Putrada Ekadashi 2024: इस कथा के बिना अधूरी मानी जाती है पुत्रदा एकादशी की पूजा, आज पढ़ सकते हैं आप भी 

Putrada Ekadashi Vrat: आज सावन मास की पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा जा रहा है. इस व्रत की पूजा के बाद पुत्रदा एकादशी की कथा पढ़ना बेहद फलदायी माना जाता है. भक्त इस कथा का पाठ जरूर करते हैं. 

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Putrada Ekadashi Katha: मान्यतानुसार संतान प्राप्ति के लिए रखा जाता है पुत्रदा एकादशी का व्रत. 

Putrada Ekadashi 2024: हिंदू धर्म में एकादशी के व्रत की विशेष धार्मिक मान्यता होती है. माना जाता है कि एकादशी पर भगवान विष्णु का पूरे मनोभाव से पूजन किया जाए तो भक्तों को श्रीहरि की विशेष कृपा मिलती है. पुत्रदा एकादशी के व्रत को संतान प्राप्ति के लिए रखा जाता है. माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने पर जातक के जीवन में खुशहाली और सुख-समृद्धि आती है और खुशियों का आगमन होता है. पंचांग के अनुसार, सावन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर पुत्रदा एकादशी का व्रत (Putrada Ekadashi Vrat) रखा जाता है. इस साल 16 अगस्त, शुक्रवार के दिन एकादशी का व्रत रखा जा रहा है. इस व्रत का पारण भक्त अगले दिन 17 अगस्त सुबह 5 बजकर 51 मिनट से 8 बजकर 5 मिनट के बीच कर सकते हैं. पुत्रदा एकादशी की पूजा में इस व्रत की कथा पढ़ना बेहद शुभ कहा जाता है. माना जाता है कि इस कथा को पढ़े बिना व्रत अधूरा होता है. 

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पुत्रदा एकादशी की कथा | Putrada Ekadashi Katha 

पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में द्वापर युग की शुरूआत में महिरूपति नाम की नगरी हुआ करती थी.  इस नगरी में महीजित नाम के राजा का शासन था. राजा का कोई पुत्र नहीं था जिस चलते उसे अपना जीवन सुखदायक नहीं लगता था. अपनी इस उलझन को सुलझाने के लिए और पुत्र प्राप्ति के लिए राजा ने बहुत उपाय किए लेकिन कोई फल नहीं मिला. 

एक बार राजा ने सभी ऋषि-मुनियों को बुलाया, सन्यासियों को बुलाया और विद्वानों को एकत्रित किया. राजा ने सभी से पुत्र प्राप्ति के उपाय पूछे. राजा की समस्या सुनने के बाद सभी ने मिलकर राजा को बताया कि उसने अपने पिछले जन्म में सावन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन प्यासी गाय को जल पिलाने से मना कर दिया था. उस गाय ने ही राजा को संतान ना होने का श्राप दिया था. इस चलते ही राजा पुत्र प्राप्ति से हमेशा वंचित रहा. राजा को सभी ने यह सुझाव दिया कि यदि वह सावन की एकादशी पर विधिपूर्वक व्रत करेगा तो उसे श्राप से मुक्ति मिल जाएगी. राजा ने सबकी बात मान ली. 

राजा ने पूरे मनोभाव से पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा, पूजा संपन्न की और भगवान विष्णु से अपनी मनोकामना कही. इसके बाद राजा की पत्नी गर्भवती हुई और उन्होंने पुत्र को जन्म दिया. माना जाता है कि तभी से संतान प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा जाने लगा. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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