दिवंगत माधवराव सिंधिया एक गंभीर नेता थे, लेकिन इसके साथ ही वह बहुत मजाकिया स्वभाव के व्यक्ति भी थे. मजाक के क्रम में एक बार उन्होंने भारत के बड़े क्रिकेट खिलाड़ियों को डराने के लिए ‘डकैती' का ‘खेल' भी रच दिया था. कांग्रेस के दिग्गज नेता एवं पूर्ववर्ती ग्वालियर राजघराने के वंशज ने जिन क्रिकेट खिलाड़ियों को डराने का स्वांग रचा था, उनमें सुनील गावस्कर, गुंडप्पा विश्वनाथ और इरापल्ली प्रसन्ना जैसे क्रिकेटर भी शामिल थे. इस घटना का जिक्र वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई की हाल में आई किताब ‘द हाउस ऑफ सिंधियाज: ए सागा ऑफ पॉवर, पॉलिटिक्स एंड इंट्रीग' में किया गया है. बात उस समय की है जब क्रिकेटरों को ग्वालियर में एक प्रदर्शनी मैच खेलने के लिए आमंत्रित किया गया था. किताब सिर्फ सिंधिया परिवार के इतिहास पर ही केंद्रित नहीं है, बल्कि यह सिंधिया परिवार की पीढ़ियों संबंधी राजमहल के भीतर की राजनीति, जन उत्सुकता और उनकी धारणाओं के बारे में भी है.
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किताब के अनुसार माधवराव कांग्रेस के लोकप्रिय नेता होने के साथ ही गोल्फ और क्रिकेट जैसे खेलों के प्रति भी काफी जुनूनी थे. किताब में कहा गया है कि घटना ग्वालियर में प्रदर्शनी मैच के दौरान उस दिन की है जब माधवराव ने अपने अतिथियों (क्रिकेट खिलाड़ियों) को शिवपुरी में शिकार (उन दिनों शिकार की अनुमति थी) पर ले जाने का निर्णय किया.
किदवई ने लिखा है, ‘‘जब खिलाड़ी रात में सोने चले गए तो आधी रात के समय उन्हें गोलियां चलने की आवाज सुनाई दी और उन्होंने खुद को ‘डकैतों' से घिरा पाया जो कह रहे थे कि वे उनका अपहरण कर लेंगे. सभी लोगों से जीपों में बैठने और अपना सारा सामान सौंप देने को कहा गया.' किताब के अनुसार, इस दौरान, विश्वनाथ और प्रसन्ना विशेषत: काफी हक्का-बक्का थे और वे चिल्लाकर कहने लगे कि वे भारतीय टेस्ट क्रिकेट टीम का हिस्सा हैं और देश को उनकी आवश्यकता है.
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‘‘डकैतों'' ने हालांकि, दिखावा करते हुए कहा कि उन्होंने क्रिकेट के बारे में कभी नहीं सुना. नाटक कुछ देर तक चला और अंत में खिलाड़ियों ने तब राहत की सांस ली जब उन्हें बताया गया कि ‘‘डकैत'' असल में माधवराव सिंधिया के कर्मचारी हैं और समूची घटना का स्वांग रचा गया है. इस दिलचस्प घटना को सिंधिया परिवार के मित्र एवं भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान दिवंगत मंसूर अली खान पटौदी ने भी याद किया था और टेलीविजन पर एक साक्षात्कार के दौरान कहा था कि मजाक के पीछे उनका और माधवराव का हाथ था.
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