हिन्दू धर्म में शालिग्राम शिला को पूजने का विशेष विधान है. शालिग्राम को साक्षात भगवान श्री हरि विष्णु का स्वरूप माना जाता है. मान्यता है कि जिस घर में भगवान विष्णु रहते हैं, वो घर तीर्थ के समान हो जाता है. कई घरों में भगवान श्री हरि विष्णु को शालीग्राम के रूप में पूजा जाता है. भगवान शालीग्राम की पूजा का विशेष महत्त्व बताया जाता है. तुलसी की जड़ के पास शालिग्राम शिला को रखकर रोज पूजा करने की परंपरा पुराने समय से चली आ रही है. श्री हरि के शालीग्राम रूप का वर्णन पद्मपुराण में मिलता है.
पौराणिक कथा के अनुसार, तुलसी जी के श्राप के कारण श्री हरि विष्णु हृदयहीन शिला में बदल गए थे. उनके इसी रूप को शालिग्राम कहा गया है. कहते हैं कि जिन घरों में तुलसी के साध शालिग्राम की पूजा की जाती है, वहां दरिद्रता नहीं आती. भगवान शालिग्राम की पूजा में कुछ विशेष सावधानियां बरतने की जरूरत है. अगर आपके घर में भी शालिग्राम है, तो यहां बताई जा रही बातों का ध्यान जरूर रखें. आइए जानते हैं शालिग्राम क्या है और उनके पूजन के समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए.
पुराणों में 33 प्रकार के शालिग्राम भगवान का उल्लेख है, जिनमें से 24 प्रकार के शालिग्राम को भगवान श्री हरि विष्णु के 24 अवतारों का प्रतीक मानते हैं. उदाहरण के तौर पर यदि शालिग्राम का आकार गोल है तो उसे भगवान का गोपाल रूप माना जाता है. मछली के आकार के लंबे शालिग्राम मत्स्य अवतार का प्रतीक हैं. वहीं, कछुए के आकार के शालिग्राम को विष्णुजी के कच्छप या कूर्म अवतार का प्रतीक माना जाता है.
कहते हैं जहां भगवान शालिग्राम की पूजा होती है, वहां श्री हरि विष्णु जी के साथ-साथ महालक्ष्मी भी निवास करती हैं. विष्णु पुराण के अनुसार, जिस घर में भगवान शालिग्राम हो, वह घर तीर्थ के समान होता है. शालिग्राम को अर्पित किया हुआ पंचामृत प्रसाद के रूप में सेवन करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है.
कैसे करें शालिग्राम का पूजन, इन बातों का रखें ध्यान
घर को पवित्र रखें और जिस स्थान पर शालिग्राम हों, उसे मंदिर की तरह सजाएं. अपने आचार और विचार शुद्ध रखें.
शालिग्राम की पूजा का क्रम टूटने न दें. यानी नियमित तौर पर शालिग्राम की पूजा जरूरी है.
शालिग्राम महाराज पर कभी भी अक्षत नहीं चढ़ाने चाहिए. शास्त्रों में इसकी मनाही है, लेकिन अगर आप ऐसा कर रहे हैं तो चावल को हल्दी से पीला रंग से रंगने के बाद ही अर्पित करें.
माना जाता है कि भगवान शालिग्राम की पूजा तुलसी के बिना पूरी नहीं होती है और तुलसी अर्पित करने पर वे तुरंत प्रसन्न हो जाते हैं.
पूजा में शालिग्राम को स्नान कराकर चंदन लगाएं और तुलसी अर्पित करें. भोग लगाएं.
कहते हैं जो व्यक्ति शालिग्राम पर रोज जल चढ़ाता है, वह अक्षय पुण्य प्राप्त करता है.
यदि आपके घर में शालिग्राम हैं और आप इनकी ठीक से देखभाल नहीं कर पाते हैं तो बेहतर होगा कि इसे किसी नदी में प्रवाहित कर दें या फिर किसी संत को दे दें.
शास्त्रों में कहा गया है कि जो लोग तुलसी के साथ-साथ शालिग्राम की भी रोजाना पूजा करते हैं, उस घर से दरिद्रता कोसों दूर रहती है.
माना जाता है कि शालीग्राम की पूजा में तुलसी का पत्ता भगवान शालीग्राम के ऊपर चढ़ाने से धन, वैभव मिलता है.
कहते हैं कि कभी भी शालिग्राम की पूजा करते समय या शालिग्राम की शिला घर में रखते समय मांस-मदिरा का सेवन न करें. यदि व्यक्ति ऐसा करता है तो निश्चित ही धन हानि और लड़ाई झगड़े बढ़ते हैं.
मान्यता है कि घर में सिर्फ़ एक ही शालीग्राम की शिला होनी चाहिए. एक से अधिक शालिग्राम रखने से व्यर्थ के संकट आते हैं और आर्थिक हानियों का सामना करना पड़ता है.
कहा जाता है कि शालिग्राम की पूजा हमेशा नहा धोकर और साफ़ वस्त्रों में करनी चाहिए. यही नहीं पूजा के समय मन भी साफ़ होना चाहिए.
मान्यता है कि यदि घर में शालिग्राम भगवान हैं तो उन्हें रोज़ पंचामृत से स्नान कराएं. इसमें दूध, दही, जल, शहद और घी शामिल होते हैं. इन सभी सामग्रियों से शालिग्राम जी को स्नान करवाकर इसे चरणामृत को प्रसाद स्वरुप ग्रहण करें. शालिग्राम को गंगाजल नहीं चढ़ाना चाहिए, क्योंकि गंगा जी शालिग्राम से निकली हैं. शालिग्राम की शिला को पंचामृत से स्नान कराने के बाद चन्दन लगाएं और तुलसी दल अर्पित करें. ऐसा करने से से भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है.
शालिग्राम को नियमित रूप से भोग अर्पित करें. भोग (लड्डू गोपाल को भोग लगाने की विधि) में सात्विक भोजन को हो अर्पित करें. पूजा के दौरान शुद्ध मन से विष्णु जी की आरती करें और सम्मान पूर्वक शालिग्राम की शिला को भोग अर्पित करें.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)