Hartalika Teej Katha: इस कथा के बिना अधूरी मानी जाती है हरतालिका तीज की पूजा, पढ़ें यहां 

Hartalika Teej Puja Katha: हरतालिका तीज पर सुहागिन महिलाएं व्रत रखती हैं और पूरे मनोभाव से मां पार्वती और भगवान शिव का पूजन करती हैं. इस व्रत में मान्यतानुसार कथा पढ़ने के बाद ही पूजा संपन्न मानी जाती है. 

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Hartalika Teej Puja: भाद्रपद माह में रखा जाता है हरतालिका तीज का व्रत.

Hartalika Teej 2024: पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर हरतालिका तीज का व्रत रखा जाता है. हरतालिका तीज का व्रत विवाहित महिलाएं पति की लंबी आयु और कुंवारी लड़कियां अच्छे वर की चाह में रखती हैं. माना जाता है कि हरतालिका तीज पर पूरे मनोभाव से पूजा की जाए तो जीवन में सुख-समृद्धि आती है वैवाहिक जीवन खुशहाल बन जाता है. इस साल उदया तिथि के अनुसार 6 सितंबर के दिन हरतालिका तीज का व्रत (Hartalika Teej Vrat) रखा जा रहा है. हरतालिका तीज की पूजा में व्रत कथा का विशेष महत्व होता है. माना जाता है कि हरतालिका तीज पर व्रत की कथा पढ़ने के बाद ही व्रत संपन्न होता है. ऐसे में यहां पढ़िए हरतालिका तीज की पौराणिक कथा. 

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हरतालिका तीज की व्रत कथा | Hartalika Teej Vrat katha 

पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है जब भगवान शिव (Lord Shiva) कैलाश पर्वत पर मां पार्वती और नंदी के साथ बैठे थे और कई गण वहां मौजूद थे. मां पार्वती ने भोलेनाश से प्रश्न किया कि हे महेश्वर मेरे कौनसे पुण्य थे जिनके चलते आप मुझे पति के रूप में मिले हैं. मां पार्वती ने आगे कहा कि आप अंतर्यामी हैं तो आप इस प्रश्न का उत्तर अवश्य जानते होंगे. इसपर शिव शंकर बोले कि देवी, यह आपके उत्तम पुण्य थे जिनके चलते मैं आपको प्राप्त हुआ हूं. इसकी एक वजह भादो मास के शुक्ल पक्ष में किया गया तुम्हारा व्रत भी था. 

भगवान शिव ने मां पार्वती को बताया कि उन्होंने बारह वर्षों तक अधोमुखी होकर घोर तप किया था. मां पार्वती ने अन्न ना खाकर पेड़ों के पत्ते चबाकर, विकराल सर्दी में जल में प्रवेश कर तप किया था और जब वैशाख आया तो अपने शरीर को पंचाग्नि में जलाया था. 

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जब मां पार्वती (Ma Parvati) अपनी तपस्या में लीन थीं तब उनके पिता गिरिराज अपनी पुत्री के लिए अत्यधिक चिंतित हो गए थे. ऐसे में इस तपस्या को देखकर नारदजी मां पार्वती के घर पधारे. नारदजी का आदर सत्कार किया गया और उनसे यहां आने की वजह पूछी गई. इसपर नारदजी ने जवाब दिया कि आपकी कन्या के कठोर तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु आपकी पुत्री से विवाह करना चाहते हैं और मैं इसपर आपकी राय लेने आया हूं. नारदजी की बात से गिरिराज बेहद खुश हो गए. 

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जब मां पार्वती को विवाह के बारे में बताया गया तो वे बोलीं कि मैने अपने पूरे मन से भगवान शिव का वरण किया है और मैं अब इस धर्म संकट से कैसे निकलूं यह समझ नहीं पा रही हूं. इसपर मां पार्वती की सखी ने सुझाव दिया कि वे दोनों घोर जंगल की तरफ चलकर साधना करें जहां पिता गिरिराज भी उन्हें ना ढूंढ सकें. 

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घर में मां पार्वती को ना पाकर उनके पिता ने खोज शुरू करवाई. मां पार्वती नदी के तट पर एक गुफा में भगवान शिव की आराधना कर रही थीं. मां पार्वती ने इस दिन रेत से शिवलिंग बनाया था और व्रत रखा था, वे महादेव की स्तुति के गीत गा रही थीं. इस कठिन तपस्या को देखकर भगवान शिव वहां प्रकट हो गए. भगवान शिव ने मां पार्वती से मनचाहा वर मांगने के लिए कहा.

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मां पार्वती ने जवाब दिया कि मैने अपने ह्रदय से आपको ही पति माना है और मैं चाहती हूं कि आप मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार लें. इसपर महादेव ने तथास्तु कह दिया और चले गए. इसके पश्चात मां पार्वती घर लौटीं और पिता से सब हाल कह सुनाया. गिरिराज कुछ दिनों बाद मान गए. महादेव और मां पार्वती का विवाह हुआ और इसके बाद से ही मनोवांछित वर पाने और वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए हरतालिका तीज का व्रत रखा जाने लगा. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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