Holi 2022: रंगों और मस्ती से भरा हुआ त्योहार होली एक बार फिर करीब है. यह ऐसा दिन है जिसमें क्या बच्चे और क्या बड़े, सभी चाव से रंगों के इस त्योहार का आनंद उठाते हैं. घर में तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं. धुलंधी से एक रात पहले होलिका दहन होता है जिसमें होलिका की कथा भी सुनी जाती है. इस वर्ष होलिका दहन 17 मार्च और धुलंधी 18 मार्च को मनाई जाएगी. होली की मस्ती, शरारतें अपनी जगह हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि होली क्यों मनाई जाती हैं और क्या हैं इससे जुड़ी पौराणिक कथाएं? आइए जानें.
होली से जुड़ी पौराणिक कथाएं | Mythological Stories Behind Holi
हिरण्यकश्यप, प्रह्लाद और होलिका की कथा
ये कदाचित होली को लेकर सबसे प्रचलित कथा है. इस कथा के अनुसार राजा हिरण्यकश्यप (Hiranyakashyap) अपने अहंकार में इस तरह चूर थे कि स्वयं को ईश्वर मानने लगे थे, लेकिन उनके पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु (Lord Vishnu) का परम भक्त था. हिरण्यकश्यप को ये बात इतनी नागवार गुजरी कि उन्होंने प्रह्लाद (Prahlad) की हत्या करने की ठान ली. हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान था कि उसे अग्नि जला नहीं सकती. हिरण्यकश्यप के कहने पर प्रह्लाद को लेकर होलिका (Holika) अग्नि में बैठ जाती है, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से उनका भक्त प्रह्लाद बच जाता है और होलिका भस्म हो जाती है. ये घटना फाल्गुन पूर्णिमा के दिन हुई थी. मान्यता है कि तभी से होलिकोत्सव मनाया जा रहा है और होलिका दहन किया जाने लगा है.
राक्षसी ढुंढी की कहानी
पौराणिक काल में माना जाता है कि पृथु नाम के एक राजा हुआ करते थे. उनके राज्य में ढुंढी नाम की राक्षसी हुआ करती थी जो बच्चों को मार देती थी. ढुंढी को मारना लगभग असंभव था क्योंकि उसे वरदान प्राप्त था कि उसे किसी अस्त्र, शस्त्र से नहीं मारा जा सकता था. उसी समय राजा पृथु के राजपुरोहितों ने राक्षसी को मारने का एक अनोखा उपाय बताया. उपाय के अनुसार बच्चों ने फाल्गुन पूर्णिमा के दिन लकड़ियां एकत्रित कर उन्हें प्रज्वलित किया. राजपुरोहितों के मुताबिक बच्चों को देखकर राक्षसी आएगी और बच्चों के हंसने, शोर, नगाड़ों और हुडदंग की आवाजें उसके लिए काल साबित होंगी. ऐसा ही हुआ भी, होली के दिन इस योजना के अनुसार पृथु के राज्य को राक्षसी ढुंढी से मुक्ति मिली. तभी से फागुन पूर्णिमा को ये रस्में निभाई जाती हैं.
पूतना की कहानी
कहा जाता है कि कंस (Kans) ने बालक कृष्ण को मारने के लिए राक्षसी पूतना को भेजा. पूतना की योजना थी कि वह विषयुक्त स्तनपान कराकर बाल कृष्ण को मार देगी. लेकिन, लीलाधर की लीलाएं बाल रूप में ही आरंभ हो चुकी थीं. बालक कृष्ण पूर्णतः सुरक्षित रहे और पूतना मृत्यु को प्राप्त हुई. ये दिन फाल्गुन पूर्णिमा का था, इसी दिन कृष्ण के बचने की खुशी में लोगों ने रंगों के साथ जश्न मनाया जो एक परंपरा बन गया.
कामदेव को भस्म करने की रोचक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में तारकासुर नाम का एक राक्षस था जिसके अत्याचारों से देव काफी परेशान थे. एक वरदान के अनुसार तारकासुर का अंत भगवान शिव और पार्वती की संतान ही कर सकती थी. लेकिन, भगवान शिव तो अनंत तपस्या में लीन थे और उनकी तपस्या खत्म होने तक उनका पार्वती से विवाह होना और पुत्र की उत्पत्ति मुमकिन नहीं थी. ऐसे में कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या भंग की और नाराज शिव भगवान ने कामदेव को भस्म कर दिया. कामदेव की पत्नी रति ने अपने पति के लिए भगवान शिव से गुहार लगाई और उन्हें पूरी बात समझाई. रति (Rati) की गुहार सुनकर शिव भगवान ने कामदेव को फिर से जीवित कर दिया. ये फाल्गुन पूर्णिका का दिन था और इसी के बाद से इस दिन को होली के रूप में मनाया जाने लगा. माना जाता है बाद में शिव के पुत्र भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर देवों को उसके अत्याचार से मुक्ति दिलवाई.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)