छत्तीसगढ़ की 'गोदना' कला जिसके आगे नए ज़माने के टैटू भी लगते हैं फीके...

छत्तीसगढ़ की 'गोदना' कला जिसके आगे नए ज़माने के टैटू भी लगते हैं फीके...

टैटू (तस्वीर) से कईयों साल पहले से है छत्तीसगढ़ की गोदना कला..

रायपुर:

छत्तीसगढ़ की 'गोदना' कला जिसे देखकर आप कह सकते हैं कि आधुनिक ज़माने के टैटू इसी पुरानी कला का नया अंदाज है। गुज़रे ज़माने में आदिवासी तबके के लोग इसे अपने पूरे शरीर में गुदवाते थे लेकिन अब इसका अंदाज़ ज़रा बदल गया है, अब इस कला को कपड़े पर उतारा जाता है। साड़ियों व कपड़े पर बनने वाली गोदना कला पहले काफी सीमित थी, इसे सिर्फ घर की चीजों और पहनने के कपड़ों पर इस्तेमाल किया जाता था।

बीते वक्त में छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प विकास बोर्ड ने इस कला से जुड़े कलाकारों को बेहतर बाजार उपलब्ध कराया है। सरगुजा के गोदना आर्ट की पहचान अब विदेशों तक हो गई है। गोदना कला का प्रचार कर कलाकारों को बेहतर बाजार उपलब्ध कराया जा रहा है और कार्यक्रमों में उन्हें इसका प्रतिनिधित्व करने का मौका भी दिया जाता है।

टैटू के आगे छाया गोदना..

इन दिनों भारतीय अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले में स्टाल नंबर दो पर छत्तीसगढ़ की गोदना कला लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। छत्तीसगढ़ के स्टॉल पर मौजूदा दौर के टैटू को साड़ी पर गोदना कला के नाम से बनता देख कर लोगों में काफी उत्साह नजर आता है। व्यापार मेले में गोदना कला का यह कार्य छत्तीसगढ़ के अम्बिकापुर और जशपुर जिले से आई आदिवासी महिलाओं द्वारा बखूबी किया जा रहा है।

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

ऐसी ही एक कलाकार रामकली पावले अंबिकापुर जिले से है जो बताती हैं कि व्यापार मेले में अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है। साड़ियों पर गोदना कला से चित्रकारी करना काफी मेहनत का काम है और अब तक उन्होंने लगभग 60 हजार रुपये तक की गोदना साड़ियां बेच दी हैं। धीरे धीरे गोदना कला एक ब्रांड के रूप में स्थापित हो रहा है। जशपुर जिले से आई गोदना कलाकार सीमा भगत ने बताया कि युवा उनके बनाए गए स्टॉल-शॉल को काफी पसंद कर रहे हैं। उनके पास इस मेले में चादर, टेबल कवर, साड़ी आदि हैं, साड़ियां 10 हजार रुपये तक की कीमत की हैं।