श्राद्ध में कौए को भोजन क्यों कराते हैं? ज्योतिषाचार्य से जानिए इसका धार्मिक, समाजिक और पर्यावरणीय महत्व

कौओं को भोजन कराना एक प्राचीन परंपरा हैं, जो हिंदू धर्म में पितरों एवं पूर्वजों की आत्मा की तृप्ति और शांति के लिए किया जाता है. इसके पीछे धार्मिक पौराणिक और प्रतीकात्मक महत्व छुपे हुए हैं.

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श्राद्ध पक्ष में गौमाता , ब्राह्मण ,कुत्ता, आदि के साथ कौओं को भोजन करने का भी विधान है.

Shradh kyun karte hain : हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व होता है. इसे श्राद्ध पक्ष के नाम से भी जाना जाता है. इस दौरान पितरों का तर्पण-अर्पण किया जाता है. भाद्र मास में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से पितृ पक्ष की शुरूआत होती है और अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि तक रहता है. इस साल 7 सितंबर 2025 से श्राद्ध पक्ष शुरू हो रहा है, जो 21 सितंबर को समाप्त होगा. आपको बता दें कि श्राद्ध पक्ष में पितरों का तर्पण-अर्पण उनकी मृत्यु तिथि के अनुसार किया जाता है. वहीं, अगर आपको किसी पितर की तिथि का पता नहीं तो आप सर्वपितृ अमावस्या के दिन पिंडदान या श्राद्ध कर सकते हैं. 

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श्राद्ध पक्ष के दौरान नियमों का विशेष ध्यान दिया जाता है. आपको श्राद्ध कर्म के दौरान ब्राह्मणों को भोजन कराने के अलावा कौवे को भोजन जरूर कराना चाहिए. इसके पीछे का धार्मिक, सामाजिक और पर्यावरणीय महत्व क्या है, इसके बारे में बता रहे हैं पंडित अरविंद मिश्र...

क्यों कराते हैं पितृ पक्ष में कौए को भोजन

धार्मिक महत्व

ईश्वर की बनाई हुई इस सृष्टि में जो भी जीव जंतु अथवा वस्तुएं बनाई गई हैं, उनकी कुछ न कुछ विशेषता और महत्ता है. कौए के बारे में रामायण में कथा आती है कि एक बार भगवान राम माता सीता के साथ बैठे हुए थे. तभी देवराज इंद्र के पुत्र जयंत ने कौवे का रूप रखकर माता सीता के पैर में चोंच मार दी. जिससे उनके पैर में खून निकल आया. भगवान स्वयं का अपमान बरदाश्त कर लेते हैं, लेकिन अपने भक्तों की नहीं. इसीलिए श्री राम को थोड़ा गुस्सा आ गया और उन्होंने उस कौवे के पीछे एक सरकंडे का तिनका अभिमंत्रित करके उसके पीछे छोड़ा दिया. उसके बाद वह कौआ तीनों लोकों में घूमता रहा अपने पिता देवराज इंद्र,भगवान शिव, परम पिता ब्रह्मा आदि सभी के पास गया, लेकिन उस सरकंडे से किसी ने उसकी रक्षा नहीं की. सभी ने कहा कि तुम्हारी रक्षा श्री राम जी ही कर सकते हैं. तुम उन्हीं की शरण में जाओ. तब वह कौआ लौटकर भगवान राम के पास आया तब राम जी ने उसकी रक्षा की. लेकिन भगवान राम ने कहा कि तुमने सीता जी के पैर में चोंच मारी है इसका तुम्हें दंड कुछ न कुछ तो मिलेगा. 

इसलिए भगवान राम ने उसकी एक आंख फोड़ दी और उसे छोड़ दिया. तभी कौओं की एक आंख फूटी या खराब होती है. कौओं के बारे में गरुड़ पुराण,मनुस्मृति,महाभारत आदि धार्मिक ग्रंथो में विवरण मिलता है. 

श्रद्धा कर्म में कौओं को भोजन देने से पितर प्रसन्न होते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है. कौओं के माध्यम से पितरों को पिंडदान और तर्पण का फल प्राप्त होता है. कौओं को यमराज का प्रतिनिधि माना गया है.

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सामाजिक महत्व

कौओं के बारे में भारतीय समाज में यह भी प्रचलित है यदि घर की मुंडेर पर सुबह प्रातः काल को कौवा बोलता है, तो समझा जाता है कि आज कोई अतिथि हमारे घर आने वाला है. यह मान्यता भारतीय समाज में विशेष रूप से महत्व रखती है, और लोगों को इस पर पूरा विश्वास है. 

इसीलिए श्राद्ध पक्ष में गौमाता, ब्राह्मण,कुत्ता, आदि के साथ कौओं को भोजन करने का भी विधान है. कौए दीर्घजीवी भी होते हैं. हमारे भारतीय समाज में एक कहावत भी प्रचलित है यदि कोई बहुत लंबी उम्र जीता है और वह शारीरिक रूप से बीमार और क्षीण होता है और उसकी मृत्यु नहीं होती तो लोग कहते हैं कि लगता है यह काला कौआ खाकर आया है.

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इसके अलावा कौआ के बारे में एक और  महत्वपूर्ण बात है. आपको बताते हैं कि कोयल की आवाज बहुत मीठी होती है और उसे सब पसन्द करते और उसकी तारीफ करते हैं, लेकिन कौओं को लोग इतना पसंद नहीं करते हैं. जबकि क्या आपको पता है कोयल अपने अण्डे देने के बाद छोड़कर भाग जाती है. उसके अंडों और बच्चों की देख भाल कौवा करता है. 
आशय ये है कि मीठा बोलने वाले और चापलूसी करने वाले लोग बुरा वक्त आने या काम पड़ने पर छोड़कर भाग जाते हैं. लेकिन कड़वा बोलने वाला बुरे वक्त में भी काम आता है.  इसलिए कौओं को कई प्रकार से हम अपने जीवन में याद करते हैं और महत्व देते हैं. 

पर्यावरणीय महत्व 

कौआ पर्यावरण का सफाई कर्मी भी है. वह कीड़े-मकौड़े को खाकर किसानों की फसलों की रक्षा करता है. जिससे सभी मनुष्यों को भोजन प्राप्त होता है. इसलिए भी उसको भोजन कराना पुण्य फलदायी होता है.

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