- बिहार में चुनाव आयोग की विशेष प्रक्रिया SIR का ज़िक्र बढ़ा है, जिससे मतदाता और नेता दुविधा में हैं.
- SIR का उद्देश्य 2003 के बाद मतदाता सूची का अपडेट करना है, जो स्वतंत्र चुनाव के लिए आवश्यक माना गया.
- चुनाव आयोग ने 1 जुलाई से विशेष गहन समीक्षा शुरू की, अंतिम प्रक्रिया 2003 में हुई थी.
- मतदाताओं को जन्मतिथि और जन्मस्थान के सबूत देने की आवश्यकता है, जिससे विवाद पैदा हुआ है.
बिहार में इन दिनों सर सर चलती मॉनसूनी हवाओं से ज़्यादा ज़िक्र चुनाव आयोग के SIR SIR SIR का हो रहा है,जिसे लेकर कई नेताओं, कार्यकर्ताओं और मतदाताओं के सर चकराए हुए हैं. ये SIR है क्या? से लेकर इतना बवाल मचा हुआ है. ये है बिहार विधानसभा चुनाव से पहले निर्वाचन आयोग की विशेष प्रक्रिया Special Intensive Revision,जिसे संक्षेप में SIR यानी सर कहा जा रहा है. दरअसल,स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए किसी भी चुनाव से पहले मतदाता सूची को अपडेट किया जाता है जो एक सामान्य प्रक्रिया है,लेकिन चुनाव आयोग ने इस बार 1 जुलाई से मतदाता सूची की विशेष गहन समीक्षा शुरू कर दी है. इसे लेकर विपक्ष सवाल उठा रहा है, नीयत पर शक़ कर रहा है.
चुनाव आयोग की दलील
चुनाव आयोग की दलील है कि बिहार में मतदाता सूची की गंभीर समीक्षा की ऐसी आख़िरी प्रक्रिया 2003 में हुई थी और उसके बाद से नहीं हुई है. इसलिए ये मुहिम ज़रूरी है. समीक्षा के लिए चुनाव आयोग ने मतदाताओं के लिए एक फॉर्म तैयार किया है, जो मतदाता 1 जनवरी, 2003 की मतदाता सूची में शामिल थे, उन्हें सिर्फ़ ये Enumeration Form यानी गणना पत्र भरकर जमा करना है. उन्हें कोई सबूत नहीं देना होगा. बिहार में ऐसे 4.96 करोड़ मतदाता हैं. चुनाव आयोग ने 2003 की ये वोटर लिस्ट अपनी वेबसाइट पर डाल दी है.
चुनाव आयोग क्या कर रहा
अब सारा हंगामा 2003 के बाद मतदाता बने लोगों से सबूत मांगने को लेकर है. चुनाव आयोग के मुताबिक 1 जुलाई 1987 से पहले पैदा हुए नागरिकों जो 2003 की मतदाता सूची में नहीं थे, उन्हें अपनी जन्मतिथि और जन्मस्थान का सबूत देना होगा. ऐसे सभी मतदाता आज की तारीख़ में 38 साल या उससे बड़े होंगे.जो लोग 1 जुलाई 1987 से लेकर 2 दिसंबर 2004 के बीच पैदा हुए हैं, उन्हें अपनी जन्मतिथि और जन्मस्थान और अपने माता-पिता में से किसी एक की जन्मतिथि और जन्मस्थान का सबूत देना होगा. ये सभी लोग क़रीब आज 21 से 38 साल के बीच के होंगे. इसके अलावा 2 दिसंबर 2004 के बाद पैदा हुए नागरिकों को अपनी जन्मतिथि और जन्मस्थान और अपने माता-पिता दोनों की ही जन्मतिथि और जन्मस्थान का भी सबूत देना होगा. बस इन ही सबूतों की मांग को लेकर सारा विवाद खड़ा हो गया है कि इतनी जल्दी ये सबूत कहां से लेकर आएं. विपक्ष ने और कई नागरिक संगठनों ने ये सवाल खड़े किए हैं.
चुनाव आयोग का तर्क
- आयोग के मुताबिक 2003 के बाद बीते 22 साल में तेज़ी से शहरीकरण हुआ है यानी गांवों से लोग शहरों में गए हैं.
- प्रवास काफ़ी तेज़ हुआ है. बिहार के लोग दूसरे राज्यों गए हैं, दूसरे राज्यों के लोग बिहार आए हैं.
- कई नागरिक 18 साल पूरा करने के बाद नए मतदाता बने हैं.
- कई मतदाताओं की मृत्यु की जानकारी अपडेट नहीं हुई है.
- सबसे अहम मतदाता सूची में दूसरे देशों से आए अवैध अप्रवासियों को भी अलग किया जाना ज़रूरी है.
चुनाव आयोग मांग रहा ये 11 दस्तावेज़
- जन्म प्रमाण पत्र
- पासपोर्ट
- हाईस्कूल सर्टिफिकेट
- स्थायी निवास प्रमाण पत्र
- वन अधिकार प्रमाण पत्र
- जाति प्रमाण पत्र
- एनआरसी में नाम
- परिवार रजिस्टर
- ज़मीन या आवास आवंटन पत्र
- केंद्र या राज्य सरकार के कर्मचारी या पेंशनर का कोई आई कार्ड
- सरकार या बैंक या पोस्ट ऑफ़िस या एलआईसी या सरकारी कंपनी का आई कार्ड या सर्टिफिकेट
- चुनाव आयोग के मुताबिक ये लिस्ट पूरी नहीं है. यानी कुछ और दस्तावेज़ों को भी मान्यता दी जा सकती है.
विपक्ष का क्या है तर्क
चुनाव आयोग के मुताबिक बूथ लेवल ऑफ़िसर 25 जुलाई तक घर-घर जाकर गणना पत्रों में ये ब्योरा जमा करेंगे. 1 अगस्त को मतदाता सूची का ड्राफ्ट प्रकाशित किया जाएगा. अगर किसी को कोई आपत्ति है तो उन्हें दावों और ऐतराज के लिए 1 सितंबर तक का समय मिलेगा. 30 सितंबर को अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी. विपक्षी दलों का तर्क है कि ये सारा काम जल्दबाज़ी में हो रहा है, जिसकी वजह से लाखों सही मतदाता भी लिस्ट से बाहर हो जाएंगे. 26 जुलाई तक अपने या अपने माता-पिता की जन्मतिथि या जन्मस्थान के सबूत जुटाना सभी लोगों के लिए संभव नहीं होगा. ये भी तर्क है कि चुनाव आयोग इस बहाने बिहार में National Register for Citizens (NRC) को लाने की कोशिश कर रहा है. मतदाता सूची से नाम हटाने की एक प्रक्रिया है, लेकिन SIR के आदेश से उस प्रक्रिया को नकार दिया गया है. 2003 के बाद दर्ज सभी मतदाताओं की स्थिति पर सवाल खड़े कर दिए गए हैं. इस आधार पर पूछा जा रहा है कि क्या 2003 से 2024 तक हुए चुनावों पर सवाल खड़ा नहीं हो जाएगा. वहीं चुनाव आयोग इन सभी आशंकाओं को खारिज करते हुए स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए इसे ज़रूरी बता रहा है. बिहार चुनाव क़रीब है और ये मुद्दा आए दिनों लगातार सुर्ख़ियों में रहने वाला है.