इलाज के दौरान किशोरी की मौत, कोर्ट ने NMC और 2 सरकारी अस्पतालों से मांगा जवाब

हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए 16 जनवरी की तारीख निर्धारित की है. याचिका में, एनएमसी और डीमसी को मृतका की मां को 50 लाख रुपये का मुआवजा अदा करने का निर्देश जारी करने का भी अनुरोध किया गया है. चिकित्सकों की कथित लापरवाही और प्राधिकारों के कठोर रवैये को लेकर मुआवजे की मांग की गई है.

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दिल्ली हाईकोर्ट ने चिकित्सकीय लापरवाही को लेकर कई चिकित्सकों को जिम्मेदार ठहराने का अनुरोध करने वाली एक याचिका पर सोमवार को राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी), दिल्ली मेडिकल काउंसिल (डीएमसी) और दो सरकारी अस्पतालों से जवाब मांगा. यह याचिका 2019 में अपनी 15 वर्षीय बेटी की इलाज के दौरान मौत हो जाने पर एक महिला ने दायर की थी.

जस्टिस यशवंत वर्मा ने एनएमसी, डीएमसी, दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल और राव तुलाराम मेमोरियल अस्पताल को याचिका पर नोटिस जारी किया. याचिका में, प्राधिकारों के उस आदेश को भी रद्द करने का अनुरोध किया गया है, जिसमें इस निष्कर्ष पर पहुंचा गया था कि इन अस्पतालों में काम करने वाले चिकित्सकों ने स्वीकृत पेशेवर परंपरा के अनुसार काम किया था.

हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए 16 जनवरी की तारीख निर्धारित की है. याचिका में, एनएमसी और डीमसी को मृतका की मां को 50 लाख रुपये का मुआवजा अदा करने का निर्देश जारी करने का भी अनुरोध किया गया है. चिकित्सकों की कथित लापरवाही और प्राधिकारों के कठोर रवैये को लेकर मुआवजे की मांग की गई है.

महिला ने याचिका में कहा है कि वह अपनी बेटी को हल्का बुखार, बेचैनी और हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत होने पर नजफगढ़ स्थित एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले गई थी, जहां उसे ‘सेलाइन (लवणयुक्त घोल)' चढ़ाया गया.

इसमें कहा गया है कि लड़की की हालत बिगड़ने पर उसे जफरपुर स्थित राव तुलाराम मेमोरियल अस्पताल ले जाया गया. उसके बाद, वह उसे दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल रेफर कर दिया गया, जहां लड़की की मां के विरोध के बावजूद मरीज को फिर से ‘सेलाइन' चढ़ाया गया. इसके बाद, उसे आईसीयू में भर्ती किया गया और एक मई 2019 को उसकी मौत हो गई.

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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