दुनिया का वह क्रिकेटर जिसके लिए बदला गया क्रिकेट का नियम, एक हफ्ते में लगाता था चार शतक

Facts about Ricky Ponting: क्रिकेट में महान खिलाड़ियों की बात आती है तो पोंटिंग का नाम भी लिस्ट में होता है. पोंटिंग का उपनाम 'पंटर' था.

विज्ञापन
Read Time: 6 mins
Ricky Ponting: पोंटिंग का सफर भी रहा है काफी दिलचस्प
फटाफट पढ़ें
Summary is AI-generated, newsroom-reviewed
  • रिकी पोंटिंग ने 2012 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लिया.
  • पोंटिंग के नाम 27,483 रन और 71 शतक हैं, जो उन्हें तीसरा सबसे सफल क्रिकेटर बनाता है.
  • पोंटिंग ने 2003 और 2007 में लगातार दो वनडे विश्व कप जीते.
  • पोंटिंग की कप्तानी में ऑस्ट्रेलिया ने 34 विश्व कप मैचों में अपराजित रहकर इतिहास रचा था
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही? हमें बताएं।

Some interesting facts of Ricky Ponting: रिकी पोंटिंग (Ricky Ponting) विश्व क्रिकेट में एक ऐसा नाम है जिसने अपने खेल से क्रिकेट को काफी कुछ दिया है. क्रिकेट में महान खिलाड़ियों की बात आती है तो पोंटिंग का नाम भी लिस्ट में होता है. पोंटिंग का उपनाम 'पंटर' था. रिकी पोंटिंग ने 2012 में इंटरनेशनल क्रिकेट से संन्यास ले लिया लेकिन उनके नाम की गूंज आज भी विश्व क्रिकेट में सुनाई पड़ती है. पोंटिंग 2003 और 2007 में लगातार दो वनडे विश्व कप जीतने वाले कप्तान रहे हैं. रिकी पोंटिंग अपने करियर में  27,483 रन और 71 शतक बनाए, जिससे वह सचिन तेंदुलकर और कुमार संगकारा के बाद तीसरे सबसे सफल क्रिकेटर बने. पोंटिंग के करियर का सफर भी काफी दिलचस्प भरा रहा है. बचपन से ही पोंटिंग के अंदर महान क्रिकेटर बनने की क्षमता मौजूद थी. चलते हैं उस खास सफर पर ...

पोंटिंग के चलते बदला गया नियम, एक हफ्ते में लगाते थे चार शतक

रिकी पोंटिंग स्कूल के दिनों में बिना आउट हुए पूरे दिन बल्लेबाजी करते थे. पूरे सीजन तक अजेय रहते थे. इस बात को लेकर स्कूल के दूसरे खिलाड़ी परेशान रहने लगे. यहां तक की शिक्षक भी पोंटिंग की बल्लेबाजी को देखकर हैरान थे.ऐसे में अधिकारियों ने एक नया नियम पेश किया. बल्लेबाजों को 30 रन बनाने के बाद रिटायर होना पड़ेगा. स्कूल में बना यह नियम पोंटिंग के लिए और भी अच्छा था. पोंटिंग जानबूझकर हर ओवर की आखिरी गेंद पर एक रन ले लेते थे, ताकि स्ट्राइक रख सके और रन बना सके. जब वह आठवीं कक्षा में पढ़ते थे तो अपने स्कूल के दिनों में क्रिकेट खेलते हुए एक हफ्ते में चार शतक लगाते थे. बचपन से ही पोंटिंग के अंदर रनों की भूख थी. 

चाचा ग्रेग कैंपबेल भी थे क्रिकेटर

रिकी पोंटिंग का क्रिकेट के प्रति प्यार की शुरुआत उनके चाचा ग्रेग कैंपबेल से हुई, जिन्होंने 1989-90 में ऑस्ट्रेलिया के लिए टेस्ट क्रिकेट खेला था. पोंटिंग ने साल 1985 में मोब्रे अंडर-13 टीम के साथ अपना सफ़र शुरू किया और अगले साल तक वे नॉर्दर्न तस्मानिया जूनियर टूर्नामेंट में चार शतक बनाकर सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहे थे. उस उम्र में, यह स्पष्ट था कि यह बच्चा कुछ खास करने वाला है. 10वीं कक्षा पूरी करने के बाद, पोंटिंग ने एक साहसिक फैसला लिया, उन्होंने क्रिकेट पर पूरा ध्यान केंद्रित करने के लिए स्कूल छोड़ दिया.

Advertisement

इसके बाद उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई खेल संस्थान की क्रिकेट अकादमी में अपने खेल को निखारने में दो साल बिताए.  इसका फ़ायदा उन्हें बहुत जल्दी मिला. उन्हें अंडर-19 तस्मानिया टीम के लिए चुना गया और चैंपियनशिप में सिर्फ़ पांच मैचों में उन्होंने 350 रन बनाए. इस तरह के फ़ॉर्म को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता था. फिर इतिहास रचा गया, नवंबर 1992 में, मात्र 17 साल और 337 दिन की उम्र में शेफील्ड शील्ड मैच में तस्मानिया का प्रतिनिधित्व करने वाले सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बन गए. 

Advertisement

घरेलू क्रिकेट में भी किया धमाका

अपने पहले ही घरेलू सत्र में उन्होंने 781 रन बनाए और अगले साल 925 रन और भी ज़्यादा बनाए. इस तरह की निरंतरता को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता था, जिसके बाद उन्हें साल 1995 में ऑस्ट्रेलियाई टीम में शामिल किया गया. पोंटिंग ने इंटरनेशनल क्रिकेट में अपनी छाप छोड़ने में भी समय बर्बाद नहीं किया और श्रीलंका के खिलाफ़ अपने पहले टेस्ट मैच में 96 रन बनाए. शतक से सिर्फ़ चार रन दूर, लेकिन हर कोई पहले से ही समझ गया था कि पोंटिंग के रूप में विश्व क्रिकेट को क्या मिला है.

Advertisement

काफी कम समय में इंटरनेशनल क्रिकेट में छा गए थे पोंटिंग

1997 में एशेज में डेब्यू करने के बाद, रिकी पोंटिंग ने लगातार रन बनाने का सिलसिला शुरू कर दिया था. उन्होंने लीड्स में शानदार 127 रन बनाए और यह स्पष्ट हो गया कि यह बल्लेबाज सिर्फ़ प्रतिभाशाली ही नहीं था, बल्कि वह ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट का भविष्य है. साल 1999 आते-आते पोंटिंग के नाम पहले से ही 11 इंटरनेशनल शतक थे. उन्होंने उस साल के विश्व कप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और  खूब रन बनाए और ऑस्ट्रेलिया को ट्रॉफी जीतने में मदद की. 

Advertisement

कप्तानी में भी रचा इतिहास, ऑस्ट्रेलिया बना अजेय मशीन

साल 2002 में उन्हें वनडे की कप्तानी सौंपी गई और 2004 तक वे टेस्ट टीम की भी अगुआई कर रहे थे. यहीं से विश्व क्रिकेट के इस महान खिलाड़ी की महान शुरुआत हुई. पोंटिंग के नेतृत्व में ऑस्ट्रेलिया अजेय मशीन बन गया. भारत के खिलाफ़ 2003 के विश्व कप फ़ाइनल में उनकी शानदार 140 रन की पारी कमाल की थी. उस पारी ने अकेले ही ऑस्ट्रेलिया को लगातार दूसरा विश्व कप खिताब दिलाया और खेल के महान खिलाड़ियों में से एक के रूप में उनकी जगह पक्की कर दी. 1999 से 2007 के बीच, पोंटिंग ने उस टीम का नेतृत्व किया जिसे इतिहास की सबसे प्रभावशाली क्रिकेट टीम माना गया. आंकड़े भी इसकी पुष्टि करते हैं. 

- कप्तान के रूप में 2 विश्व कप (2003 और 2007)
- 34 विश्व कप मैचों में अपराजित
- 2006-07 में इंग्लैंड पर 5-0 से एशेज वाइटवॉश
- लगातार 16 टेस्ट जीत का रिकॉर्ड

आक्रमक कप्तान के तौर पर जाने गए

रिकी पोंटिंग का करियर सिर्फ़ शानदार प्रदर्शन तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि इसमें कई बार गर्मागर्मी के पल भी आए. उनके नाम कई कंट्रोवर्सी भी रही, कुछ ऐसी घटनाएं भी हुईं, जिन्होंने जुनून और विवाद भी जन्म दिया.सबसे चर्चित घटनाओं में से एक 2007-08 में भारत के खिलाफ़ सिडनी टेस्ट के दौरान हुई, जो पहले से ही तनाव से भरा हुआ मैच था.  एक समय पर, पोंटिंग ने अंपायर को सौरव गांगुली को आउट देने का इशारा किया, यह दावा करते हुए कि कैच साफ था. समस्या यह थी कि यह बिल्कुल भी स्पष्ट नहीं था. रिप्ले में पता नहीं चल रहा था. कई लोगों को लगा कि पोंटिंग के लिए इस तरह से हस्तक्षेप करना सही नहीं था.  इससे खास तौर पर भारतीय प्रशंसकों और मीडिया के बीच तूफ़ान मच गया था. 

हरभजन सिंह से भिड़ गए थे

साल 2007-08  सीरीज के दौरान ही हरभजन सिंह के साथ जानबूझकर कंधे टकराने की घटना हुई. दोनों पक्षों में गुस्सा भड़क रहा था, और इस पल ने पहले से ही उग्र सीरीज में ईंधन डालने का काम किया थी. भज्जी और पोंटिंग जब भी एक साथ खेले तो दोनों एक दूसरे पर तंज कसते ही नजर आए थे. 

Featured Video Of The Day
Himachal Pradesh में 13 दिन में 15 जगह फटे बादल, हर जगह तबाही ही तबाही | Uttarakhand | Uttarkashi
Topics mentioned in this article