"हम चिमनी के पास बैठकर कॉफी पीते हैं, सैनिक बर्फीली हवाओं से ...": दिल्ली हाईकोर्ट

Delhi High Court: हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार की उन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह आदेश पारित किया, जिनमें दो पूर्व सैन्य अधिकारियों को विकलांगता पेंशन देने के सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के फैसले को चुनौती गई थी.

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दिल्ली हाईकोर्ट ने दो सैन्यकर्मियों को विकलांगता पेंशन के भुगतान से जुड़े आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया और इस बात को रेखांकित किया कि सैनिक अक्सर कठोर एवं दुर्गम परिस्थितियों में देश की रक्षा करते हैं तथा बीमारी एवं विकलांगता की आशंका देश सेवा की इच्छा के साथ “पैकेज डील” के रूप में आती है.

न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने 27 मार्च को पारित आदेश में देशभक्ति पर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी की “प्रेरक टिप्पणियों” को याद किया और कहा, ‘‘जब हम चिमनी के पास बैठकर गर्म कैपुचीनो (एक तरह की कॉफी) की चुस्कियां ले रहे होते हैं, तब सैनिक सरहद पर बर्फीली हवाओं से जूझ रहे होते हैं और एक पल में अपनी जान की कुर्बानी देने के लिए तैयार रहते हैं.”

पीठ ने कहा, “इसलिए, बीमारी और विकलांगता की आशंका, देश सेवा की इच्छा और दृढ़ संकल्प के साथ एक ‘पैकेज डील' के रूप में आती है. जिन परिस्थितियों में सैनिक राष्ट्र की सेवा करते हैं, उनमें सबसे बहादुर सैनिक के भी बीमारियों की चपेट में आने का खतरा रहता है, जो कभी-कभी उसे अपाहिज बनाने वाली प्रकृति की हो सकती हैं, जिससे वह सैन्य सेवा जारी रखने में असमर्थ हो जाता है.” पीठ में न्यायमूर्ति अजय दिगपॉल भी शामिल थे. पीठ ने आगे कहा, “ऐसी परिस्थितियों में राष्ट्र, सैनिक की ओर से की गई निस्वार्थ सेवा के बदले कम से कम उसे बचे हुए वर्षों में सांत्वना और सुकून तो प्रदान ही कर सकता है.” पीठ ने कहा, “राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी की ओर से अपने शपथ ग्रहण समारोह में की गई प्रेरक टिप्पणी कि ‘यह मत पूछो कि तुम्हारा देश तुम्हारे लिए क्या कर सकता है; यह पूछो कि तुम अपने देश के लिए क्या कर सकते हो', आज भी देशभक्ति और देशप्रेम के सभी मायनों का भव्य सारांश प्रस्तुत करती है.”

अदालत ने कहा, “ऐसे लोग भी हैं, जो इन शब्दों को अपने जीवन में आत्मसात कर लेते हैं और देश के लिए अपना सबकुछ कुर्बान करने को तैयार रहते हैं... जो उस समय सरहद पर बर्फीली हवाओं से जूझ रहे होते हैं और एक पल में अपनी जान की कुर्बानी देने के लिए तैयार रहते हैं, जब हम चिमनी के पास बैठकर अपनी गर्म कैपुचीनो की चुस्की ले रहे होते हैं. क्या राष्ट्र और उसके नागरिक के रूप में हम, मातृभूमि के इन सच्चे सपूतों को ऐसा कुछ भी दे सकते हैं, जो कभी भी बहुत अधिक हो सकता है?” पीठ ने कहा कि मानव शरीर, जो त्वचा और हड्डियों से बना है, हमेशा “आत्मा के साथ तालमेल रखने” में सक्षम नहीं होता और इसलिए कानून में उन सैनिकों को विकलांगता पेंशन जैसे वित्तीय लाभ प्रदान करने का प्रावधान किया गया है, जो किसी बीमारी या विकलांगता के शिकार हो जाते हैं, जिसकी उत्पत्ति या बढ़ने के लिए सैन्य सेवा जिम्मेदार होती है.

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हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार की उन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह आदेश पारित किया, जिनमें दो पूर्व सैन्य अधिकारियों को विकलांगता पेंशन देने के सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के फैसले को चुनौती गई थी. इनमें से एक अधिकारी 1985 में भारतीय सेना में भर्ती हुए थे, लेकिन 2015 में टाइप-2 मधुमेह के चलते उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था और विकलांगता पेंशन देने से इनकार कर दिया गया था.वहीं, दूसरे अधिकारी रक्षा सुरक्षा कोर से जुड़े हुए थे और उन्हें “उनके दाहिने पैर के निचले हिस्से की परिधीय धमनी के अवरुद्ध होने” के बावजूद विकलांगता पेंशन देने से मना कर दिया गया था.

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केंद्र ने अपनी याचिकाओं में दलील दी थी कि दोनों अधिकारी “पीस पोस्टिंग” पर थे और उनकी बीमारी उनकी सैन्य सेवा के कारण नहीं थी या उससे बढ़ी नहीं थी.“पीस पोस्टिंग” का मतलब कम अस्थिर क्षेत्रों में गैर-परिचालन भूमिकाओं में तैनाती से है, जिसमें युद्ध या उच्च जोखिम वाली तैनाती के विपरीत अक्सर प्रशासनिक, प्रशिक्षण या सहायक भूमिकाएं शामिल होती हैं.

हाईकोर्ट ने इस बात पर गौर किया कि दोनों मामलों में बीमारी की शुरुआत अधिकारियों की सैन्य सेवा के दौरान हुई थी और कहा कि केवल यह दलील देना कि वे “पीस पोस्टिंग” पर थे, रिलीज मेडिकल बोर्ड (आरएमबी) पर यह दिखाने का दायित्व डालने के लिए पर्याप्त नहीं है कि बीमारी के लिए सेवा जिम्मेदार नहीं थी.पीठ ने कहा कि यह सर्वविदित है कि मधुमेह की बीमारी तनावपूर्ण परिस्थितियों में रहने के कारण उत्पन्न हो सकती है या बढ़ सकती है. उसने कहा कि “पीस पोस्टिंग” के मामले में आरएमबी पर यह जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है कि वह बीमारी के कारण की पहचान करे और इसकी उत्पत्ति के कारक को दावेदार अधिकारी की सैन्य सेवा से अलग करे.

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पीठ ने कहा, “हम यह दोहराना चाहेंगे कि सैन्य कर्मियों को अपनी सेवा के दौरान विभिन्न प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है, और केवल यह तथ्य कि किसी बीमारी की शुरुआत उस समय हुई होगी, जब अधिकारी “पीस पोस्टिंग” पर था, निर्विवाद रूप से यह संकेत नहीं देता कि बीमारी सैन्य सेवा के कारण नहीं थी.” उसने कहा, “हम दोहराते हैं कि कुछ रोग और विकार ऐसे होते हैं, जो उत्पन्न तो हो चुके होते हैं, लेकिन उनके लक्षण उभरने में समय लग जाता है, जिससे ये देर में पकड़ में आते हैं.” पीठ ने कहा, “उपरोक्त सभी कारणों से, दोनों रिट याचिकाओं को खारिज किया जाता है और एएफटी की ओर से पारित आदेशों को पूरी तरह से बरकरार रखा जाता है.”

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