Gaya Online Pind Daan: सनातन परंपरा में भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या के पितृपक्ष या श्राद्ध पक्ष कहा जाता है. इस दौरान हिंदू धर्म से जुड़े लोग अपने पितरों या फिर कहें परिवार के दिवंगत लोगों की मुक्ति के लिए विशेष रूप से श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करते हैं. इस श्राद्ध और पिंडदान का महत्व तब और अधिक बढ़ जाता है, जब आप इसे गया तीर्थ में जाकर करते हैं. इन दिनों गया में इसी पिंडदान को लेकर बवाल मचा हुआ है. स्थानीय पुरोहित जिन्हें गयापाल कहते हैं, वे ई-पिंडदान जैसी व्यवस्था का विरोध कर रहे हैं तो वहीं कुछ विद्वान इसके समर्थन में भी हैं. आइए ऑनलाइन पिंडदान से जुड़ी व्यवस्था के कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष दोनों को समझने की कोशिश करते हैं.
गया में हाल ही में बिहार सरकार के पर्यटन विभाग द्वारा ऑनलाइन पिंडदान की योजना प्रारंभ की गई है. इस स्कीम के तहत देश-विदेश में बैठा कोई भी व्यक्ति ऑनलाइन पिंडदान की व्यवस्था का लाभ उठाते हुए घर बैठे ही अपने पितरों के पिंडदान का कर्म करवा सकता है. ई-पिंडदान की व्यवस्था का जहां कुछ लोग समर्थन कर रहे हैं वहीं विष्णुपद मंदिर क्षेत्र में रहने वाला गयापाल समाज इसका पुरजोर विरोध कर रहा है. गया के स्थानीय पुरोहित पंडित गौतम गायब सवाल उठाते हैं कि जो लोग इस व्यवस्था का समर्थन कर रहे हैं क्या वे किसी को ऑनलाइन गंगा में डुबकी लगवा सकते हैं? क्या सरकार इसी प्रकार लोगों को ऑनलाइन हज करवा सकती है?
सिर्फ आजीविका का सवाल नहीं है
पंडित गौतम के अनुसार जब किसी दिवंगत व्यक्ति की संतानें इस पावन क्षेत्र में आएंगी ही नहीं, उनका पिंड इस पवित्र भूमि में भगवान के श्री चरणों पर गिरेगा ही नहीं तो फिर उन्हें मुक्ति कैसे मिलेगी? उनके अनुसार शास्त्रों में पितृ कार्य को गया में जाकर किसी योग्य पुरोहित द्वारा कराने की बात कही गई है. विशेष परिस्थिति में व्यक्ति अपने बंधु-बांधव या फिर अपने पुरोहित को भेजकर इस कर्म को पूरा करवाता था, लेकिन आज सरकार तकनीक और सुविधा के नाम पर तमाम धार्मिक क्षेत्रों की तरह यहां पर अपना कब्जा जमाना चाहती है. उनका तर्क है कि सवाल गयापाल समाज की आजीविका का ही नहीं बल्कि अयोग्य लोगों द्वारा श्राद्ध कर्म कराये जाने से भी जुड़ा हुआ है.
पितृ कर्म करने और कराने वालों को होगा नुकसान !
हरिद्वार के पुराहित के सिद्धार्थ चक्रपाणि के अनुसार सनातन में प्रत्येक वर्ग के लिए अपनी-अपनी जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं. इसके तहत ब्राह्मण समाज को देवताओं और पितरों से जुड़े विशेष कार्यों को संपन्न कराने की जिम्मेदारी दी गई है. आप जब ब्राह्मणों के द्वारा पितृ कर्म करवाते हैं तो उसका पुण्यफल पितरों तक पहुंचता है. उनका तर्क है कि देवता और पितृ मंत्रों के आधीन है और मंत्र ब्राह्मण के अधीन हैं. यही कारण है कि ब्राह्मणों को पितृपक्ष में श्राद्ध आदि कराने का अधिकार दिया गया था. इसके पीछे मूल भावना ये थी कि देवताओं का हव्य और पितरों का कव्य पितरों तक पहुंच जाए. पं. सिद्धार्थ चक्रपाणि कहते हैं कि ई-पिंडदान जैसी व्यवस्था से न सिर्फ इस कर्म को परंपरागत रूप से कराने वाला पुरोहित समाज खत्म होता जाएगा बल्कि इस कर्म को कराने वाले लोग भी कम होते चले जाएंगे.
क्या कहते हैं धर्मशास्त्र?
प्रोप्रो. राम राज उपाध्याय कहते हैं कि देश-काल परिस्थिति के अनुसार आज परंपराओं में कई जगह बदलाव देखने को मिल रहे हैं. ऑनलाइन पिंडदान को वे एक विकल्प के रूप में देखते हैं. उनके अनुसार इस प्रक्रिया में धन तो उसी पितर की संतान लग रहा है, जिसके लिए करवाया जा रहा है. ऐसे में यदि कोई यजमान किसी को प्रतिनिधि बनाकर पूजा करवाता है तो कोई बुरा नहीं है क्योंकि श्राद्ध कर्म न होने की बजाय किसी के द्वारा होना ज्यादा उचित है. यह सुविधा विदेश में बैठे लोगों और शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए बहुत अच्छी है.
किन्हें नहीं मिलेगा पुण्य?
धर्मशास्त्र के मर्मज्ञ प्रो. राम राज के अनुसार किसी कर्म के न होने से बेहतर है कि उसे हम दूसरे माध्यमों से करवा लें. हालांकि वे इस बात को भी स्वीकार करते हैं कि किसी दिवंगत व्यक्ति की संतान की बजाय दूसरे व्यक्ति द्वारा किया जाने वाला श्राद्ध उतना फलदायक नहीं होगा, जितना कि उसे होना चाहिए. प्रो. राम राज का तर्क ये भी है कि जो लोग गया जाकर श्राद्ध कर्म करने में सक्षम हैं और वे ऐसा नहीं कर रहे हैं तो उन्हें निश्चित रूप से इसका पुण्यफल नहीं मिलेगा.
बहरहाल, सवाल सिर्फ ई-पिंडदान तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह यक्ष प्रश्न देश के उन तमाम धार्मिक संस्थाओं और देवस्थानों से भी जुड़ा है, जो आनलाइन पैसा लेकर पूजा से लेकर आरती जैसी सुविधा लोगों को प्रदान कर रहे हैं. सवाल सिर्फ ऐसी पूजाओं के माध्यम से मिलने वाले पुण्यफल भर का भी नहीं है बल्कि ऐसे धार्मिक कार्यों के निमित्त दिये जाने वाले धन की पवित्रता का भी है, जो लोगों के द्वारा अक्सर खर्च किया जाता है. इन विवादों के बीच सरकार का दावा है कि इस योजना से पंडो का अहित नहीं होने देंगे.
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कौन हैं गया पाल ब्राह्मण?
गयापाल ब्राह्मण आपको गया में ही मिलेंगे. पंडित गौतम के अनुसार यहां पर उनकी जनसंख्या तकरीबन 4000 से 4500 के बीच है. गयापाल ब्राह्मण अपने बच्चों की शादी गया क्षेत्र के बाहर जाकर कभी नहीं करते हैं. गयापाल स्वयं को ब्रह्मा जी का मानस पुत्र मानते हैं. उनका कहना है कि गया जी का दान लेने के लिए ही ब्रह्मा जी ने यज्ञ के दौरान उन्हें उत्पन्न किया था. तब से लेकर आज तक गयापाल ब्राह्मण यहां पर श्राद्धकर्म से मिलने वाले दान से ही अपना जीवन यापन करता चला आ रहा है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)