य ज्योति प्रदान करें. यमराज ने कहा ऐसा ही होगा. जाओ अब लौट जाओ.लेकिन सावित्री अपने पति सत्यवान के पीछे-पीछे चलती रहीं. यमराज ने कहा देवी तुम वापस जाओ. सावित्री ने कहा भगवन मुझे अपने पतिदेव के पीछे-पीछे चलने में कोई परेशानी नहीं है. पति के पीछे चलना मेरा कर्तव्य है. यह सुनकर उन्होंने फिर से उसे एक और वर मांगने के लिए कहा.

सावित्री बोलीं हमारे ससुर का राज्य छिन गया है, उसे पुन: वापस दिला दें.यमराज ने सावित्री को यह वरदान भी दे दिया और कहा अब तुम लौट जाओ. लेकिन सावित्री पीछे-पीछे चलती रहीं. यमराज ने सावित्री को तीसरा वरदान मांगने को कहा.इस पर सावित्री ने 100 संतानों और सौभाग्य का वरदान मांगा. यमराज ने इसका वरदान भी सावित्री को दे दिया. 

सावित्री ने यमराज से कहा कि प्रभु मैं एक पति व्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है. यह सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े. यमराज अंतरध्यान हो गए और सावित्री उसी वट वृक्ष के पास आ गई जहां उसके पति का मृत शरीर पड़ा था. सत्यवान जीवंत हो गया और दोनों खुशी-खुशी अपने राज्य की ओर चल पड़े. दोनों जब घर पहुंचे तो देखा कि माता-पिता को दिव्य ज्योति प्राप्त हो गई है. इस प्रकार सावित्री-सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भोगते रहे.

वट सावित्री व्रत करने और इस कथा को सुनने से महिलाओं के वैवाहिक जीवन या जीवन साथी के जीवन पर किसी प्रकार का कोई संकट आता भी है तो वो टल जाता है.

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