Kalashtami vrat katha 2025 : हर महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी का व्रत रखा जाता है. इस दिन काल भैरव की पूजा की जाती है. यह भगवान शिव का रुद्र अवतार माने जाते हैं. इनकी पूजा-अर्चना से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. ज्योतिष के अनुसार, कालभैरव की पूजा करने से सभी नवग्रहों के दोष दूर होते हैं और उनका अशुभ प्रभाव कम होता है. कालाष्टमी के दिन आप इस व्रत से जुड़ी कथा जरूरी पढ़िए, क्योंकि बिना इसके पूजा पूरी नहीं मानी जाती है.
कालाष्टमी व्रत कथा - Kalashtami vrat katha
एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महेश के बीच कौन सबसे श्रेष्ठ इस बात को लेकर विवाद छिड़ गया. जिसे सुलझाने के लिए, देवताओं ने सभा बुलाई. सभा में, भगवान शिव ने अपनी एक ज्योति प्रकट की और ब्रह्मा और विष्णु से कहा कि जो भी इस ज्योति के अंत तक पहुंचेगा, वही श्रेष्ठ माना जाएगा. विष्णु जी ज्योति के अंत तक नहीं पहुंच पाए, लेकिन ब्रह्मा जी ने झूठ बोला कि वे ज्योति के अंत तक पहुंच गए हैं.
लेकिन भगवान शिव को सच्चाई पता थी, इसलिए उन्होंने विष्णु जी को श्रेष्ठ घोषित किया. इससे क्रोधित होकर ब्रह्मा जी ने भगवान शिव को अपशब्द कहे, जिससे शिवजी को क्रोध आ गया और उन्होंने अपने रौद्र रूप में काल भैरव को जन्म दिया.
शिव जी के रौद्र स्वरूप काल भैरव ने ब्रह्मा जी के पांचवें सिर को काट दिया. तब से ब्रह्माजी के पास 4 मुख हैं. इसके बाद ब्रह्मा जी ने काल भैरव से माफी मांगी जिसके बाद भगवान शिव अपने असली रूप में आए. लेकिन काल भैरव पर ब्रह्म हत्या का पाप लग गया था. इसके बाद भगवान शिव ने भैरव को इस पाप से मुक्ति पाने के लिए काशी में प्रायश्चित करने को कहा. जिसके बाद शिवनगरी काशी में, भैरव ने कोतवाल के रूप में भगवान शिव की सेवा की जिससे उन्हें ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली. इसलिए, कालाष्टमी के दिन भगवान भैरव की पूजा करने से भक्तों के सभी भय और कष्ट दूर होते हैं.
कैसा है काल भैरव का स्वरूप
शिव जी के इस अवतार का वाहन काला कुत्ता है, इनके एक हाथ में छड़ी है. इस अवतार को ‘महाकालेश्वर' के नाम से भी जाना जाता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)