हिंदू धर्म में पूजा-पाठ का विशेष महत्व है. शास्त्रों में भी आचमन ग्रहण करने की कई विधियां वर्णित हैं. सभी प्रकार की पूजा से पहले शुद्ध होकर देवी-देवताओं का आवाहन किया जाता है. अक्सर आपने देखा होगा कि पूजा से पहले पंडित द्वारा मंत्रों के माध्यम से शुद्ध करने की क्रिया की जाती है, जो बेहद महत्वपूर्ण होती है. इसी क्रम में आचमन से पूर्व शरीर के सभी छिद्रों को जल से स्वच्छ किया जाता है. आचमन का अर्थ होता है- जल पीना.
बता दें कि आचमन के लिए उतना ही जल लिया या पीया जाता है, जितना हदय तक पहुंच सके. इस क्रिया में थोड़ी-थोड़ी देर में तीन बार जल पीया जाता है. मान्यता है कि किसी भी प्रकार की पूजा से पहले आचमन करना आवश्यक है.
शास्त्रों में आचमन ग्रहण करने की कई विधियां बताई गई हैं. कहते हैं कि आचमन ना करने से पूजा का फल आधा माना जाता है. वहीं ऐसा करने से भगवान की दोगुनी कृपा प्राप्त होती है.
आचमनी
बता दें कि तांबे के छोटे बर्तन और चम्मच को आचमनी कहा जाता है. इसके लिए तांबे के छोटे बर्तन में जल भरकर उसमें तुलसी दल मिलाकर पूजा स्थान पर रखा जाता है. इस जल को आचमन का जल या फिर पवित्र जल कहा जाता है.
आचमन की दिशा
कहते हैं कि आचमन करते समय दिशाओं का विशेष ध्यान रखना चाहिए. मान्यता है कि आचमन हमेशा उत्तर या फिर उत्तर-पूर्व और पूर्व दिशा की मुंह कर के किया जाता है. माना जाता है कि अन्य दिशाओं की ओर मुख कर किया हुआ आचमन निरर्थक है, जो अपना उद्देश्य पूरा नहीं करता.
आचमन मंत्र
- ॐ केशवाय नम:
- ॐ नाराणाय नम:
- ॐ माधवाय नम:
- ॐ हृषीकेशाय नम: ( इस मंत्र के द्वारा अंगूठे से मुख पोंछ लें)
- ॐ गोविंदाय नमः (यह मंत्र बोलकर हाथ धो लें.)
बता दें कि पूजा के पहले आचमन करते समय इन मंत्रों का जाप किया जाता है. कहते हैं कि उपरोक्त विधि ना कर सकने की स्थिति में केवल दाहिने कान के स्पर्श मात्र से ही आचमन की विधि की पूर्ण मानी जाती है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)