Sawan & Kavad yatra 2023 : शिव जी की भक्ति में डूबने वाला महीना सावन 4 जुलाई से शुरू हो चुका है. बीते 10 जुलाई दिन सोमवार को पहला सोमवार का व्रत रखा गया है भक्तों द्वारा. इस पवित्र महीने में व्रत करने के साथ भक्त कांवड़ में गंगाजल भरकर कांवड़ यात्रा (Kanwar yatra 2023) पर भी निकलते हैं. सावन के महीने में आखिर कांवड़ यात्रा पर निकलने के पीछे की धार्मिक मान्यता (kanwar yatra story) क्या है और पहले कांवड़िए कौन थे इसकी जानकारी डिटेल में हम इस आर्टिकल में आपको बताने वाले हैं.
पहले कांवड़िए कौन थे
मान्यता है कि सबसे पहले कांवड़ यात्रा भगवान परशुराम (Parshuram) ने की थी. मान्यता है कि उन्होंने कांवड़ में गंगाजल (gangajal) भरकर उत्तर प्रदेश के बागपत (Bagpat) के पास बना पुरा महादेव का जलाभिषेक (jalabhishek) किया था. मान्यता है कि यह गंगाजल भगवान परशुराम गढ़मुक्तेश्वर (Garhmukteshwar) से कांवड़ में भरकर लाए थे जिससे उन्होंने शिवलिंग (shivling) का अभिषेक किया था.
वहीं, पहले कांवड़िए में श्रवण कुमार (Shravan Kumar) का भी नाम आता है. मान्यता है कि श्रवण कुमार ने त्रेता युग में अपने नेत्रहीन माता-पिता को कांवड़ में बैठाकर तीर्थ यात्रा करवाई थी. उन्होंने कांवड़ में बैठाकर हरिद्वार में गंगा स्नान कराया और वापस जाते समय गंगाजल लेकर आए थे, तभी से कांवड़ यात्रा शुरू हुई.
कुछ प्रचलित मान्यताओं में भगवान राम को भी पहला कांवड़ यात्री माना गया है. बिहार राज्य के सुल्तानगंज से कांवड में गंगाजल भरकर बाबा धाम के शिवलिंग का अभिषेक किया था. तभी से कांवड़ यात्रा की शुरूआत मानी जाती है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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