दिल्ली की एक अदालत ने जहांगीरपुरी हिंसा मामले के संबंध में 18 वर्षीय आरोपी को जमानत देते हुए कहा कि वह ‘‘उम्र के नाजुक पड़ाव'' पर है और उसके खिलाफ जांच पूरी हो गयी है. उस पर एक पिस्तौल लेकर हिंसा में सक्रियता से भाग लेने का आरोप है. उस पर दंगा, हमला करने समेत विभिन्न अपराधों के लिए भारतीय दंड संहिता और शस्त्र अधिनियम के प्रावधानों के तहत आरोप लगाए गए हैं. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश स्मिता गर्ग ने कहा कि याचिकाकर्ता का कोई सीसीटीवी फुटेज नहीं मिला और घटना में इस्तेमाल हथियार पहले ही बरामद कर लिया गया है. अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को 16 अप्रैल 2022 को ‘चाइल्ड इन कनफ्लिक्ट लॉ' (सीसीएल) के तहत पकड़ा था तथा जमानत पर रिहा कर दिया गया था लेकिन उसे वयस्क पाए जाने के बाद दोबारा गिरफ्तार किया गया.
सीसीएल को ऐसे कानून के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसमें किसी बच्चे पर अपराध में शामिल होने का आरोप लगाया जाता है लेकिन वह उस अपराध के समय पूरे 18 साल का नहीं होता है.अदालत ने सात सितंबर के अपने आदेश में कहा, ‘‘उसकी जांच पूरी हो गयी है. मुकदमे में वक्त लगेगा. सभी तथ्यों और मामले की परिस्थितियों तथा उसकी नाजुक उम्र पर गौर करते हुए याचिकाकर्ता को 25,000 रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही राशि के मुचलके पर जमानत दी जाती है.''अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप है कि कांस्टेबल प्रीतम (चश्मदीद) ने दोषियों में से एक के तौर पर उसकी पहचान की है और उसने अपने हाथ में एक पिस्तौल लेकर हिंसा में सक्रियता से भाग लिया.
अतिरिक्त लोक अभियोजक पी के रंगा ने पहले जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि याचिकाकर्ता अवैध रूप से एकत्रित हुए लोगों की भीड़ में शामिल था और चश्मदीद, कांस्टेबल प्रीतम ने दंगे के दौरान उसमें भाग लेने वाले व्यक्ति के तौर पर उसकी पहचान की है.उन्होंने कहा था, ‘‘चूंकि इलाके में स्थिति अब भी तनावपूर्ण है अत: याचिकाकर्ता की जमानत पर रिहाई से हालात बिगड़ सकते हैं.''आरोपी की ओर से पेश हुए वकील के के शर्मा ने कहा कि वह निर्दोष है और उसे उन आशंकाओं के आधार पर मामले में गिरफ्तार किया गया कि वह दंगों में शामिल रहा होगा.
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