Rana Sanga Controversy: राणा सांगा की वीरता की कहानी आज भी लोगों की जुबान पर रहती है.
Rana Sanga History in Hindi: औरंगज़ेब को लेकर ही विवाद काफ़ी नहीं था कि अब सोलहवीं सदी के राजपूत राजा राणा सांगा को लेकर भी विवाद शुरू हो गया है. इस बार ये विवाद शुरू किया है समाजवादी पार्टी के सांसद रामजी लाल सुमन ने, जिन्होंने राज्यसभा में अपने भाषण के दौरान राजपूत राजा राणा सांगा को गद्दार बता दिया. उनके इस बयान का तुरंत संसद के भीतर से लेकर बाहर तक विरोध शुरू हो गया. बीजेपी ने रामजीलाल सुमन के बयान को न सिर्फ़ राजपूतों बल्कि पूरे हिंदू समुदाय के लिए अपमान बता दिया. उधर, राजस्थान के कई इलाकों में रामजीलाल सुमन के बयान के बाद विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए. कई जगह सपा सांसद रामजीलाल सुमन के पुतले फूंके गए. करणी सेना ने बुधवार को सुमन के घर पर कोहराम मचा दिया. जमकर तोड़फोड़ की गई. (पढ़िए आगरा में सपा सांसद के घर पर क्या हुआ )
Rana Sanga vs Babur: एक ओर पहचान की राजनीति तेज़ हो रही है तो दूसरी ओर स्थिति ये है कि भरतपुर से तीस किलोमीटर दूर बयाना में जहां राणा सांगा ने बाबर को हराया था, उस जगह को पूछने वाला कोई नहीं है. जिस ऐतिहासिक किले पर राणा सांगा ने कब्ज़ा किया था, वो खंडहर हो रहा है. बस एक साइनबोर्ड ही दिखता है, जो बता रहा है कि यहीं बयाना की ऐतिहासिक लड़ाई हुई थी. साफ़ है कि राजनीति करने तो सब आ रहे हैं, लेकिन राणा सांगा की विरासत को यादगार बनाने के लिए कुछ नहीं किया जा रहा.
इतिहास को लेकर झगड़ा जारी है, लेकिन इतिहास की महीन बुनावट में कौन सी चीज़ें शामिल रहती हैं, यह पता नहीं चलता. इतिहास में एक जगह मिथकों और क़िस्सों की भी होती है. जैसे एक किस्सा है, जो इन दिनों सियासत में छाए मुगल बादशाह औरंगजेब से जुड़ा है. कहते हैं, शाहजहां को क़ैद करने के बाद औरंगजेब ने उससे कहा- एक कपड़ा, एक अनाज और एक काम मांगो. शाहजहां ने मलमल का कपड़ा मांगा, अनाज में चना मांगा और बच्चों को पढ़ाने का काम मांगा. औरंगजेब ने बाक़ी दो मांगें मान लीं- तीसरी पर कहा- हमारी हुकूमत में बगावत पैदा करना चाहते हो? यानी औरंगज़ेब और कुछ भी हो- शिक्षा का महत्व जानता था. उसे पता था कि इतिहास की पढ़ाई भविष्य को बना सकती है, बदल सकती है.
हमारे यहां जो इतिहास की पढ़ाई हुई है, उसकी कई विडंबनाएं हैं. ख़ासकर मध्यकाल का इतिहास अजब ढंग से पढ़ाया गया है.
- वह हिंदू और मुसलमान की लाइन पर पढ़ाया जा रहा है
- महाराणा प्रताप हिंदू हैं और अकबर मुसलमान
- राणा सांगा हिंदू हैं और बाबर मुसलमान
- शिवाजी हिंदू हैं और औरंगज़ेब मुसलमान
यह अलग-अलग जातीय स्मृतियों को आसानी से रास आने वाला इतिहास है. इससे वर्तमान की गोलबंदी भी आसान होती है, लेकिन अगर ध्यान से देखें तो इतिहास के बहुत सारे और भी संस्करण मिलते हैं. और भी कहानियां मिलती हैं, जो बताती हैं कि दो लाइन वाली यह थ्योरी सही नहीं है. धर्म और जाति या किसी भी तरह के कठघरे एक सीमा के बाद चूक जाते हैं. मसलन, बाबर ने हिंदुस्तान में पहली लड़ाई राणा सांगा से नहीं, इब्राहिम लोदी से लड़ी, वह भी मुसलमान था. औरंगज़ेब ने दूसरों को मारने से पहले अपने भाइयों को मारा, जो मुसलमान ही थे. इनमें वह दारा शिकोह भी शामिल था, जिसे कल ही आरएसएस के सम्मानित नेता दत्तात्रेय होसबोले ने गंगा-जमनी संस्कृति का नुमाइंदा बताया है. अकबर का सबसे भरोसेमंद सेनापति और सहयोगी मान सिंह था, जबकि मराठों का सेनापति इब्राहिम गार्दी था. अकबर के दरबार में जो नौ रत्न थे, उनमें तानसेन, टोडरमल, बीरबल जैसी मशहूर हस्तियां मुस्लिम नहीं थीं.
बचपन में एक कहानी स्कूली किताबों में आपने भी पढ़ी होगी. इब्राहिम गार्दी और अहमद शाह अब्दाली के बीच संवाद की. अब्दाली उसे इस्लाम का हवाला देता है, इब्राहिम गार्दी उसे मज़हब का असली मतलब समझाता है. तो इतिहास कई हैं. व्याख्याएं कई हैं और ये हम पर और आप पर है कि हम एक-दूसरे को कैसे देखते हैं, कौन सी व्याख्या पसंद करते हैं. हम सिर्फ धर्म के आधार पर ही नहीं, भाषा के आधार पर भी झगड़ते हैं, जबकि भाषाएं हमें जोड़ने का काम करती हैं- वे दीवार नहीं, पुल बनाती हैं.
अगर आप एक कोने से देखेंगे तो राणा सांगा बहुत बड़े दिखेंगे, लेकिन दूसरे कोने से देखेंगे तो राणा सांगा एक इलाके के राजा नज़र आएंगे. इसी तरह एक छोर से बाबर आक्रांता दिख सकता है. दूसरे छोर से भारत में ऐसे साम्राज्य का निर्माता, जिसने इतिहास बदल कर रख दिया.दरअसल, यह राजपूती और मुगलई मिज़ाज का साझा खेल है, जिसने मध्यकाल को गढ़ा है. इस मध्यकाल की शुरुआत राणा सांगा और बाबर से काफ़ी पहले से होती है. अमीर खुसरो से, जो खिलजी के दरबार में था, लेकिन जिसने खिलजी को पीछे छोड़ दिया. उसने संगीत और साहित्य में जो सूफ़ी परंपरा डाली. इसका असर था कि तुलसीदास ने राम को कम से कम आधा दर्जन बार ग़रीबनवाज़ की संज्ञा दी. ग़रीबनवाज़ सूफी परंपरा का शब्द है, लेकिन भक्त कवि तुलसीदास अपने राम को इस शब्द से नवाज़ते हैं. हिंदी के जाने-माने विद्वान हैं डॉ रामविलास शर्मा, उन्होंने मध्य काल के तीन शिखर बताए हैं-
- तुलसी
- तानसेन
- ताजमहल
साहित्य, संगीत और स्थापत्य का यह विराट वैभव और किस काल में इतनी खूबसूरती से जनमानस में रचा मिलता है? राणा सांगा पर लौटें. वो चित्तौड़ की ही नहीं, भारत की गौरवशाली विरासत का हिस्सा हैं. उनकी पारिवारिकता का भी उनके व्यक्तित्व निर्माण में अहम हाथ था. राणा सांगा के पिता का नाम राणा रायमल था. कहते हैं, मेवाड़ को उन्होंने राजनीतिक स्थिरता और समृद्धि दी. राणा सांगा की माता रानी पद्मिनी थीं. ये वो पद्मिनी नहीं हैं, जिनका ज़िक्र पद्मावत में होता है और जिनको लेकर अलग तरह की कथाएं हैं. राणा सांगा की तीन रानियां थीं, जिनमें रानी कर्णावती ने इतिहास में बड़ी पहचान बनाई. खानवा के युद्ध में राणा सांगा के बलिदान के बाद रानी कर्णावती ने मेवाड़ का दायित्व संभाला था. उन्हीं के बेटे उदय सिंह थे, जिन्होने उदयपुर बसाया. राणा सांगा के भाई विक्रमजीत सिंह और जयमल सिंह युद्ध के मैदान में उनसे कंधे से कंधा मिलाकर लड़ते थे. राणा सांगा की बहन, आनन्दबाई को मेवाड़ के सांस्कृतिक विकास के लिहाज से अहम भूमिका निभाने वाला माना जाता है. लेकिन फिर वही बात सामने आती हैं- साम्राज्यों के भीतर गौरव के पर्वत होते हैं तो टकरावों की खाइयां भी. दुरभिसंधियों की सुरंगों से भी बनता है सिंहासन का रास्ता. मेवाड़ के राजघराने में भी ऐसे दौर आए थे.
राणा उदय सिंह की कहानी मेवाड़ की लोककथाओं का अहम हिस्सा है. कहते हैं, जब वह बिल्कुल दूधमुंहे थे, तब रणवीर उन्हें मारने आया था, लेकिन उदय सिंह की देखभाल करने वाली पन्ना धाय ने उनकी जान बचाई. अपने बच्चे को उन्होंने रणवीर की तलवार का निशाना बन जाने दिया. आप चित्तौड़गढ़ जाएं तो वहां पन्ना धाय की भी समाधि मिलेगी. मेवाड़ त्याग की इस मूर्ति का एहसान भूला नहीं है, लेकिन ये कहानी दरअसल बताती है कि मामला हिंदू-मुसलमान से ज़्यादा सत्ता और सिंहासन का होता है.
औरंगज़ेब भी अपने भाइयों को मारता है. बाबर बाहर से आता है, धीरे-धीरे यहां का होता जाता है. हुमायूं को शेरशाह एक बार भारत से खदेड़ देता है. फिर याद कर सकते हैं कि शेरशाह ने मुगलिया शासन को कुछ दिन के लिए लगभग समाप्त कर दिया था. बेशक हुमायूं लौटा और उसके साथ एक साम्राज्य लौटा, जिसने हिंदुस्तान की साझा तहज़ीब में काफ़ी कुछ जोड़ा. तो मामला हिंदू-मुसलमान का नहीं है- बाबर और राणा सांगा का नहीं है. हमारे आपके भीतर बन रही उन दरारों का है, जो हर किसी की एक ही पहचान खोज रही हैं और उसके आधार पर उसकी देशभक्ति या उसकी गद्दारी तय कर रही हैं. लेकिन इस खेल में सबसे ज़्यादा ज़ख़्मी वह इतिहास हो रहा है, जिससे काफ़ी कुछ सीखने की ज़रूरत है. इस इतिहास में मेलजोल की मिसालें भी हैं और टकराव के उदाहरण भी. ये हम और आप पर है कि हम क्या चुनते हैं और क्यों चुनते हैं. राणा सांगा निस्संदेह एक वीर राजा थे, लेकिन उनका सम्मान उनकी वास्तविक जगह को पहचानने में है, उनको ऐसी तलवार की तरह इस्तेमाल करने में नहीं, जिसका मक़सद दूसरों को काटना हो.