जानिए कब है अंदल जयंती, कैसे होती है इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा

Goddess Lakshmi : अंदल जयंती के अवसर पर तमिलनाडु के हर विष्णु मंदिर में दस दिन तक उत्सव मनाया जाता है. इस दौरान देवी अंदल और भगवान रंगनाथ के विवाह का उत्सव होता है.

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घरों और मंदिरों में देवी अंदल की पूजा की जाती है. मंदिरों में शक्ति के सभी रूपों को नई चूड़ियां चढ़ाई जाती हैं.

Andal Jayanthi 2023 Date: अंदल जयंती (Andal Jayanthi) या आदिपुरम (Aadi Pooram) का उत्सव देवी अदंल को समर्पित है. मान्यता है कि देवी अंदल मां लक्ष्मी (Goddes Lakhmi) का अवतार हैं और अंदल जयंती उनके जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है. अंदल जयंती तमिल माह ‘आदि' में मनाए जाने के कारण इसे आदिपुरम भी कहते हैं. इस वर्ष 22 जुलाई शनिवार (Andal Jayanthi day) को अंदल जयंती मनाई जाएगी. आइए जानते हैं अंदल जंयती से जुड़ी कथा (Andal Jayanthi katha) और मान्यताएं. 

तमिलनाडु में प्रसिद्ध है देवी अंदल की कथा

10वीं सदी में तमिलनाडु में जन्म लेने वाली देवी अंदल विष्णु के रूप भगवान रंगनाथ के प्रति अपनी श्रद्धा और भक्ति के लिए प्रसिद्ध हैं. विष्णु भगवान के प्रति उनकी भक्ति ने उन्हें देवी का दर्जा दिलाया है. उन्होंने विष्णु भगवान की भक्ति में 'एं थिरुप्पवाई और नाच्सियर तिरुमोली' धार्मिक रचना लिखी हैं. थिरुप्पवाई कुल 30 छंदों और नाच्सियर तिरुमोली कुल 143 छंदों की धार्मिक रचनाएं हैं. माना जाता है कि इस त्योहार के अंतिम दिन मन और भक्ति भाव से पूजा करने से अविवाहित लड़कियों का मनचाहा वर मिलता है. अगर अंतिम दिन का त्योहार शुक्रवार को आता है तो इसे शुभ संकेत माना जाता है.

देवी अंदल और भगवान रंगनाथ से जुड़ी कथा

देवी अंदल ने 15 वर्ष की आयु में ही भगवान रंगनाथ के प्रति उच्च कोटि की भक्ति भावना प्रकट की थी. उन्होंने भगवान रंगनाथ के अलावा किसी और से विवाह करने से इंकार कर दिया था. प्राचीन कथा के अनुसार कुछ लोग देवी अंदल के पिता के पास गए और कहा कि उन्हें भगवान रंगनाथ सपने में आकर अंदल को दुल्हन बनाकर, उनके मंदिर ‘श्रीरंगम' में लाने को कहा है. तमिलनाडु में श्रीरंगम मंदिर भगवान रंगनाथ का बहुत ही पवित्र मंदिर हैं. जब देवी अंदल दुल्हन के रूप में श्रीरंगम मंदिर में पहुंची, तो वे प्रकाश रूप में बदल कर भगवान विष्णु की प्रतिमा में विलीन हो गईं. 

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मदिंरों में दस दिन उत्सव

अंदल जयंती के अवसर पर तमिलनाडु के हर विष्णु मंदिर में दस दिन तक उत्सव मनाया जाता है. इस दौरान देवी अंदल और भगवान रंगनाथ के विवाह का उत्सव होता है. उत्सव के अंतिम दिन को आदिपुरम कहते हैं.

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धार्मिक रीति रिवाज

घरों और मंदिरों में देवी अंदल की पूजा की जाती है. मंदिरों में शक्ति के सभी रूपों को नई चूड़ियां चढ़ाई जाती हैं. बाद में इन चूड़ियों को भक्तों में बांट दिया जाता है. देवी को लाल रंग के वस्त्र, कमल के फूल और कुमकुम चढ़ाया जाता है.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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