Jitiya Vrat: जानिए कितने घंटे तक रखा जाएगा जीवित्पुत्रिका का निर्जला व्रत, यह है पूजा की विधि

Jitiya Vrat 2022: मान्यतानुसार संतान के लिए मां द्वारा इस व्रत को रखा जाता है. इस वर्ष कब और किस तरह रखा जा रहा है जीवित्पुत्रिका व्रत जानें यहां. 

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Jitiya Vrat Date: जानिए जीवित्पुत्रिका व्रत की सही तारीख यहां. 

Jitiya Vrat 2022: धार्मिक मान्यताओं के आधार पर हर साल माएं संतान प्राप्ति, संतान की दीर्घायु, आरोग्य और संतान की खुशहाली के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत (Jivitputrika vrat) रखती हैं. इस व्रत को आमतौर पर जितिया और जिउतिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है. इस वर्ष जीवित्पुत्रिका व्रत को लेकर कई तरह की आशंकाएं जता रही हैं जिनमें व्रत की असल तारीख और निर्जला व्रत रखने के समय को लेकर उलझन है. किसी का कहना है कि यह 17 को रखा जाएगा तो कोई 18 बता रहा है.

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जीवित्पुत्रिका व्रत का समय व मुहुर्त | Jitiya Vrat Time and Muhurt


पौराणिक कथाओं के अनुसार जीवित्पुत्रिका व्रत रखने के पीछे अश्मत्थामा का उत्तरा के गर्भ में जन्म लेना कारण था. कथा के अनुसार पांडवों से बदला लेने के लिए अश्वत्थामा उत्तरा के गर्भ में संतान बनकर आ गया. इस संतान से मुक्ति पाने के लिए ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल किया गया था. लेकिन, संतान का जन्म लेना आवश्यक था इसलिए भगवान कृष्ण ने बच्चे को गर्भ में जीवित कर दिया जिस चलते उसका नाम जीवित पुत्रिका रखा गया. यही बच्चा आगे चलकर राजा परीक्षित के नाम से मशहूर हुआ. मान्यतानुसार इसी कथा (Jitiya vrat katha) के आधार पर जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है. 


जीवित्पुत्रिका व्रत का सही समय 17 सितंबर बताया जा रहा है. असल में यह व्रत आमतौर पर 24 घंटे तक रखा जाता है. इस कारण दूसरे दिन पारण होता है जिससे उलझन की स्थिति बनी है. ज्योतिषनुसार, इस व्रत की शुरुआत 17 सितंबर को होगी और पारण अगले दिन शाम साढ़े छह बजे के बाद होगा, व्रत 24 घंटे से ज्यादा अवधि के लिए रखा जाना है. कई महिलाएं व्रत को 3 दिन तक रखती हैं जिस चलते व्रत रखने का समय 35 घंटे के आसपास तक हो सकता है. यह सर्वाद्ध सिद्ध योग में होने जा रहा है. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इस योग को बेहद शुभ माना जाता है. 

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कैसे होती है पूजा 

  • इस व्रत में मान्यतानुसार भगवान जीमूत वाहन की पूजा की जाती है. व्रत सामग्री में पेड़ा, पान, लौंग, दूर्वा, सुपारी, श्रृंगार का सामान, पुष्प, धूप, दीप, मिठाई, फल और गाय का गोबर आदि शामिल हैं. 
  • सुबह निवृत्त होकर स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण किए जाते हैं. फिर पूजा की सामग्री को इकट्ठा किया जाता है. 
  • भगवान जीमूतवाहन की विधि-विधान से पूजा होती है और कथा सुनी जाती है. 
  • अगले दिन व्रत का पारण होता है. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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