Tulsi upay : हिंदू धर्म में ज्येष्ठ महीने का विशेष महत्व है. मान्यता है इस महीने में ही हनुमान जी का भगवान श्रीराम से भेंट हुई थी. इस माह में आप रोजाना देवी तुलसी की पूजा करते हैं, तो फिर सुख-शांति बनी रहती है. इससे आर्थिक तंगी भी दूर होती है. आज हम आपको यहां पर ज्येष्ठ महीने से जुड़े तुलसी के कुछ उपाय बताने जा रहे हैं, जिसे आप करना शुरु कर देते हैं तो आपके जीवन में खुशहाली बनी रहेगी.
कब से शुरु होगा ज्येष्ठ माह 2025
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस बार ज्येष्ठ माह की शुरूआत 13 मई से शुरु होगा और 11 जून को समाप्त.
ज्येष्ठ तुलसी उपाय
आर्थिक परेशानी से जूझ रहे हैं तो तुलसी के पौधा को गंगाजल से धो लीजिए. इसके बाद जड़ को पीले कपड़े में बांधकर घर के मेन गेट पर बांध सकते हैं. मान्यता है इससे भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की कृपा आप पर बरसती है. इससे आर्थिक तंगी से छुटकारा मिलता है.
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ज्येष्ठ माह में तुलसी को कच्चा दूध चढ़ाएं और लाल चुनरी अर्पित करिए. फिर आप देसी घी जलाकर आरती करिए. इससे मां लक्ष्मी की कृपा आप पर बरसती है. इससे आपकी तिजोरी हमेशा भरी रहती है.
श्री तुलसी मंत्र - Shri Tulsi Mantra
ॐ तुलसीदेव्यै च विद्महे, विष्णुप्रियायै च धीमहि, तन्नो वृन्दा प्रचोदयात् ।।
महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी। आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्तुते..
वृंदा देवी-अष्टक: गाङ्गेयचाम्पेयतडिद्विनिन्दिरोचिःप्रवाहस्नपितात्मवृन्दे । बन्धूकबन्धुद्युतिदिव्यवासोवृन्दे नुमस्ते चरणारविन्दम् ॥
समस्तवैकुण्ठशिरोमणौ श्रीकृष्णस्य वृन्दावनधन्यधामिन् । दत्ताधिकारे वृषभानुपुत्र्या वृन्दे नुमस्ते चरणारविन्दम् ॥
ॐ सुप्रभाय नमः
श्री तुलसी स्तोत्रम्- Shri Tulsi Stotram
जगद्धात्रि नमस्तुभ्यं विष्णोश्च प्रियवल्लभे ।
यतो ब्रह्मादयो देवाः सृष्टिस्थित्यन्तकारिणः ॥१॥
नमस्तुलसि कल्याणि नमो विष्णुप्रिये शुभे ।
नमो मोक्षप्रदे देवि नमः सम्पत्प्रदायिके ॥२॥
तुलसी पातु मां नित्यं सर्वापद्भ्योऽपि सर्वदा ।
कीर्तितापि स्मृता वापि पवित्रयति मानवम् ॥३॥
नमामि शिरसा देवीं तुलसीं विलसत्तनुम् ।
यां दृष्ट्वा पापिनो मर्त्या मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषात् ॥४॥
तुलस्या रक्षितं सर्वं जगदेतच्चराचरम् ।
या विनिहन्ति पापानि दृष्ट्वा वा पापिभिर्नरैः ॥५॥
नमस्तुलस्यतितरां यस्यै बद्ध्वाञ्जलिं कलौ ।
कलयन्ति सुखं सर्वं स्त्रियो वैश्यास्तथाऽपरे ॥६॥
तुलस्या नापरं किञ्चिद् दैवतं जगतीतले ।
यथा पवित्रितो लोको विष्णुसङ्गेन वैष्णवः ॥७॥
तुलस्याः पल्लवं विष्णोः शिरस्यारोपितं कलौ ।
आरोपयति सर्वाणि श्रेयांसि वरमस्तके ॥८॥
तुलस्यां सकला देवा वसन्ति सततं यतः ।
अतस्तामर्चयेल्लोके सर्वान् देवान् समर्चयन् ॥९॥
नमस्तुलसि सर्वज्ञे पुरुषोत्तमवल्लभे ।
पाहि मां सर्वपापेभ्यः सर्वसम्पत्प्रदायिके ॥१०॥
इति स्तोत्रं पुरा गीतं पुण्डरीकेण धीमता ।
विष्णुमर्चयता नित्यं शोभनैस्तुलसीदलैः ॥११॥
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी ।
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमनःप्रिया ॥२॥
लक्ष्मीप्रियसखी देवी द्यौर्भूमिरचला चला ।
षोडशैतानि नामानि तुलस्याः कीर्तयन्नरः ॥१३॥
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत् ।
तुलसी भूर्महालक्ष्मीः पद्मिनी श्रीर्हरिप्रिया ॥१४॥
तुलसि श्रीसखि शुभे पापहारिणि पुण्यदे ।
नमस्ते नारदनुते नारायणमनःप्रिये ॥१५॥
॥ श्रीपुण्डरीककृतं तुलसीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)