शनि के दुष्प्रभाव करना चाहते हैं कम तो Mahashivratri को कर्क, वृश्चिक, कुंभ, मकर और मीन राशि वाले कर लें ये उपाय  

Shani dhaiya se kaise bachein : अगर आप भोलेनाथ की शरण में आ जाएं तो शनि के अशुभ प्रभावों से बच जाएंगे. आपको बस महाशिवरात्रि के दिन पूरे विधि विधान के साथ महादेव की पूजा करनी है और यहां बताए जा रहे मंत्रों का जाप करना है 

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इस दिन कर्क, वृश्चिक, कुंभ, मकर और मीन राशि वाले गंगा जल से शिव जी की पिंडी का अभिषेक करें.

Shani upay : इस समय कर्क, वृश्चिक, कुंभ, मकर और मीन राशि वालों पर शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या का प्रकोप चल रहा है. जिसके कारण इन राशि के जातकों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. लेकिन अगर आप भोलेनाथ की शरण में आ जाएं तो शनि के अशुभ प्रभावों से बच जाएंगे. आपको बस महाशिवरात्रि के दिन पूरे विधि विधान के साथ महादेव की पूजा करनी है और यहां बताए जा रहे मंत्रों का जाप करना है फिर, देखिए कैसे आपके जीवन के सारे कष्ट भोलेनाथ दूर कर देते हैं. 

महाशिवरात्रि के दिन क्या करें?

इस दिन कर्क, वृश्चिक, कुंभ, मकर और मीन राशि वाले गंगा जल से शिव जी की पिंडी का अभिषेक करें और रुद्राष्टकम और महामृत्युंजय का पाठ भी करें. इससे आप पर उनकी विशेष कृपा बरसेगी. तो चलिए जानते हैं उन मंत्रों के बारे में.

महामृत्युंजय मंत्र- ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

ॐ नमः शिवायः'  



रुद्राष्टकम- नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम्‌ ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम्‌ ॥

निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्‌ ।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम्‌ ॥

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तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम्‌ ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥

चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्‌ ।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥

प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम्‌ ।
त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम्‌ ॥

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥

न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्‌ ।
न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम्‌ सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम्‌ ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥

रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये
ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति।। 

  ॥  इति श्रीगोस्वामीतुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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