Bhuvaneshvari Jayanti 2025: कौन हैं भुवनेश्वरी देवी? जानें माथे पर चंद्रमा धारण करने वाली देवी की पूजा विधि और महाउपाय

Bhuvaneshvari Jayanti 2025: सनातन परंपरा में मां भुवनेश्वरी की जयंती कब मनाई जाती है? दस महाविद्या में से एक भुवननेश्वरी देवी की पूजा करने पर किस फल की प्राप्ति होती है? मां भुवनेश्वरी की पूजा विधि और उससे जुड़े उपाय जानने के लिए जरूर पढ़ें ये लेख.

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Bhuvaneshvari Jayanti 2025: भुवनेश्वरी देवी की पूजा विधि और महाउपाय

Bhuvaneshvari Jayanti 2025 Puja Vidhi: मस्तक पर चंद्रमा, चार भुजाएं और चेहरे पर दिव्य तेज ही माता भुवनेश्वरी देवी की बड़ी पहचान है. दस महाविद्या में चौथी देवी मानी जाने वाली मां भुवनेश्वरी की साधना जीवन के सभी सुख, शक्ति और सामर्थ्य प्रदान करती है. मां भुवनेश्वरी को पूरे ब्रह्मांड की महारानी माना जाता है, जिनकी कृपा होने पर साधक को भूमि, भवन और सभी राजसी सुख प्राप्त होते हैं. भगवान शिव की शक्ति मानी जाने वाली मां भुवनेश्वरी की जयंती आज भाद्रपद मास के द्वादशी तिथि को मनाई जा रही है. आइए देवी के दिव्य स्वरूप की पूजा विधि, उपाय और उसके लाभ के बारे में विस्तार से जानते हैं. 

भुवनेश्वरी देवी की पूजा विधि

भुवनेश्वरी जयंती पर देवी के पावन स्वरूप की पूजा करने के लिए साधक को प्रात:काल स्नान-ध्यान करने के बाद देवी के चित्र या मूर्ति को एक चौकी पर लाल रंग के आसन पर स्थापित करना चाहिए. इसके बाद माता को गंगाजल से स्नान कराएं और उसके बाद देवी लाल पुष्प, रोली, चंदन, अक्षत और रुद्राक्ष विशेष रूप से अर्पित करें. इसके बाद देवी की कथा कहें और मां भुवनेश्वरी के मंत्र 'ॐ ऐं ह्रीं श्रीं नमः' को रुद्राक्ष की माला से जपें.

भुवनेश्वरी देवी जयंती पर 10 साल से कम उम्र की कन्या को भोज कराने का बहुत ज्यादा पुण्यफल माना गया है. इस दिन नवरात्रि की तरह कन्या को आमंत्रित करके उसके पैर धोएं और उनके पैर में आलता लगाने के बाद उनका पूजन पुष्प, रोली, अक्षत आदि से करें. इसके बाद अपने भोज कराकर अपने सामर्थ्य के अनुसार धन, फल, वस्त्र आदि देकर विदा करें. 

भुवनेश्वरी जयंती की कथा 

पौराणिक मान्यता के अनुसार एक समय जब दुर्गम नाम के राक्षस से क्या मनुष्य और क्या देवता सभी परेशान हो गये तो सभी देवी-देवताओं और ब्राह्मणों ने मिलकर हिमालय पर्वत जाकर देवी भुवनेश्वरी की साधना शुरु कर दी. जिनकी प्रार्थना और साधना से प्रसन्न होकर देवी स्वयं कमल के फूल, शाक-सब्जी, कंद-मूल आदि लेकर प्रकट हुईं.

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माता ने अपने नेत्रों से सहस्त्र जलाधारा प्रवाहित कर दिया, जिससे सभी नदियां, सरोवर और समुद्र जल से भर गये. माता की कृपा से सभी प्राणी तप्त हो गये. इसे बाद देवी भुवनेश्वरी ने दुर्गम नाम के राक्षस से युद्ध करके उसे पराजित किया. मान्यता है कि दुर्गम नाम के राक्षस का वध करने के कारण ही दुर्गा नाम से पूजी गईं. 

भुवनेश्वरी जयंती का धार्मिक महत्व

सनातन परंपरा में भुवनेश्वरी जयंती देवी को राज राजेश्वरी पराम्बा के नाम से भी पूजा जाता है. हिंदू मान्यता के अनुसार भुवनेश्वरी जयंती के दिन देवी पृथ्वी पर आती हैं. यही कारण है कि उनके भक्त उनका आशीर्वाद पाने के लिए इस दिन विधि-विधान से पूजन करते हैं. मान्यता है कि देवी अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर उन्हें ज्ञान, विवेक, अभय और धन-संपत्ति समेत सभी सिद्धियां प्रदान करती हैं.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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