NDTV Explainer : कैसे बना इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन, जहां महीनों तक रहते हैं एस्ट्रोनॉट

International Space Station : जब स्पेस स्टेशन में रहने की व्यवस्था बेहतर होती गई तो अंतरिक्ष यात्री लंबा समय इसमें गुज़ारने लगे. शुभांशु शुक्ला के साथ गए अंतरिक्ष यात्रियों को भी शामिल कर लिया जाए तो आज तक 26 देशों के 283 अंतरिक्ष यात्री स्पेस स्टेशन में जा चुके हैं.

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इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के निर्माण की दिशा में 25 जनवरी 1984 का दिन काफी अहम था. उसी दिन अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रोनल्ड रीगन ने अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA को निर्देश दिया कि वो अंतरिक्ष अनुसंधान को नई तेजी देने के लिए इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन का निर्माण करे. नासा को 10 साल में ये काम पूरा करने का निर्देश दिया गया. इस काम के लिए अमेरिका और रूस की अंतरिक्ष एजेंसियों ने हाथ मिलाया.

1998 को ISS का पहला सेगमेंट लॉन्च हुआ था

20 नवंबर 1998 को ISS का पहला सेगमेंट लॉन्च हुआ. ये ज़ारिया कंट्रोल मॉड्यूल था जिसे कज़ाखस्तान में रूस के बाइकानोर लॉन्च सेंटर से भेजा गया. इसमें फ़्यूल, बैटरी पावर जैसी ज़रूरी चीज़ें थीं. इसे आगे भेजे जाने वाले मॉड्यूल्स की डॉकिंग के लिए तैयार किया गया था. यानी इसमें दोनों ओर इस तरह के पोर्ट थे, जिनसे बाद के स्पेसक्राफ्ट उसके साथ ठीक से जुड़ सकें. इसके दो हफ़्ते बाद ही 4 दिसंबर 1998 को अमेरिका ने इस स्पेस स्टेशन के लिए अपना पहला मॉड्यूल भेजा, जिसका नाम था Unity Node 1 Module. ये मॉड्यूल पहले से भेजे गए ज़ारिया मॉड्यूल से जु़ड़ा अंतरिक्ष में बननी शुरू हुई इस प्रयोगशाला के साथ ये पहली डॉकिंग थी. इसके बाद रूस का ज़्वेज़्दा सर्विस मॉड्यूल भेजा गया. 12 जुलाई , 2000 को ये सबसे पहले भेजे गए मॉड्यूल जारिया से जुड़ गया.

स्पेस स्टेशन में हर समय कोई न कोई इंसान रहा

 2 नवंबर सन 2000 को स्पेस स्टेशन में पहला क्रू भेजा गया. यानी पहली बार अंतरिक्ष यात्री इसमें भेजे गए. इनमें अमेरिका के बिल शेफर्ड और रूस के यूरी गिडज़ेंको और सर्गेई क्रिकालेव थे, जिन्होंने चार महीने अंतरिक्ष में बिताए और स्पेस स्टेशन को चालू करने से जुड़े कामों को अंजाम दिया. तब से आज तक इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में हर समय कोई न कोई इंसान रहा है. वो कभी खाली नहीं रहा. इसके बाद एक एक कर कई उपकरण भेजे जाते रहे जो एडैप्टर का काम करते रहे जिनसे नए मॉड्यूल्स की डॉकिंग के लिए पोर्ट बन सकें. जैसे ये Z1 Truss Segment जो एक प्रेशराइज़्ड मेटिंग एडैप्टर 3. इसके बाद नए नए सेगमेंट जुड़ते रहे, जिनमें सोलर पैनल लगे थे जिनसे स्पेस स्टेशन को ऊर्जा सप्लाई की जा सके, क्योंकि बैटरी के भरोसे हमेशा नहीं रहा जा सकता था और उसकी एक लिमिट होती है.

ISS में अमेरिका की प्रमुख लैबोरेटरी बना हुआ

7 फरवरी 2001 को नासा ने एक और लैब मॉड्यूल डेस्टिनी को भेजा. इससे स्पेस स्टेशन में अंतरिक्षयात्रियों के रहने की जगह 41% बढ़ गई. तब से ये ISS में अमेरिका की प्रमुख लैबोरेटरी बना हुआ है. 30 दिसंबर 2005 को अमेरिका ने स्पेस स्टेशन में अपने लैब मॉड्यूल को अपनी सबसे नई नेशनल लैबोरेटरी का दर्जा दे दिया. कई नए उपकरण जैसे स्पेस स्टेशन मैनिपुलेटर सिस्टम, Quest Airlock वगैरह भेजे जाते रहे. इसके साथ ही कई ऐसे structural component भी भेजे गए जो स्टेशनल के फ्रेमवर्क को मजबूत करते गए. इनके साथ नए सोलर पैनल, रेडिएटर वगैरह को जोड़ने की जगह बनती गई.

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कामयाबी के साथ स्पेस स्टेशन के साथ डॉक होता गया

7 फरवरी 2008 को यूरोपियन स्पेस एजेंसी भी साथ आ गई और उसने स्पेस स्टेशन में अपना पहला मॉड्यूल भेजा जिसका नाम था कोलंबस. ये अंतरिक्ष में यूरोप की लैब बन गई. हर मॉड्यूल कामयाबी के साथ स्पेस स्टेशन के साथ डॉक होता गया और स्पेस स्टेशन का आकार बढ़ता रहा. 11 मार्च 2008 को जापान भी साथ आया और स्पेस स्टेशन में जापान की पहली लैब जुड़ गई जिसका नाम था कीबो एक्सपेरिमेंट मॉड्यूल. इसके साथ ही स्पेस स्टेशन के फ्रेमवर्क को मज़बूत बनाने का काम चलता रहा, कई नए सेगमेंट उससे जुड़ते रहे.

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बाद के सालों में जब स्पेस स्टेशन में रहने की व्यवस्था बेहतर होती गई तो अंतरिक्ष यात्री लंबा समय इसमें गुज़ारने लगे. शुभांशु शुक्ला के साथ गए अंतरिक्ष यात्रियों को भी शामिल कर लिया जाए तो आज तक 26 देशों के 283 अंतरिक्ष यात्री स्पेस स्टेशन में जा चुके हैं. इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में सबसे ज़्यादा दिन तक रहने का रिकॉर्ड रूस के अंतरिक्ष यात्री ओलेग कोनोनेंको के नाम है जो 1,111 दिन तक वहां बिता चुके हैं.

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एक ख़ास बात ये है कि International Space Station (ISS) को 2030 तक रिटायर कर दिया जाएगा. इसके बाद अंतरिक्ष में स्पेस स्टेशन बनाने के लिए कई प्राइवेट कंपनियां मैदान में उतरने की तैयारी कर रही हैं. इनमें Axiom Space, Blue Origin और Voyager Space प्रमुख हैं. इसके अलावा चीन अपना स्पेस स्टेशन बना ही चुका है और भारत भी इसकी तैयारी कर रहा है.

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