मेन स्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया पर आज एक चर्चा सुर्ख़ियों में बनी हुई है. वो ये कि क्या पाकिस्तान के सरगोधा एयर बेस के काफी करीब किराना हिल्स, जहां पहाड़ियों के अंदर सुरंगों में उसके परमाणु हथियारों को रखा गया है, वहां से न्यूक्लियर रेडिएशन निकल रही हैं. ऐसी चर्चा क्यों शुरू हुई है, इसे लेकर पाकिस्तान और दुनिया में क्या चल रहा है. एनडीटीवी एक्स्प्लेनर में आज हम करेंगे इसी मुद्दे की गहराई से पड़ताल. लेकिन उससे पहले आपको बता दें कि भारत ने सर्वोच्च स्तर पर पाकिस्तान को ये साफ़ कर दिया है कि उसका न्यूक्लियर ब्लैकमेल अब नहीं चलेगा.
दरअसल, सीमापार आतंकवाद, आतंकियों के आकाओं को पालने पोसने और पहलगाम जैसी आतंकी घटनाओं के ज़रिए भारत में निर्दोष नागरिकों को निशाना बनाने वाला पाकिस्तान भारत को आंख दिखाते वक़्त जिस एक बात को लेकर सबसे ज़्यादा धौंस दिखाता रहा है, वो ये कि वो एक परमाणु ताक़त है.
अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का घोर उल्लंघन
भारत के साथ होड़ में पाकिस्तान ने अपनी परमाणु ताक़त को हासिल करने के लिए क्या नहीं किया. यहां तक कि चोरी और तस्करी भी. पाकिस्तान की परमाणु ताक़त के पिता माने जाने वाले वैज्ञानिक अब्दुल क़ादिर ख़ान पर टैक्नोलॉजी की चोरी के कई आरोप लगे. जैसे यूरोपियन कंपनी URENCO से यूरेनियम एनरिचमेंट से जुड़े ब्लूप्रिंट की चोरी तक. इसी कंपनी में अब्दुल क़ादिर ख़ान काम किया करते थे. अब्दुल क़ादिर ख़ान ने ये भी माना कि न्यूक्लियर टैक्नोलॉजी को उन्होंने ईरान, लीबिया और उत्तर कोरिया तक को पहुंचाया जो अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का घोर उल्लंघन है. खैर चोरी से हासिल इस टैक्नोलॉजी के दम पर पाकिस्तान हमेशा भारत को धमकाने की कोशिश करता रहा है.
'पाकिस्तान का न्यूक्लियर ब्लैकमेल अब नहीं सहेगा भारत'
पाकिस्तान में पिछली सरकारों में ज़िम्मेदार पदों पर रहे नेताओं, मंत्रियों से लेकर अभी तक के नेताओं, मंत्रियों के बयान इसका उदाहरण रहे हैं. ऑपरेशन सिंदूर के तहत पहले आतंकियों के ठिकानों और उसके बाद पाकिस्तानी वायुसेना के ग्यारह एयरबेसेस पर सटीक निशाना लगाने और उन्हें भारी नुक़सान पहुंचाने के बाद भारत ने साफ़ कर दिया है कि वो पाकिस्तान का न्यूक्लियर ब्लैकमेल अब नहीं सहेगा.
24 घंटे में दूसरी बार प्रधानमंत्री मोदी ने ये बात दोहराई. पहले राष्ट्र के नाम संबोधन में और दूसरे आज सुबह आदमपुर एयरबेस में सैनिकों से मुलाक़ात के बाद. आदमपुर एयरबेस वही है जिसे नुक़सान पहुंचाने को लेकर पाकिस्तान के झूठे दावों का पर्दाफाश हो चुका है. आज आदमपुर एयरबेस से प्रधानमंत्री ने एक बार फिर साफ़ किया कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान में आतंक के आकाओं को अब समझ आ गया है कि भारत की ओर नज़र उठाने का एक ही अंजाम होगा, तबाही. ज़ुल्म ढाने का एक ही अंजाम होगा, विनाश और महाविनाश. उन्होंने भारत द्वारा बनाए गए न्यू नॉर्मल में जिन तीन सूत्रों का ज़िक्र किया उसमें ये भी शामिल है कि भारत न्यूक्लियर ब्लैकमेल नहीं सहेगा.
पीएम मोदी ने कहा कि पहला भारत पर आतंकी हमला हुआ, तो हम अपने तरीके से , अपनी शर्तों पर, अपने समय पर जवाब देेंगे. दूसरा कोई भी न्यूक्लियर ब्लैकमेल भारत नहीं सहेगा. तीसरा हम आतंक की सरपरस्त सरकार और आतंक के आकाओं को अलग अलग नहीं देखते.
अब पाकिस्तान की ओर से न्यूक्लियर ब्लैकमेल, परमाणु गीदड़भभकी अब भारत नहीं सहेगा, ये भी न्यू नॉर्मल का हिस्सा है. भारत-पाक रिश्तों की इस नई सच्चाई के बीच पाकिस्तान में एक चर्चा बहुत ही तेज़ चल रही है. बल्कि दुनिया भर के सोशल मीडिया में ये चर्चा बनी हुई है. चर्चा ये है कि पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के सरगोधा एयरबेस के क़रीब किराना हिल्स यानी किनारा की पहाड़ियों पर कुछ ऐसा हो रहा है जो ख़तरनाक हो सकता है.
पूरी तरह बॉम्ब प्रूफ़ बनाया गया
बता दें किनारा हिल्स अस्सी के दशक तक पाकिस्तान द्वारा परमाणु परीक्षणों के लिए तय की गई जगह थी. गूगल अर्थ के ज़रिए हम आपको सरगोधा एयर बेस दिखा रहे हैं. यहां से उत्तर पश्चिम की ओर क़रीब आठ किलोमीटर दूर किराना हिल्स इलाका है. मज़बूत चट्टानों से बनी एक पहाड़ी जो अलग ही नज़र आती है. इसके काले-भूरे रंग के कारण स्थानीय लोग काली पहाड़ी भी कहते रहे हैं. ये बहुत ऊंची नहीं है. इसकी सबसे ऊंची चोटी महज़ 320 मीटर ऊंची है. लेकिन इस पहाड़ी की ख़ासियत ये है कि इसके नीचे बनी कई सुरंगों में पाकिस्तान ने अपने कई परमाणु हथियार दुनिया की नज़रों से बचाकर रखे हुए हैं. इन सुरंगों को काफ़ी पुख़्ता बनाया गया है ताकि बाहर से किसी विस्फोट या हमले का उस पर कोई असर न पड़े. यानी इसे पूरी तरह बॉम्ब प्रूफ़ बनाया गया है.
जानकारों के मुताबिक किनारा हिल्स की ढलानों पर क़रीब पचास से ज़्यादा जगहों पर पहाड़ों में सुरंगें बनी हुई हैं जो काफ़ी अंदर और नीचे तक जाती हैं... Pakistan Institution of Nuclear Science & Technology (Pinstech), Metallurgical Laboratories (ML), और Khan Research Laboratories (KRL) ने यहां परमाणु अनुसंधान से जुड़े कई प्रयोग किए हैं.1983 से 1990 के बीच पाकिस्तान ने कई बार यहां परमाणु परीक्षणों की कोशिश की लेकिन अमेरिका के उपग्रहों ने इसका पता लगा लिया. इसके बाद अमेरिका की आपत्ति के बाद अमेरिका ने परमाणु परीक्षणों की जगह बदल दी. लेकिन इस जगह को उसने अपने परमाणु हथियारों का जखीरा सुरक्षित रखने के लिए तय किया. पाकिस्तान ने चीन से हासिल M 11 मिसाइलों को भी यहां रखा था लेकिन जब अमेरिका को पता लगा तो उनकी जगह भी बदल दी गई.
न्यूक्लियर ठिकानों में इंजीनियरिंग के काम से जुड़ी पाकिस्तानी सेना की ख़ास यूनिट Special Works Development (SWD) ने इस इलाके में कई सुरंगें तैयार की हैं जो पांच से 15 मीटर तक चौड़ी हैं. कई रिपोर्ट्स के मुताबिक ये भी लगता है कि किराना हिल्स के नीचे कुछ सुरंगें आपस में जुड़ी हुई हैं. किनारा हिल्स के अंदर ये स्ट्रक्चर काफ़ी मज़बूत बनाया गया है. सुरंग की दीवारें ढाई से पांच मीटर तक चौड़ी बनाई गई हैं जिन्हें तीन स्तरों पर आरसीसी, स्टील वगैरह से मज़बूत किया गया है. ताकि बाहर से किसी हमले का असर न पड़े. अमेरिका के उपग्रहों की निगाह से बचने के लिए यहां सुरंग बनाने का काम रात में हुआ करता था.
किराना हिल्स का किस्सा. हुआ ये है कि भारत ने जब से पाकिस्तान के ग्यारह एयरबेस पर हमला किया तब से एक अफ़वाह ये भी चल पड़ी है कि भारत ने किराना हिल्स पर भी हमले किए जहां पाकिस्तान ने परमाणु हथियार रखे हुए हैं. हालांकि, भारत ने ये बहुत ही साफ़ बता दिया कि उसने कहां कहां हमले किए और उन हमलों से हुए नुक़सान की सैटलाइट तस्वीरें भी दीं. सरगोधा एयरबेस भी भारत के हमले का निशाना बना. लेकिन हमले के बाद भारत ने ये भी साफ़ कर दिया कि उसने किराना हिल्स पर कोई हमला नहीं किया. ये बात पहले भारतीय सैन्य अधिकारियों ने कही और फिर आज विदेश मंत्रालय ने भी उसे दोहरा दिया.
सोशल मीडिया पर फिर भी ये चर्चा चल ही रही है. कई वीडियो दिखाए जा रहे हैं जिनकी हम पुष्टि नहीं कर सकते. इस मामले को हवा मिलनी तब और भी तेज हुई जब एक ख़ास विमान Beechcraft B350 AMS पाकिस्तान की वायुसीमा में उड़ता दिखा. Tail number N111SZ वाले इस विमान को फ़्लाइट रडार पर निगाह रखने वालों ने देखते ही सोशल मीडिया पर सवाल किया कि ये विमान पाकिस्तान की सीमा में क्यों हैं. क्योंकि ये विमान अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ़ एनर्जी का बताया गया जो Aerial Measuring System (AMS) में अपनी भूमिका के लिए जाना जाता है. यानी इस विमान को किसी इलाके में न्यूक्लियर रेडिएशन लीक होने की पुख़्ता जांच के लिए भेजा जाता है और वो साथ ही ये भी पता करता है कि अगर न्यूक्लियर रेडिएशन लीक हुआ है तो उसका असर कितना व्यापक हो सकता है.
अमेरिका के इस B350 AMS aircraft को गामा रे सेंसर्स, रियल टाइम डेटा ट्रांसमिशन सिस्टम और आधुनिक geographic mapping tools से लैस बताया गया. ये काफ़ी नीचे और काफ़ी कम रफ़्तार पर भी उड़ान भर सकता है ताकि किसी इलाके में रेडिएशन लीक का पता लगाया जा सके. मीडिया में आई जानकारियों के मुताबिक ये विमान फुकुशिमा परमाणु हादसे और अमेरिका के परमाणु परीक्षणों के बाद इस्तेमाल किया गया है. इस बीच सोशल मीडिया में कुछ लोगों ने तथ्यों को गहरा छानकर निकाला और ये बताया कि ये विमान 2010 में अमेरिका द्वारा पाकिस्तान सेना की एविएशन विंग को दिया गया था. इससे ये भी चर्चा हुई कि या तो पाकिस्तान ने खुद ही इस विमान को तैनात किया है या अमेरिका और पाकिस्तान ने संभावित रेडिएशन की जांच के लिए इसका मिलकर इस्तेमाल किया है.
सोशल मीडिया पर इसे लेकर चर्चा गरम ही थी कि इसी सबके बीच इसी मुद्दे को हवा देने से जुड़ी एक और चर्चा चल पड़ी. फ़्लाइट रडार डॉट कॉम पर पैनी निगाह रखने वाले सोशल मीडिया के माहिरों ने मिस्र का एक विमान भी पाकिस्तान के अंदर घूमता देखा. इस विमान EGY1916 को लेकर ये चर्चा चल पड़ी कि पाकिस्तान और अमेरिका ने इसे तुरंत मंगाया है और इसमें मिस्र से बोरोन से जुड़े कम्पाउंड मंगाए गए हैं. मिस्र में नील नदी के डेल्टा में बोरोन काफ़ी मात्रा में पाया जाता है और इसका इस्तेमाल अन्य कामों के अलावा रेडिएशन पर नियंत्रण पाने में किया जाता है.
बस फिर क्या था सोशल मीडिया में चर्चाएं नए सिरे से तेज़ हो गईं. बोरोन एक रसायनिक तत्व है जो जब क्रिस्टल की शक्ल में होता है तो काला, भुरभुरा, हल्की आभा लिए होता है. न्यूट्रॉन्स को Absorb यानी अवशोषित करने के गुण के कारण इसका इस्तेमाल रेडिएशन के दौरान किया जाता है. इसी खूबी के कारण न्यूक्लियर रिएक्शन को नियंत्रण में रखने और रेडिएशन से बचाव के लिए इसका इस्तेमाल होता है.
किसी न्यूक्लियर इमरजेंसी में बोरिक एसिड या बोरोन कार्बाइड का इस्तेमाल न्यूक्लियर रिएक्टर्स को काबू में रखने और ठंडा करने में इस्तेमाल किया जाता है. जैसे अप्रैल, 1986 में चेर्नोबिल परमाणु हादसे में न्यूक्लियर फिशन रिएक्शन को धीमा करने के लिए इसे काफ़ी मात्रा में गिराया गया था. इसके अलावा मार्च 2011 में सुनामी के बाद जापान के फुकुशिमा डायटी न्यूक्लियर प्लांट हादसे पर काबू भी जब हाथ के बाहर हो गया था तो न्यूक्लियर चेन रिएक्शन को धीमा करने के लिए बोरिक एसिड और बोरोन कार्बाइड जैसे कैमिकल कम्पाउंड रिएक्टर और spent fuel pools में इंजेक्ट किए गए थे. ये तो हुई परमाणु हादसों की बात लेकिन वैसे न्यूक्लियर रिएक्टर्स में आम तौर पर कंट्रोल रॉड्स में बोरोन का इस्तेमाल होता है ताकि ये न्यूक्लियर फिशन यानी परमाणु विखंडन के दौरान होने वाले चेन रिएक्शन को न्यूट्रॉन्स को अवशोषित कर नियंत्रण में रख सके या nuclear fission के प्रोसेस को धीमा कर सके.
बोरोन से जुड़े कम्पाउंड जैसे बोरिक एसिड बोरोन कार्बाइड रेडिएशन एक्सपोज़र से बचाने में इस्तेमाल किये जाते हैं. कुल मिलाकर न्यूट्रॉन्स को absorb करने की क्षमता के कारण ये रेडिएशन पर नियंत्रण पाने का अहम तरीका मानी जाती है. इसी खूबी के कारण Targeted radiation therapy जैसे इलाज में इसका इस्तेमाल होता है जैसे Boron Neutron Capture Therapy (BNCT) में इसका इस्तेमाल होता है.
पाकिस्तान में मिस्र द्वारा बोरोन मंगाए जाने की ख़बरें सोशल मीडिया में ही छाई हुई हैं, अभी तक वहां की सरकार की ओर से किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया इस पर नहीं आई है. रेडिएशन से जुड़ी कोई आधिकारिक चेतावनी पाकिस्तान ने जारी नहीं की है. इसके अलावा इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी यानी IAEA जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने भी अभी तक इस मामले पर कोई टिप्पणी नहीं की है.
पाकिस्तान के किनारा हिल्स में रेडिएशन की ख़बर ही काफ़ी नहीं थी कि बीते तीन दिन में पाकिस्तान में आए तीन भूकंपों ने ऐटमी हथियारों से जुड़ी ख़बर को मरने नहीं दिया. पाकिस्तान में पहले 4.7, फिर 4 और कल 4.6 की तीव्रता के भूकंप आए. सोशल मीडिया पर चल गया कि पाकिस्तान ने परमाणु परीक्षण किए हैं. जिसकी वजह से ये भूकंप आए. लेकिन भूकंप वैज्ञानिकों ने साफ़ कर दिया कि ये कुदरती भूकंप हैं और इनका परमाणु परीक्षणों से कोई लेना देना नहीं है. अगर किसी भूमिगत परमाणु परीक्षण की वजह से धरती हिलती है तो उसका सिग्नेचर बिलकुल अलग होता है. भारत के National Center for Seismology (NCS) के निदेशेक ओपी मिश्रा के मुताबिक भूकंप की ये एक सामान्य प्रक्रिया है क्योंकि पाकिस्तान के नीचे से दो टैक्नटोनिक प्लेट्स गुज़रती हैं जो एक दूसरे को धक्का दे रही हैं. उनके बीच का ये दबाव भूकंप की शक्ल में सामने आता है.. तो ये है पाकिस्तान के किराना हिल्स के आसपास घूम रही चर्चाओं की अभी तक की सच्चाई.