क्यों नहीं कांवड़िए यात्रा के दौरान लेते हैं एक दूसरे का नाम, जानिए आखिर कौन सी कांवड़ यात्रा होती है सबसे कठिन

Types of kawad : कांवड़ यात्रा मे सबसे कठिन यात्रा डाक कावड़ यात्रा होती है. इस यात्रा में कांवड़िए गंगा जल लेने के बाद कहीं नहीं रुकते हैं और 24 घंटे के अंदर भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं.

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Kanvar Yatra in Sawan: 22 जुलाई को सावन (Sawan) माह शुरू होने के साथ ही कांवड़ यात्रा (Kanvar Yatra) भी शुरू हो गई है. शिव भक्त गंगाजल लेकर पैदल यात्रा कर देश भर के शिव मंदिरों में भोलेबाबा (Lord Shiva) के दर्शन के लिए पहुंचने लगे हैं. इन कांवड़ यात्रा में भक्त 150 किमी से लेकर 200 किमी तक कि पैदल यात्रा करते हैं और गंगाजल से भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं. कांवड़ यात्रा के दौरान भक्त कई नियमों का पालन करते हैं ताकि यात्रा की पवित्रता बनी रही और यात्रा का माहौल भी भक्तिमय रहे. एक नियम के अनुसार यात्रा के दौरान भक्त एक दूसरे का नाम नहीं लेते हैं. आइए जानते हैं इस नियम का कारण और कौन सी कांवड़ यात्रा मानी जाती है सबसे कठिन….

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सभी सिर्फ शिव भक्त

कांवड़ यात्रा के दौरान यात्रा में शामिल सभी लोग केवल शिव भक्त होते हैं. यात्रा कर रहे सभी यात्री पूरी तरह शिव भक्ति में लीन रहते हैं और माहौल भी पूरी तरह शिवमय होता है. ऐसे में एक दूसरे का नाम नहीं लेकर उन्हें बम कह कर बुलाते हैं ताकि उनके मुंह से केवल शिव नाम का ही उच्चारण हो. भक्त एक दूसरे को बम, भोले, भोली कहते हैं और अनोखा रिश्ता बना लेते हैं.

बोल बम कांवड़

यह सबसे ज्यादा प्रचलित कांवड़ यात्रा है. इसमें यात्री बगैर जूते चप्पल की यात्रा करते हैं और थकान होने पर बैठकर आराम कर सकते हैं. कांवड़ को जमीन पर रखने की मनाही होती है इसलिए कांवड़ खास तरह के स्टैंड पर रखा जाता है.

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खड़ी कांवड़

खड़ी कांवड़ यात्रा में कांवड़ को स्थिर रखने की मनाही होती है. इसमें यात्री का एक सहयोगी भी होता है. यात्रा के दौरान यात्री के आराम करते समय सहयोगी कांवड़ ले लेता है. सहयोगी यात्री को लेकर हिलता डुलता रहता है ताकि कांवड़ को स्थिर न रहे.

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झूला कांवड़

यह बांस से बनाया खास तरह का कांवड़ होता है जिसमें दोनों छोर पर मटके रखने की व्यवस्था होती है. यात्री इन मटकों में गंगाजल भर लेते हैं. आराम करते समय झूला कांवड़ का नीचे रखना वर्जित होता है.

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डाक कांवड़

कांवड़ यात्रा मे सबसे कठिन यात्रा डाक कावड़ यात्रा होती है. इस यात्रा में कांवड़िए गंगा जल लेने के बाद कहीं नहीं रुकते हैं और 24 घंटे के अंदर भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं. ये सफेद रंग का वस्त्र धारण करते हैं, जो इनकी पहचान होती है और इनका मार्ग कोई नहीं रोकता है. शिव मंदिरों में भी इनके लिए विशेष मार्ग बनाए जाते हैं.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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