सावन माह में कब मनाया जाएगा प्रदोष व्रत, जानें तिथि, शुभ मुहूर्त और महत्व

सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा-अर्चना की जाती है. ऐसे में इस महीने में प्रदोष व्रत की भी विशेष धार्मिक मान्यता होती है.

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Pradosh Vrat: सावन के पवित्र महीने की शुरुआत हो चुकी है जोकि 19 अगस्त 2024 तक रहेगा. ऐसे में सावन में हर दिन कोई ना कोई विशेष तिथि पड़ती है और सावन की त्रयोदशी तिथि बेहद खास होती है क्योंकि इस दिन सावन प्रदोष व्रत किया जाता है. यह व्रत भगवान शिव (Lord Shiva) और मां पार्वती (Maa Parvati) को समर्पित होता है. कहते हैं कि सावन में आने वाले शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी पर अगर प्रदोष का व्रत किया जाए तो इससे जातकों की सभी मनोकामना पूरी होती हैं. तो चलिए आज हम आपको बताते हैं कि सावन का पहला प्रदोष व्रत कब मनाया जाएगा और इसका महत्व क्या है.

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सावन प्रदोष व्रत 2024 | Sawan Pradosh Vrat 

ज्योतिषियों के अनुसार, सावन त्रयोदशी की तिथि 1 अगस्त को दोपहर 3:28 पर शुरू हो जाएगी और यह 2 अगस्त को दोपहर 3:26 पर समाप्त होगी. ऐसे में सावन प्रदोष व्रत 1 अगस्त को रखा जाएगा, क्योंकि इस बार त्रयोदशी तिथि गुरुवार को पड़ रही है, ऐसे में इसे गुरु प्रदोष व्रत (Guru Pradosh Vrat) कहा जा रहा है. हिंदू पंचांग के अनुसार, सावन प्रदोष व्रत में पूजा का शुभ मुहूर्त 1 अगस्त को शाम 7:11 से शुरू होकर रात 9:18 तक रहेगा. कहा जा रहा है कि यह भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना करने का सबसे उत्तम समय होता है.

गुरु प्रदोष व्रत का धार्मिक महत्व

इस बार सावन की त्रयोदशी तिथि गुरुवार को पड़ रही है, ऐसे में इसे गुरु प्रदोष व्रत कहा जा रहा है. कहते हैं कि गुरु प्रदोष व्रत को करने से भगवान शिव के आशीर्वाद के साथ-साथ गुरु ग्रह भी मजबूत होता है. इतना ही नहीं जिन लोगों की शादी में अड़चन आ रही है, अगर वह इस व्रत को पूरी श्रद्धा के साथ रखते हैं, तो विवाह के योग जल्दी बनते हैं. वहीं, धन संपन्नता बनी रहती है और कुंडली में जो गुरु दोष है उसके प्रभाव को भी कम किया जा सकता है.

सावन प्रदोष व्रत पर करें शिव चालीसा का पाठ

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।।दोहा।।

श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।

कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान।।

।।चौपाई।।

जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत संतन प्रतिपाला।।

भाल चंद्रमा सोहत नीके। कानन कुंडल नागफनी के।।

अंग गौर शिर गंग बहाये। मुंडमाल तन छार लगाये।।

वस्त्र खाल बाघंबर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे।।

मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी।।

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी।।

नंदि गणेश सोहै तहं कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे।।

कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ।।

देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा।।

किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी।।

तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महं मारि गिरायउ।।

आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा।।

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई।।

किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी।।

दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं।।

वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई।।

प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला।।

कीन्ह दया तहं करी सहाई। नीलकंठ तब नाम कहाई।।

पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा।।

सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी।।

एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई।।

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर।।

जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी।।

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै।।

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो।।

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो।।

मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई।।

स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी।।

धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं।।

अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी।।

शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन।।

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं।।

नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय।।

जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शंभु सहाई।।

ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी।।

पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई।।

पंडित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ।।

त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा।।

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे।।

जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे।।

कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी।।

।।दोहा।।

नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।

तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश।।

मगसर छठि हेमंत ॠतु, संवत चौसठ जान।

अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण।।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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