Cryptocurrency से पर्यावरण पर क्या पड़ते हैं प्रभाव? क्यों क्रिप्टो माइनिंग पर उठते हैं सवाल? जानें

क्रिप्टोकरेंसी की मांग तेजी से बढ़ रही है, लेकिन इसके साथ ही इसके रेगुलेशन और पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर चिंताएं भी बढ़ी हैं. क्रिप्टोकरेंसी की माइनिंग होती है, जिसके लिए बहुत ज्यादा एनर्जी का इस्तेमाल होता है और यह पर्यावरण में कार्बन फुटप्रिंट छोड़ती हैं.

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Cryptocurrency Mining : क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग से पड़ता है पर्यावरण पर असर.

दुनिया भर में क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) की मांग तेजी से बढ़ रही है, लेकिन वित्तीय लेनदेन के एक तरीके के रूप में इसे व्यापक रूप से अपनाने को लेकर कई चिंताएं हैं. क्रिप्टोकरेंसी के रेगुलेशन को लेकर सवाल उठाए जाते हैं. यह पर्यावरण पर भी प्रभाव डालती है. क्रिप्टोकरेंसी में बिटकॉइन सबसे ज्यादा लोकप्रिय है, लेकिन बीते दिनों जब Tesla के फाउंडर इलॉन मस्क ने इसके पर्यावरणीय प्रभावों पर चिंता जताते हुए दूसरी क्रिप्टोकरेंसी Dogecoin को समर्थन दिया था, तो बिटकॉइन में काफी गिरावट देखी गई थी.

क्रिप्टोकरेंसी से पर्यावरण को नुकसान कैसे पहुंचता है?

इलॉन मस्क ने इसके पर्यावरणीय नुकसान के बारे में बात करते हुए कहा था कि एनर्जी यूसेज ट्रेंड (पिछले कुछ महीनों में) काफी ज्यादा है. मस्क का मतलब बिटकॉइन के माइनिंग पर खर्च होने वाली एनर्जी को लेकर था. क्रिप्टोकरेंसी की माइनिंग में हाई पावर्ड कंप्यूटरों का उपयोग होता है और इस प्रोसेस में काफी एनर्जी लगती है. ज्यादातर मामलों में यह प्रोसेस जीवाश्म ईंधन (fossil fuel), विशेष रूप से कोयले पर निर्भर करती है. डॉएच बैंक (Deutsche Bank) के विश्लेषकों का अनुमान है कि बिटकॉइन एक साल में लगभग उतनी ही बिजली का उपयोग करता है जितना यूक्रेन जैसा देश करता है. Digiconomist के अनुसार क्रिप्टोकरेंसी Ethereum एक साल में स्विट्जरलैंड जैसे देश के बराबर एनर्जी का उपयोग करती है.

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इन क्रिप्टोकरेंसी से जनरेट इलेक्ट्रिकल वेस्ट और कार्बन फुटप्रिंट भी एक अच्छी तस्वीर पेश नहीं करते हैं. Digiconomist की एक और रिपोर्ट के मुताबिक लक्ज़मबर्ग एक साल में जितना ई-वेस्ट जनरेट करता है उतना ही ई-वेस्ट बिटकॉइन भी करता है. कार्बन फुटप्रिंट की तुलना करें तो ये ग्रीस के बराबर है. Ethereum का फुटप्रिंट म्यांमार की एनुअल वैल्यू के बराबर है.

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पिछले छह महीनों में बदली माइनिंग की जॉग्रफी

हालांकि, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के नए आंकड़ों से पता चला है कि पिछले छह महीनों में माइनिंग की जॉग्रफी काफी बदल गई है. क्रिप्टोकरेंसी पर चीन की कार्रवाई इसकी एक वजह है. दुनिया के आधे से ज्यादा बिटकॉइन माइनर्स इस कार्रवाई के कारण कुछ ही दिनों में ऑफ़लाइन हो गए. डिजिटल करेंसी कंपनी Foundry के CEO माइक कोलियर ने CNBC से कहा था कि, 'यह माइनर्स को ऐसे विकल्प तलाश करने के लिए मजबूर करेगा जो रिनिवेबल हो.' यानी जिनका नवीनीकरण किया जा सके.

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कई एनर्जी एफिशिएंट विकल्प मौजूद

विकल्पों की बात करें तो बाजार में ऐसी कई क्रिप्टोकरेंसी मौजूद है जो बिटकॉइन, डॉजकॉइन और इथेरियम जैसी लोकप्रिय नहीं है लेकिन एनर्जी एफिशिएंट है. inquirer.net की एक रिपोर्ट के मुताबिक Nano एक ऐसी क्रिप्टोकरेंसी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसका काफी कम एनर्जी फुटप्रिंट है. यह इसलिए है क्योंकि बिटकॉइन की तरह इसकी माइनिंग नहीं की जाती है. यही वजह है कि इसका कार्बन फुटप्रिंट भी कम होता है जो ट्रांजैक्शन फीस को कम कर देता है.

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इसी तरह, हेडेरा हैशग्राफ (Hedera Hashgraph) एक और नो-माइनिंग क्रिप्टोकरेंसी नेटवर्क है जो कम कार्बन फुटप्रिंट और साथ ही कम ट्रांजैक्शन फी प्रोवाइड करता है. एक अन्य क्रिप्टोकरेंसी Cardano (ADA) है जो भी एनवायरमेंट फ्रेंडली मॉडल पर काम करती है.

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