3 हजार रुपये ने दी ऐसी टेंशन कि दे दी जान; IAS बनने का सपना देखने वाली अंजलि की दास्तां

अकोला के गंगानगर की रहने वाली अंजलि के बड़े-बड़े सपने थे. उसे देश के लिए बहुत कुछ करना था. सिस्टम को सुधारना था, मगर सिस्टम ने उसकी जान ले ली. जानें क्यों दे दी उसने जान...

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UPSC पास करने का सपना हर मेधावी स्टूडेंट देखता है. माता-पिता और परिवार अपने होनहार के सपनों को पूरा करने के लिए पेट काट-काट कर दिल्ली के कोचिंग सेंटर में भेजते हैं. मगर UPSC को तैयारी कर रही अंजलि की आत्महत्या के मामले ने UPSC की तैयारी करने वाले छात्र-छात्रओं के लाखों परिवारों को हिला कर रख दिया है. UPSC की इस छात्रा ने डिप्रेशन में आकर आत्महत्या की. वह मकान के बढ़े हुए किराये से परेशान थी.

ओल्ड राजेंद्र नगर में हैं कई कोचिंग सेंटर

अंजलि का अधिकारी बनकर बत्तीवाली गाड़ी से चलने का सपना था, लेकिन सब सपने चकनाचूर हो गए. 23 जुलाई को एंबुलेस से आया उसका शव घरवालों को देखना पड़ा. अंजली अकोला के गंगानगर इलाके की रहने वाली थी. उसके पिता अनिल गोपालनारायण पुलिस विभाग में सिपाही हैं. दो साल पहले ही अंजलि दिल्ली पढ़ने आई, लेकिन बीते महीने 21 जुलाई को उसने ओल्ड राजिंदर नगर में अपने किराए के कमरे में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली.

सुसाइड नोट में यह लिखा

यूपीएससी का अंजलि का इस साल तीसरा प्रयास था. अंजली एक होनहार छात्रा थी. अंजली ने अपने सुसाइड नोट में लिखा, "पीजी और हॉस्टल के मालिक छात्रों से केवल पैसे लूट रहे हैं और हर छात्र इसे वहन नहीं कर सकता. पीजी और हॉस्टल के किराए कम होने चाहिए. पापा-मम्मी मुझे माफ कर देना. मैने बहुत कोशिश की डिप्रेशन से बाहर आने की, लेकिन यह संभव नहीं हो सका. मेरा सपना था कि पहली ही कोशिश में UPSC क्लियर करूं. मुझे पता है कि आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं है." इसी के साथ अंजलि ने सुसाइड नोट में एक स्माइल भी बनाई. अपने दोस्तों और परिवार वालों को धन्यवाद कहा, जिन्होंने हमेशा उसका साथ दिया. परिवार के मुताबिक उनके सब सपने चकनाचूर हो गए. 

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क्यों थी परेशान

अंजलि के साथ रहने वाली उसकी सहेली श्वेता ने बताया कि अंजलि बेसमेंट में 10 बाई 10 के कमरे में रहती थी, जिसका किराया 15 हजार से बढ़ाकर 18 हजार कर दिया गया था. इससे अंजलि परेशान थी. दिल्ली पुलिस के मुताबिक मामला उनके संज्ञान में है और कानूनी कारवाई की जा रही है. इस घटना से साबित होता है कि होनहार और देश का भविष्य कितनी तकलीफों को सहकर अपने सपने पूरे करने में लगे हैं, लेकिन संसाधनों की कमी और बढ़ती मांग के सामने वे बेबस हो जा रहे हैं.

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