Bhishma Panchak: कार्तिक माह के अंतिम पांच दिन भीष्म पंचक या विष्णु पंचक कहलाते हैं. ये पांच दिन देव उठनी एकादशी से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा के दिन समाप्त होते हैं. पांच दिन तक चलने वाले इस व्रत को करने और भीष्म पंचक व्रत कथा (Bhishma Panchak Vrat Katha) का पाठ करने से भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति और भगवान कृष्ण की परम भक्ति का लाभ प्राप्त होता है. पांच दिन लगातार इस कथा का पाठ करने से सभी मनाकामनाएं पूरी हो जाती हैं. आइए जानते हैं क्या है भीष्म पंचक व्रत कथा और किसने किया था इसका पाठ.
एकादशी पर विष्णु चालीसा का पाठ करना माना जाता है बेहद शुभ, मान्यतानुसार दुखों से मिलती है मुक्ति
भीष्म पंचक व्रत कथा का पाठ
मान्यता है कि भीष्म पंचक व्रत कथा का पाठ सबसे पहले ऋषि वशिष्ठ, ऋषि भृगु और ऋषि गर्ग ने किया था. इसके बाद महाराजा अंबरीश ने सभी राजसी सुखों का त्याग कर इस व्रत का पालन किया था. भीष्म पंचक व्रत कथा गंगा माता और शांतनु पुत्र भीष्म को समर्पित है.
महात्मा व्यास ने राजा परीक्षित को भीष्म पंचक व्रत कथा सुनाई थी. कथा के अनुसार, प्राचीन समय में कानपुर में सोमेश्वर नाम का एक निर्धन ब्राह्मण रहता था. शरीर दुर्बल सोमेश्वर भगवान विष्णु (Lord Vishnu) का परम भक्त था. वह कार्तिक में पूरे माह गंगा स्नान कर भगवान विष्णु की पूजा करता था. एक बार बीमार होने के कारण वो किसी तरह गंगा किनारे तो पहुंच गया लेकिन घाट की सीढ़यां नहीं उतर पाया. वह वहीं अराधना करने लगा. भगवान विष्णु वृद्ध ब्राह्मण के रूप में वहां पहुंचे और सोमेश्वर से पूछा कि इस अवस्था में तुम यहां क्यों आए हो. इस पर निर्धन ब्राह्मण ने कहा कि वह उन्हें दुखों का अंत करने का उपाय बताएं.भगवान ने कहा कि कार्तिक माह में एकादशी से पूर्णिमा तक पांच दिन को भीष्म पंचक कहा जाता है. इन पांच दिनों तक अगर गंगा पुत्र भीष्म को जलदान किया जाए, गंध, अक्षत, पुष्प पूजा किया जाए और भगवान विष्णु की पूजा की जाए तो सभी दुख दूर हो सकते हैं.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)