पहलगाम हमले के बाद भारत का प्रहार, सिंधु समझौता रोका, इस फैसले से कैसे बूंद-बूंद पानी को तरसेगा पाकिस्तान

Pahalgam Attack: सिंधु नदी समझौते को स्थगित करने का पाकिस्तान पर क्या फैसला पड़ सकता है. द्विपक्षीय समझौतों के तहत शिमला समझौते को रद्द करने के पाकिस्तान के फैसले का क्या मतलब हो सकता है.

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पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ भारत का रुख लगातार सख़्त होता जा रहा है. बुधवार रात किए गए कई बड़े एलानों के बाद आज फिर भारत ने कुछ नए और सख़्त एलान किए, जिनसे साफ पता चल रहा है कि भारत पहलगाम की वारदात को युद्ध की एक घटना की तरह ले रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज बिहार के मधुबनी की एक सभा में आने वाले दिनों में भारत के रुख को साफ कर दिया और कहा कि पहलगाम हमले के लिए जिम्मेदार हर आतंकवादी और उसे शह देने वाले को पहचाना जाएगा, पीछा किया जाएगा और सजा दी जाएगी. अंतरराष्ट्रीय समुदाय तक बात पहुंचे इसके लिए प्रधानमंत्री मधुबनी की सभा को अंग्रेजी और हिंदी दोनों में संबोधित किया.

भारत ने एक दिन पहले पाकिस्तान के खिलाफ उठाए गए सख्त कदमों के ही क्रम में आगे एलान किया. भारत में मौजूद सभी पाकिस्तानी नागरिकों के हर तरह के वीजा तुरंत प्रभाव से रद्द कर दिए और उन्हें 27 अप्रैल तक वापस जाने को कह दिया.. हालांकि, मेडिकल वीजा पर आए लोगों को वापस लौटने के लिए दो अतिरिक्त दिन दिए गए हैं. यानी उन्हें 29 अप्रैल तक वापस जाना होगा. सरकार ने सभी भारतीय नागरिकों को सख्त सलाह दी है कि वो पाकिस्तान जाने से बचें और जो भारतीय फिलहाल पाकिस्तान में हैं उन्हें जल्द से जल्द भारत लौटने की सलाह दी गई है. इस बीच एक सर्वदलीय बैठक में सरकार ने सभी दलों को बैसरण आतंकी हमले, उसके बाद के हालात और भारत की अभी तक की कार्रवाई से अवगत कराया.

भारत के एक्शन से बौखलाया पाकिस्तान?

उधर, पाकिस्तान की करीबी निगाह भारत के कदमों पर है. सिंधु नदी समझौते को स्थगित करने के भारत के फैसले को पाकिस्तान ने युद्ध का कदम करार दिया है. भारत द्वारा बुधवार को किए गए सख़्त एलानों के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की अध्यक्षता में हुई नेशनल सिक्योरिटी कमेटी की बैठक में भारत के संभावित जवाबों पर विचार किया गया. इस बैठक में पाकिस्तान के सभी प्रमुख मंत्री और सेना के तीनों अंगों के अध्यक्ष शामिल हुए. बैठक के बाद कहा गया कि पाकिस्तान भारत के साथ हुए सभी द्विपक्षीय समझौतों को स्थगित करेगा. इनमें शिमला समझौता भी शामिल है. इसके अलावा बाघा सीमा को तुरंत बंद करने का फैसला भी किया गया. इससे पहले कल भारत बाघा से लगे अटारी बॉर्डर को बंद करने का एलान कर चुका है. पाकिस्तान ने भी सार्क वीजा रियायत स्कीम के तहत भारतीय नागरिकों को जारी वीजा रद्द करने का एलान किया और उन्हें अगले 48 घंटे में भारत छोड़ने को कहा है. सिर्फ सिख तीर्थयात्रियों को इससे छूट दी गई.

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पाकिस्तान ने इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायोग में मौजूद सेना, नौसेना और वायुसेना के सलाहकारों को भी अवांछित बताते हुए 30 अप्रैल तक देश छोड़ने को कहा. हालांकि, भारत ये फैसला ले चुका है और इस्लामाबाद में अपने इन सलाहकारों को वापस बुलाने का एलान कर चुका है. ये भी कहा गया कि भारत के साथ हर तरह का व्यापार चाहे वो किसी तीसरे देश के रास्ते हो उसे भी बंद करने का फ़ैसला किया गया. सिंधु नदी समझौते को स्थगित करने के भारत के फैसले को पाकिस्तान ने युद्ध का कदम घोषित किया है.

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पाकिस्तान की ओर से इन कदमों की पहले से ही संभावना थी. सिंधु नदी समझौते को स्थगित करने का पाकिस्तान पर क्या फैसला पड़ सकता है. इस पर करेंगे आगे करेंगे विस्तार से बात. लेकिन पहले ये जान लेते हैं कि द्विपक्षीय समझौतों के तहत शिमला समझौते को रद्द करने के पाकिस्तान के फ़ैसले का क्या मतलब हो सकता है.

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शिमला समझौता के बारे में जानिए

1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध जिसके जरिए बांग्लादेश आजाद हुआ, भारत की जीत हुई और पाकिस्तान के 93,000 सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया, उसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता हुआ था. 2 जुलाई, 1972 को हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने शिमला समझौते पर दस्तख़त किए थे. शिमला समझौते में दोनों देशों के बीच शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की बात हुई थी. दोनों देश आपसी संबंधों को खराब करने वाली झड़पों से दूर रहने, दोस्ती भरे रिश्ते बनाने और स्थायी शांति स्थापित करने पर राजी हुए थे.

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दोनो देश एक दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करने पर भी सहमत हुए थे. एक दूसरे के अंदरूनी मामलों में दखल देने पर भी राजी हुए थे. समझौते को स्थगित करने का मतलब है कि पाकिस्तान इन सिद्धांतों पर अमल नहीं करेगा. संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के तहत दोनों देश एक दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और राजनीतिक स्वतंत्रता के ख़िलाफ शक्ति के इस्तेमाल या उसकी धमकी से दूर रहने को राज़ी हुए थे. शिमला समझौते को स्थगित करने का मतलब है कि पाकिस्तान भारत की क्षेत्रीय अखंडता से खिलवाड़ करने की हिमाकत कर सकता है.

शिमला समझौते के तहत जम्मू-कश्मीर में 17 दिसंबर, 1971 की युद्धविराम रेखा को लाइन ऑफ़ कंट्रोल यानी नियंत्रण रेखा माना गया था. दोनों पक्ष इस नियंत्रण रेखा के सम्मान के लिए तैयार हुए थे. पाकिस्तान द्वारा शिमला समझौता स्थगित करने का मतलब है कि पाकिस्तान एलओसी का सम्मान करने से पीछे हट सकता है. इसका सीधा मतलब है कि पाकिस्तान नियंत्रण रेखा का उल्लंघन कर सकता है. अगर ऐसा होता है तो ये युद्ध की ओर बढ़ने का सीधा कदम होगा. इस बीच पहलगाम में तीर्थयात्रियों पर हमला करने वाले आतंकवादियों की धरपकड़ के लिए सुरक्षा बलों का अभियान जारी है.

पहलगाम आतकी हमला : अबतक का अपडेट

जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले में हुए आतंकी हमले में शामिल आतंकवादियों की संख्या 5 से 6 बताई जा रही है, जिनमें से तीन की पहचान हो चुकी है. इनमें से दो आतंकवादी पाकिस्तानी हैं - हाशिम मूसा उर्फ सुलेमान और अली भाई, जबकि तीसरा आतंकी आदिल हुसैन दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग का रहने वाला है. पुलिस ने इन आतंकियों के स्केच जारी कर उनकी जानकारी देने वालों के लिए 20-20 लाख रुपये का इनाम घोषित किया है.

पहलगाम से पैदल रास्ते करीब साढ़े छह किलोमीटर दूर अंदर जंगल में बैसरन एक मेडो यानी ऊंचाई पर स्थित घास का मैदान है. पहलगाम से यहां पहुंचने के लिए पैदल करीब एक घंटा लगता है. चारों ओर देवदार के जंगलों से घिरी इस खूबसूरत खुली जगह से आसपास की पीर पंजाल पहाड़ियों का विहंगम दृश्य नज़र आता है. आतंकी यहां सैलानियों पर अंधाधुंध फ़ायरिंग करने के बाद देवदार के इनही जंगलों से होकर भाग निकले. यहां आसपास का जंगल काफ़ी घना है और आतंकियों ने इसी का पूरा फ़ायदा उठाया. इन जंगलों के ऊपर किश्तवाड़ की पहाड़ियां हैं जिसके बाद वारवां घाटी आती है. आतंकी पहाड़ी में ऊपर की ओर जाने के बजाय साइड की ओर भागे होंगे.

बैसरण में सैलानियों की गोली मारकर हत्या करने में एक खास बात जो देखने में आई है वो ये कि आतंकियों ने अधिकतर सैलानियों के सिर पर गोली मारी. ऊपर से ये भी बात सामने आई है कि आतंकवादी बॉडीकैमरों के साथ आए थे. हत्या करने का ये तरीका बता रहा है कि पाकिस्तान से सक्रिय आतंकी दूसरे देशों के आतंकी संगठनों से प्रेरित होकर हमलों और हत्याओं को अंजाम दे रहे हैं.

भारत में इजरायल के राजदूत रुवेन अजार ने पहलगाम में हुए आतंकी हमलों को 7 अक्टूबर, 2023 को इजरायल पर हमास के हमलों जैसा बताया है. उनके मुताबिक दोनों ही हमलों में नागरिकों को निशाना बनाया गया. इजरायल के राजदूत रूवेन अजार ने आगाह किया कि आतंकी संगठनों के बीच सहयोग बढ़ रहा है वो एक दूसरे को कॉपी कर रहे हैं. उन्होंने पहलगाम में हुए आतंकी हमले की टाइमिंग पर भी सवाल उठाया और कहा कि हाल ही में पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर के बहावलपुर में आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद के आकाओं से मिलने के लिए हमास के नेता पहुंचे थे. बहावलपुर जैश ए मोहम्मद का मुख्यालय है. इससे पहले 5 फरवरी को लश्कर ए तैयबा और जैश ए मोहम्मद के आतंकी पीओके के रावलकोट में जुटे थे. इस दौरान कई रिपोर्ट हैं कि हमास के प्रवक्ता और ईरान में हमास के प्रतिनिधि ख़ालिद क़दूमी ने भाषण दिया था.

पहलगाम हमले के बाद भारत ने कल एक ज़ोरदार क़दम उठाते हुए पाकिस्तान के साथ सिंधु नदी समझौते को स्थगित कर दिया..अभ समझते हैं इसके मायने क्या है. सिंधु नदी समझौता स्थगित करने का भारत का फ़ैसला पाकिस्तान को किस तरह से प्रभावित कर सकता है ये समझने के लिए हमें सबसे पहले ये देखना होगा कि सिंधु नदी सिस्टम के तहत कैसे छह बड़ी नदियां भारत से होकर पाकिस्तान में पहुंचती हैं. इसके लिए आप नक्शे में इन नदियों को देख सकते हैं. नीले रंग से दिखाई गई ये सभी नदियां हैं सिंधु, झेलम, चिनाब जिन्हें सिंधु नदी सिस्टम के तहत पश्चिमी नदियां कहा जाता है और सिंधु नदी समझौते के तहत पाकिस्तान को इन पर असीमित अधिकार दिया गया. भारत का इन नदियों पर सीमित अधिकार है. इन नदियों पर कौन से बड़े बांध भारत में हैं जिनपर पाकिस्तान को ऐतराज़ रहा है और वो कैसे पाकिस्तान में पानी की सप्लाई प्रभावित कर सकते हैं. ये समझेंगे आगे. सिंधु नदी प्रणाली के तहत तीन पूर्वी नदियां भी हैं जो हैं सतलुज, रावी और व्यास. इन पर भारत को पूरा हक़ है और भारत ने इन पर कई बड़े बांध बनाए हैं. इनका पानी भी अंत में पाकिस्तान में ही बहता है.

ये नदियां पाकिस्तान के लिए क्यों अहम हैं 

- आर्थिक योगदान: सिंधु नदी घाटी प्रणाली पाकिस्तान की जीडीपी में लगभग 25% योगदान करती है, जो देश की अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है.
- कृषि निर्भरता: पाकिस्तान की कृषि, विशेष रूप से पंजाब और सिंध प्रांतों में, लगभग पूरी तरह से सिंधु नदी प्रणाली पर निर्भर है. यह नदी प्रणाली न केवल सिंचाई के लिए आवश्यक जल प्रदान करती है, बल्कि पीने के पानी की आपूर्ति भी करती है.
- बिजली उत्पादन: पाकिस्तान के बड़े हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स, जैसे कि तरबेला और मंगला बांध, सिंधु नदी प्रणाली पर निर्भर हैं. इन बांधों में पानी की कमी से बिजली उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जिससे घरों और उद्योगों में बिजली की आपूर्ति प्रभावित हो सकती है.
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था: पाकिस्तान की ग्रामीण आबादी का लगभग 68% हिस्सा खेती पर निर्भर है, जो सिंधु नदी प्रणाली के जल संसाधनों पर आधारित है. इस नदी प्रणाली के जल प्रवाह में किसी भी तरह की रुकावट से पाकिस्तान की ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.
- जीवनरेखा: सिंधु नदी प्रणाली पाकिस्तान के लिए जीवनरेखा के समान है, जो न केवल जल संसाधनों की आपूर्ति करती है, बल्कि देश की खाद्य सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता के लिए भी आवश्यक है.

चिनाब और झेलम नदी पर ऐतराज

अब जब भारत ने सिंधु नदी समझौते को स्थगित कर दिया है. इसके बाद अब भारत सिंधु नदी समझौते के तहत तीन पश्चिमनी नदियों यानी सिधु, झेलम और चिनाब को लेकर अपनी शर्तों को तोड़ सकता है जिसका असर सीधे पाकिस्तान में पानी की उपलब्धता पर पड़ सकता है. जैसा हमने बताया कि सिंधु नदी समझौते के तहत भारत को तीन पूर्वी नदियों सतलुज, रावी और व्यास के पानी का पूरा अधिकार दिया गया था, जबकि पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों सिंधु, झेलम और चिनाब का अधिकार दिया गया था. क्योंकि ये तीन नदियां भी भारत से होकर बहती हैं तो भारत कुछ शर्तों के साथ इनके पानी का इस्तेमाल पीने और सिंचाई के कामों में कर सकता है. इसके अलावा रन ऑफ द रिवर बांध इन पर बना सकता है. सिंधु नदी समझौते के तहत पाकिस्तान को जिन तीन नदियों का पानी दिया गया उनका सालाना 135 (MAF)मिलियन एकड़ फीट पानी उसे मिलता है, जबकि भारत को मिली तीन पूर्वी नदियों सतलुज, व्यास और रावी का करीब 33 (MAF) मिलियन एकड़ फीट पानी मिलता है. सिंधु नदी समझौते के तहत भारत ने अपने अधिकार के तहत सभी नदियों पर बांध बनाए हैं. लेकिन खासतौर पर पश्चिमी नदियों पर बनाए बांधों से पाकिस्तान को काफ़ी ऐतराज़ रहा है. उसकी शिकायत है कि भारत ने सिंधु नदी समझौते का उल्लंघन किया है और वो उसका पानी रोक सकता है. जिन बांधों को लेकर पाकिस्तान को आशंकाएं हैं और जो उसकी पानी की उपलब्धता पर असर डाल सकती हैं वो ये हैं. जिन बांधों पर पाकिस्तान को सबसे ज़्यादा ऐतराज़ है वो चिनाब और झेलम नदी पर हैं.

सबसे पहले बात करते हैं जम्मू-कश्मीर में चिनाब नदी पर बने बगलिहार बांध की. चिनाब नदी हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्पीति ज़िले में बारलाचाला से निकलती है. हिमाचल में ये दो नदियों से मिलकर बनती है जिनके नाम हैं चंद्रा और भागा. हिमाचल से ये नदी जम्मू-कश्मीर जाती है. इस नदी में पानी का काफ़ी प्रवाह है. इसी नदी पर जम्मू-कश्मीर के रामबन में बगलिहार बांध प्रोजेक्ट बना है जिस पर पाकिस्तान को शुरू से ही ऐतराज़ रहा है. भारत पश्चिमी नदियों में से एक चिनाब पर सिर्फ़ रन ऑफ द रिवर प्रोजेक्ट ही बना सकता है और बिजली उत्पादन के लिए जितना ज़रूरी हो उतना ही पानी रोक सकता है. भारत ने इसी हक़ का इस्तेमाल किया है. लेकिन पाकिस्तान को इस बांध के डिज़ाइन और भंडारण क्षमता पर ऐतराज़ रहा है. इस मामले में एक न्यूट्रल एक्सपर्ट ने डैम की ऊंचाई सिर्फ़ डेढ़ मीटर करते हुए बाकी फ़ैसला भारत के पक्ष में सुनाया.

चिनाब नदी पर एक और बांध हैं रातले बांध. हिमाचल से निकली इसी चिनाब नदी पर जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ में एक पनबिजली परियोजना बन रही है. रातले बांध नाम की इस परियोजना के तहत 850 मेगावॉट बिजली बनाने का लक्ष्य है. पाकिस्तान को इस परियोजना के बांध के निर्माण और डिज़ाइन पर ऐतराज़ है. उसका यही तर्क है कि इससे पाकिस्तान में चिनाब नदी के पानी के बहाव पर असर पड़ेगा. इस प्रोजेक्ट के 2026 तक पूरा होने के आसार हैं.

जम्मू-कश्मीर के रियासी ज़िले में चिनाब नदी पर सलाल बांध बन रहा है. पाकिस्तान ने सलाल बांध के डिजाइन और क्षमता पर ऐतराज़ किया. भारत ने 1978 में पाकिस्तान की कुछ शंकाओं का समाधान करते हुए बांध के डिजाइन में कुछ बदलाव भी किए. 1996 में बांध का आख़िरी चरण पूरा हो गया और तब से ये चल रहा है. लेकिन पाकिस्तान का अब भी कहना है कि इस बांध की भंडारण क्षमता बहुत ज़्यादा है जिससे इतना पानी जमा हो सकता है कि पाकिस्तान में पानी की किल्लत पड़ सकती है. पाकिस्तान की दलील है कि सिंधु नदी समझौते के तहत भारत को ऐसा बांध बनाने की इजाज़त नहीं है.

चिनाब नदी पर एक और बांध

जम्मू-कश्मीर के बारामूला में चिनाब नदी पर एक और बांध उड़ी में बन रहा है. उड़ी बांध नियंत्रण रेखा के बिलकुल पास है. 480 मेगावॉट का ये रन ऑफ द रिवर बांध 1997 से काम कर रहा है. पाकिस्तान ने इस बांध के निर्माण का भी ये कहते हुए विरोध किया कि ये सिंधु नदी समझौते का उल्लंघन है. इसके अलावा जम्मू-कश्मीर के बांदीपुरा में झेलम नदी पर किशनगंगा डैम प्रोजेक्ट भी बन रहा है. झेलम नदी जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले में पीर पंजाल पहाड़ियों की तलहटी में वेरिनाग स्रोत से निकलती है. इस स्रोत में आसपास की पहाड़ियों के ग्लेशियरों से पिघला हुआ पानी आता है. इसी नदी पर जम्मू-कश्मीर के बांदीपुरा में 330 मेगावॉट का किशनगंगा हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट बना है. पाकिस्तान को इस प्रोजेक्ट के निर्माण और डिज़ाइन से ऐतराज रहा है और उसकी दलील है कि इससे किशनगंगा नदी में पानी के बहाव पर असर पड़ सकता है.

अगर प्रमुख नदी सिंधु की बात करें तो उस पर एक बांध है जो लद्दाख के लेह ज़िले में है. इसका नाम है नीमू बाज़गो बांध. सिंधु नदी चीन के कब्ज़े वाले तिब्बत में कैलाश पर्वर रेंज के क़रीब एक ग्लेशियर से निकलती है और उत्तर पश्चिम की ओर बहते हुए भारत में लद्दाख में प्रवेश करती है. लद्दाख से ये नदी कश्मीर होते हुए पाकिस्तान में प्रवेश करती है. सिंधु नदी पर बहुत ज़्यादा बांध नहीं हैं... जो हैं उनमें से एक है नीमू बाज़गो बांध प्रोजेक्ट जो लद्दाख के लेह जिले में पड़ता है. ये 45 मेगावॉट की छोटी रन ऑफ़ द रिवर परियोजना है. लेकिन पाकिस्तान को इसके निर्माण से भी ऐतराज रहा.

जिन नदियों पर हमने बात अभी तक बात की वो सिंधु नदी प्रणाली की पश्चिमी नदियां हैं जिन पर भारत को सीमित अधिकार थे. जिन पूर्वी नदियों पर भारत को असीमित अधिकार दिए गए वो हैं सतलुज, रावी और व्यास. रावी नदी पर बना शाहपुर कांडी बांध भी पाकिस्तान की आखों का कांटा रहा है. शाहपुर कांडी बांध पंजाब के पठानकोट में है. रावी नदी हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा ज़िले से निकलती है. हिमाचल के बाद ये नदी पंजाब से होते हुए पाकिस्तान चली जाती है. शाहपुर कांडी बांध के जरिए रावी का पानी रोक कर उसका इस्तेमाल जम्मू-कश्मीर के कठुआ और सांबा ज़िलों में सिंचाई के लिए किया जा रहा है. इसके अलावा इस बांध का पानी पंजाब और राजस्थान में भी सिंचाई के काम आता है. इस बांध की ऊंचाई 55.5 मीटर है और एक मल्टी पर्पज रिवर वैली प्रोजेक्ट है जिसमें दो हाइडल पावर प्रोजेक्ट भी हैं जिनकी बिजली बनाने की क्षमता 206 मेगावॉट है. ये बांध 2004 में बनकर पूरा हुआ. इससे पहले इसका सारा पानी बहकर पाकिस्तान चला जाता था.