छावला गैंगरेप-मर्डर केस में बरी हुए 3 आरोपी, स्वाति मालीवाल ने उठाए ये सवाल

सुप्रीम कोर्ट के फैसले को 7 अप्रैल को सुनवाई के दौरान उसकी टिप्पणी से जोड़कर देखा जा सकता है. इसमें अदालत ने कहा था कि सजा भावनाओं के आधार पर नहीं दी जा सकती. यह तर्क और साक्ष्यों के आधार पर तय की जाती है.

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दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालिवाल ने भी अदालत के इस फैसले पर नाखुशी जाहिर की है.
नई दिल्ली:

 दिल्ली के निर्भया केस से भी पुराने छावला गैंगरेप-मर्डर केस में दोषी ठहराए जा चुके तीनों आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया है. दिल्ली की निचली अदालत ने तीनों आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई थी. दिल्ली हाईकोर्ट ने भी इस फैसले को बरकरार रखा था. कुछ एक्टिविस्ट सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर सवाल भी उठा रहे हैं और इसे शर्मनाक बताया जा रहा है. दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने भी अदालत के इस फैसले पर नाखुशी जाहिर की है.

स्वाति मालीवाल ने ट्वीट किया, '2012 में 19 साल की लड़की का दिल्ली में गैंगरेप और मर्डर हुआ. इस भयानक केस के दोषियों को हाई कोर्ट ने सज़ा-ए-मौत दी, पर सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया. ये वो केस है जिसमें लड़की की आंखों में तेज़ाब और प्राइवेट पार्ट में शराब की बोतल डाली गई थी. क्या इससे रेपिस्ट का हौसला नहीं बढ़ेगा?'

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पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से पता चला था कि दरिंदों ने लड़की के साथ हैवानियत की सारी हदें पार कर दी थीं. उसपर कार में मौजूद टूल्स से हमला किया गया था. दरिंदों ने गैंगरेप के बाद उसकी आंखों में तेजाब डाल दिया था. उसके प्राइवेट पार्ट में शराब की टूटी बोतल और मेटल की चीजें डाल दी गई थी.

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क्या है मामला?
 उत्तराखंड की पौड़ी निवासी 19 साल की पीड़िता दिल्ली से सटे गुरुग्राम के साइबर सिटी इलाके से काम के बाद दिल्ली के छावला इलाके में स्थित अपने घर लौट रही थी. आरोपियों ने उसके घर के पास से ही एक कार में उसे अगवा कर लिया था. उस समय वह घर नहीं लौटी तो उसके पिता ने उसकी तलाशी शुरू की. नजफगढ़ थाने में केस भी दर्ज हुआ था. इस घटना के तीन दिन बाद पीड़िता का शव बहुत बुरी अवस्था में हरियाणा के रेवाड़ी गांव की एक खेत से बरामद हुआ. पुलिस ने अपराध में शामिल तीन लोगों को गिरफ्तार किया और कहा कि एक आरोपी ने उसके द्वारा प्रपोजल ठुकराए जाने का बदला लिया था. हाई कोर्ट ने आरोपियों के लिए निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा था. आरोपियों ने सजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.

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सुप्रीम कोर्ट के फैसले को 7 अप्रैल को सुनवाई के दौरान उसकी टिप्पणी से जोड़कर देखा जा सकता है. इसमें अदालत ने कहा था कि सजा भावनाओं के आधार पर नहीं दी जा सकती. यह तर्क और साक्ष्यों के आधार पर तय की जाती है.

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