पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान में आतंकियों के अड्डों और फिर सैनिक ठिकानों पर भारत की सैन्य कार्रवाई और अन्य कठोर फैसलों के बाद से पाकिस्तान में तनाव है. भारत का एक फैसला जो पाकिस्तान को लगातार परेशान करने वाला है वो है सिंधु नदी समझौते को स्थगित करना. इस समझौते के तहत पाकिस्तान को भारत से निकलने वाली 6 नदियों का पानी मिलता था. लेकिन अब वो पानी पाकिस्तान को उन शर्तों के तहत नहीं मिलेगा जो सिंधु समझौते में तय हुई थीं. भारत पहले अपने हितों को देखेगा. लेकिन पानी को लेकर पाकिस्तान इससे पहले ही काफी परेशान है...
प्रदर्शनकारियों की जान चली गई
पाकिस्तान के सिंध प्रांत में गृह मंत्री ज़ियाउल हसन लंजर के घर को प्रदर्शनकारियों ने जला दिया. सिंध के नौशहरो फ़िरोज़ ज़िले के मोरो तालुका में आगज़नी की ये कार्रवाई तब हुई जब पानी के मामले में सिंध के साथ भेदभाव का आरोप लगाने वाले हज़ारों प्रदर्शनकारियों की पुलिस से झड़प हो गई. ये प्रदर्शनकारी नेशनल हाइवे पर धरना दे रहे थे. उन हटाने के लिए पुलिस की कार्रवाई में कम से कम दो प्रदर्शनकारियों की जान चली गई और कई घायल हो गए. कार्रवाई में कई पुलिसकर्मी भी घायल हो गए. इसके बाद गुस्साए प्रदर्शनकारी गृह मंत्री ज़ियाउल हसन लंजर के घर में घुस गए, घर में आग लगा दी. एयर कंडीशनर्स को छत से नीचे फेंक दिया. जब कई निजी सिक्योरिटी गार्ड वहां पहुंचे और हवा में गोलियां चलाईं तो ये भीड़ वहां से तितर बितर हुई. आगजनी इतनी भयानक थी कि उसका धुआं कई किलोमीटर दूर से दिख रहा था.
सिंध इलाके में अर्द्धसैनिक बल तैनात
गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने कई ट्रकों को लूट लिया. यूरिया से भरे एक ट्रक से यूरिया की बोरियां नीचे फेंक दी. कई लोग इन बोरियों को मोटरसाइकिलों पर लेकर निकल गए. यही नहीं एक तेल टैंकर समेत कम से कम तीन गाड़ियों में आग लगा दी. सिंध में सत्तारूढ़ पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता बिलावल भुट्टो ज़रदारी ने हमले की आलोचना करते हुए इसे आतंकी कार्रवाई बताया और सख़्त कार्रवाई की बात कही. इस घटना के बाद पाकिस्तान सरकार ने सिंध इलाके में सुरक्षा बढ़ा दी है. ऐसी हिंसा और आगजनी को रोकने के लिए अर्द्धसैनिक बलों को अलग अलग इलाकों में तैनात कर दिया है.
आम जनता का विद्रोह झेल रही पाकिस्तान
अब सवाल ये है कि बलूचिस्तान, ख़ैबर पख़्तून ख़्वाह और गिलगित बाल्टिस्तान में आम जनता का विद्रोह झेल रही पाकिस्तान सरकार का सिंध प्रांत में ये विरोध क्यों तेज हो गया है. तो इसकी फौरी वजह है पानी. पानी की किल्लत जो सिंध के लोगों को बीते कई साल से परेशान कर रही है. उनका आरोप रहा है कि सिंधु नदी घाटी से जुड़ी नदियों के पानी का बड़ा हिस्सा पंजाब प्रांत इस्तेमाल करता है और सिंध के साथ इस मामले में भेदभाव होता रहा है. उनके इस गुस्से की ताज़ा वजह है पाकिस्तान सरकार का एक विवादित प्रोजेक्ट जो सिंध के हिस्से का और भी पानी छीन लेगा.
जनता को पाकिस्तान की सरकार और सेना पर भरोसा नहीं
दरअसल, पाकिस्तान सरकार ने एक महत्वाकांक्षी परियोजना बनाई है, जिसका नाम है ग्रीन पाकिस्तान इनिशिएटिव. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और पाकिस्तान के सेनाप्रमुख जनरल असीम मुनीर ने जुलाई 2023 में इस मुहिम को लॉन्च किया. इस प्रोजेक्ट को इन दोनों का ही ड्रीम प्रोजेक्ट माना जा रहा है. इसी साल फरवरी में इस परियोजना पर काम भी शुरू हो गया. हालांकि, इसके बाद हुए भारी विरोध के बाद 24 अप्रैल को इसे फिलहाल स्थगित करने का फैसला लिया गया. लेकिन सिंध की जनता को पाकिस्तान की सरकार और सेना पर भरोसा नहीं है.
अब आपको बताते हैं कि ये प्रोजेक्ट तैयार क्यों किया गया. इसके तहत लक्ष्य है पाकिस्तान के चोलिस्तान रेगिस्तान के लाखों एकड़ बंजर इलाके को बड़े पैमाने पर खेती लायक बनाना. ये है चोलिस्तान में वो प्रस्तावित फार्मलैंड यानी खेती का इलाका जिसे आप इन ग्रिड्स के अंदर देख सकते हैं. पाकिस्तान सरकार ने इस परियोजना के पीछे मुख्य मक़सद पाकिस्तान में खाद्य सुरक्षा को मज़बूत करना बताया है. लेकिन इसके लिए इस इलाके में काफ़ी पानी पहुंचाना होगा.
परियोजना के तहत चोलिस्तान रेगिस्तान तक पानी लाने के लिए छह नहरें बनाई जाएंगी. इनमें से पांच नहरें सिंधु नदी से निकाली जानी हैं और छठी नहर सतलुज नदी से. जो छह नहरें बनाई जानी हैं उनमें से सबसे प्रमुख है चोलिस्तान नहर. 176 किलोमीटर लंबी इस नहर की तीन शाखाएं बनेंगी. लेकिन चोलिस्तान रेगिस्तान के ठीक दक्षिण में पाकिस्तान का सिंध प्रांत है, जो पानी के लिए पहले ही तरस रहा है. सिंध के लोगों को डर है कि चोलिस्तान में पानी भेजे जाने के बाद उनके लिए पानी रह ही नहीं जाएगा जो पहले ही काफी कम है.
इन छह नहरों से करीब 48 लाख एकड़ इलाके में सिंचाई की योजना है. इस परियोजना में 3.3 अरब डॉलर का खर्च आएगा. जो पाकिस्तानी मुद्रा में क़रीब 945 अरब रुपए होता है. इस परियोजना के आलोचक मानते हैं कि इससे पाकिस्तान के पंजाब प्रांत को तो पानी की कोई किल्लत नहीं होगी. लेकिन दक्षिण में सिंध इलाके में पानी की किल्लत हो जाएगी. उनका मानना है कि इस परियोजना के लिए सिंध के लोगों से इजाज़त नहीं ली गई. ग्रीन पाकिस्तान इनिशिएटिव से पाकिस्तान की नदी प्रणाली पर दबाव और ज़्यादा बढ़ जाएगा जिसमें पहले से ही पानी की कमी रही है और जो पानी आता भी है उसका भी जमकर दोहन होता रहा है.
शहबाज़ शरीफ़ सरकार की मंशा पर यकीन नहीं
यही वजह है कि सिंध में सत्तारूढ़ पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी यानी पीपीपी और पाकिस्तान की संघीय सरकार के बीच इस मुद्दे को लेकर तीखा मतभेद है. पीपीपी शहबाज़ शरीफ के नेतृत्व में बनी पाकिस्तान सरकार में भी शामिल है. पीपीपी ही नहीं सिंध के तमाम अन्य राजनीतिक-सामाजिक संगठनों को डर है कि पाकिस्तान ग्रीन इनिशिएटिव के तहत छह नहरें बनाए जाने से सिंध तक पानी पहुंचना कम हो जाएगा. यही वजह है कि सिंध के लोग चाहते हैं कि इस परियोजना को स्थगित नहीं बल्कि रद्द कर दिया जाए. दरअसल, सिंध के लोगों को शहबाज़ शरीफ़ सरकार की मंशा पर यकीन नहीं है.
इसी मुद्दे को लेकर अप्रैल में भी भारी विरोध प्रदर्शन हुए थे, जिन्हें कुचलने के लिए पुलिस ने हिंसा का सहारा लिया. सिंध में लोगों ने परियोजना के विरोध में कराची बंदरगाह जाने वाले हाइवे को भी कई दिन बंद रखा जिससे क़रीब एक लाख ट्रकों के पहिए थम गए. इस परियोजना को सेना का समर्थन हासिल होने से भी सिंध के लोग परेशान हैं क्योंकि पाकिस्तान में सेना से ज़्यादा ताक़तवर कोई संस्था नहीं है. सिंध में ये विरोध सिर्फ़ शहरी इलाकों तक ही सीमित नहीं, सिंध के दूर दराज़ गांवों के लोग भी अपने खेतों के सूखने के डर से सड़कों पर उतरे हुए हैं. ये सिलसिला तब से ही जारी है जब से पाकिस्तान सरकार ने ग्रीन पाकिस्तान इनिशिएटिव के तहत छह नहरें बनाने का एलान किया. सिंध में सत्तारूढ़ पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी अपनी विधानसभा में एकमत से प्रस्ताव पास कर मांग कर चुकी है कि नहर परियोजना से जुड़ी सभी गतिविधियों पर फौरन रोक लगाई जाए.
वैसे ध्यान देने लायक एक खास बात ये है कि इन छह नहरों को बनाने की इजाजत जुलाई 2024 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने दी थी जो सिंध इलाके से ही हैं और सिंध में सत्तारूढ़ पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के सह अध्यक्ष हैं. लेकिन इस योजना ग्रीन पाकिस्तान इनिशिएटिव के पीछे मुख्य ताकत पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज और पाकिस्तान के सेनाप्रमुख जनरल असीम मुनीर हैं. इस परियोजना को 2030 तक पूरा किए जाने का लक्ष्य रखा गया है. पाकिस्तान में सिंधु नदी घाटी के पानी के बंटवारे का ज़िम्मा Indus River System Authority (IRSA) के हाथों में है, जिसे 1992 में बनाया गया था. जिसका मकसद था सिंधु के पानी का सभी चारों प्रांतों के बीच न्यायपूर्ण बंटवारा. IRSA में शामिल सिंध के प्रतिनिधि के विरोध के बावजूद अथॉरिटी ने इस साल फरवरी के महीने में ये सर्टिफिकेट जारी कर दिया कि चोलिस्तान नहर के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध है. सिंध के प्रतिनिधि ने ऐतराज जताते हुए कहा था कि इसके लिए सिंधु का पानी दिया जाएगा जो सिंध के साथ नाइंसाफी होगी. पाकिस्तान में सिंधु नदी घाटी के आंकड़े बताते हैं कि इस नदी घाटी में पानी का इस्तेमाल उसकी उपलब्धता से ज़्यादा हो रहा है और सिंधु नदी घाटी एक नाज़ुक दौर से गुज़र रही है, सिंचाई और पीने के पानी की मौजूदा जरूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं है.
साफ़ है पाकिस्तान में प्रांतों के बीच भी पानी को लेकर हमेशा से भेदभाव होता रहा है. अन्य संसाधनों की तरह पानी का भी सबसे बड़ा हिस्सा पंजाब प्रांत ले जाता है. वैसे भी सिंध को पहले से ही ख़ुद को दिए गए पानी से 20% कम पानी मिलता है. सिंध के साथ भेदभाव का हर तरह से विरोध हो रहा है. जैसे पाकिस्तान के एक सूफ़ी डांसर सत्तार ने सिंधु नदी के किनारे अपने ख़ास अंदाज़ में इस बात को उठाया कि सिंध के लोग पानी के अपने अधिकार के लिए उठें और लड़ें. सिंध के साथ भेदभाव को लेकर लोग अपने अपने तरीकों से विरोध पेश कर रहे हैं. वैसे सिंध के एक बड़े इलाके में इस साल भी सूखा पड़ने के आसार हैं. सिंध में औसत से 62% कम बारिश हुई है और बलूचिस्तान में औसत से 52% कम बारिश.
संयुक्त राष्ट्र की संस्था Food and Agriculture Organization (FAO) के मुताबिक पाकिस्तान दुनिया के सबसे water-stressed nations में से एक है यानी उन देशों में जहां पानी की कमी का संकट सबसे ज़्यादा है. क्लाइमेट चेंज इस संकट को और बढ़ाने वाला है. अब ये जान लेते हैं कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और खेती के बीच क्या रिश्ता है. तो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था काफ़ी हद तक खेती पर आश्रित है. पाकिस्तान की जीडीपी में खेती का योगदान 25% है और पाकिस्तान में 37% रोज़गार खेती से मिलता है. फिर भी पाकिस्तान में खाद्यान्न संकट पैदा हो रहा है. वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के मुताबिक पाकिस्तान की 37% आबादी को अब भी खाद्य सुरक्षा नहीं मिली है. 2022 में आई भयानक बाढ़ ने तो पाकिस्तान में खेती के इस संकट को और बढ़ा दिया. क्लाइमेट चेंज के दौर में मौसम की ये अनिश्चितता पाकिस्तान को और परेशान करने वाली है. इसीलिए ऐसे समय जब पाकिस्तान विदेशी कर्ज पर आश्रित है तो 2023 में पाकिस्तान को क़रीब 10 अरब डॉलर की खाद्य सामग्री आयात करनी पड़ी.
पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर फार्मिंग यानी खेती की योजना बनाई गई. इसी के लिए तैयार ग्रीन पाकिस्तान इनिशिएटिव के तहत आधुनिक तरीके से खेती कर पाकिस्तान में दूसरी हरित क्रांति लाने का दावा किया जा रहा है. नई टैक्नोलॉजी और उपकरणों से कृषि क्षेत्र का कायाकल्प करने की योजना बनाई गई है. मिट्टी के टेस्ट से लेकर उन्नत बीजों तक के इस्तेमाल की योजना है. GPI के तहत कपास, गेहूं, कैनोला, सूरजमुखी, धान और दालों जैसी फसलें उगाने का लक्ष्य रखा गया है. इसके तहत 60 हज़ार लोगों को रोज़गार मिलने की भी बात है.
पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर मॉडर्न फार्मिंग बताते हुए इस परियोजना को बढ़ावा दे रहे हैं. हालांकि, है ये कॉर्पोरेट फार्मिंग. सेना के मालिकाना हक़ वाली कंपनी The Green Corporate Initiative (GCI) को बंजर ज़मीन को खेती लायक बनाने का ज़िम्मा सौंपा गया है. कंपनी अलग अलग बिज़नेस मॉडल्स के ज़रिए अगले 30 साल के लिए इस ज़मीन को लीज़ पर लेगी. इस योजना में देशी-विदेशी निवेश को लाने की भी तैयारी की जा रही है.
इसे खेती में भी सेना के एकाधिकार के तौर पर देखा जा रहा है. वैसे भी जमीनों को लेकर पाकिस्तान की सेना का प्यार बहुत पुराना है. कॉर्पोरेट फार्मिंग तो इसके लिए एक नया नाम बन गया है. इसी बहाने पाकिस्तान के चारों प्रांतों में सेना ने अलग अलग कंपनियां बनाकर लाखों एकड़ जम़ीन हथियाई हुई है. इनमें से काफ़ी ज़मीन सरकारी होती है और काफ़ी ज़मीन ग़रीब किसानों की होती है जिनका जबरन अधिग्रहण कर लिया जाता है.
कथित फार्मिंग ही नहीं पाकिस्तान में सेना का मुनाफ़े वाले हर क्षेत्र में दखल है. तेल, गैस उत्पादन, चीनी मिल, रियल एस्टेट डेवलपमेंट, हाउसिंग कॉलोनी, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, सिक्योरिटी सर्विसेस से लेकर सीमेंट, खाद उत्पादन से लेकर तमाम तरह की फैक्टरियों तक तक 50 से अधिक कंपनियां और संस्थाएं बनाकर सेना अपने कारोबार को अंजाम दे रही है.
फौजी फाउंडेशन, शाहीन फाउंडेशन, बहरिया फाउंडेशन, आर्मी वेलफेयर ट्रस्ट, डिफेंस हाउसिंग अथॉरिटी जैसी संस्थाएं भी बनाई गई हैं... यही नहीं इसके रास्ते में कोई अड़चन न आए इसके लिए पाकिस्तान में Special Investment Facilitation Council (SIFC) बनाई गई है जो बताती है कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में सेना का दखल कितना गहरा है.
पिछले साल पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली में एक बहस के दौरान एक आधिकारिक आंकड़ा पेश किया गया जो बताता है कि पाकिस्तान सेना जिन कंपनियों को चलाती है उनकी क़ीमत क़रीब 40 अरब अमेरिकी डॉलर के क़रीब है. इस तरह सेना पाकिस्तान का सबसे बड़ा बिज़नेस घराना बन जाती है. कुछ जानकारों ने तो कारोबार में पाकिस्तानी फौज की दिलचस्पी के लिए मिलिटरी और बिज़नेस को मिलाकर एक अलग शब्द ही गढ़ दिया है.
इसीलिए पाकिस्तान में माना जाता है कि सेना में अधिकारी बनना अमीर होने की गारंटी है. ऊपर से पाकिस्तानी सेना में होने वाला भ्रष्टाचार अमीर बनने के इस लालच को नई ऊंचाइयों पर ले जाता है. 2022 में पाकिस्तान की एक न्यूज़ वेबसाइट FactFocus ने Bajwaleaks नाम से एक इनवेस्टिगेटिव रिपोर्ट छापी थी जिसमें बताया गया था कि पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा के छह साल के दौर में उनके परिवार के लोग और अन्य रिश्तेदार अरबपति बन गए. उन्होंने 13 अरब डॉलर की संपत्ति बनाई. जनरल बाजवा के रिटायर होने से कुछ दिन पहले ही इस वेबसाइट ने 2013 से लेकर 2021 तक जनरल बाजवा के परिवार के लोगों के टैक्स रिटर्न और अन्य क़ागज़ात के हवाले से ये दावा किया गया. ये बताया गया कि कैसे इस दौरान अंतरराष्ट्रीय कंपनियां शुरू हुईं, विदेशों में प्रॉपर्टी ख़रीदी गईं, पैसा विदेश भेजा गया, इस्लामाबाद, कराची, लाहौर में बड़े फार्महाउस बना लिए गए.
ये रिपोर्ट जैसे ही सामने आई पाकिस्तान की सरकार ने टैक्स रिकॉर्ड से जुड़े दस्तावेज़ लीक होने की जांच का आदेश दे दिया. इससे इस रिपोर्ट की प्रामाणिकता और पुख़्ता हो गई. इसीलिए माना जाता है कि पाकिस्तान में जिन लोगों के पास सबसे अधिक संपत्ति है उनमें बड़े नेताओं के अलावा सेनाधिकारी भी आते हैं. आतंकियों को पालने वाली पाकिस्तानी सेना का ये चेहरा पाकिस्तान के आम लोगों से छुपा नहीं है.