विश्व रंगमंच दिवस (World Theatre Day 2019) या अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच दिवस (International Theatre Day) हर साल 27 मार्च को मनाया जाता है. विश्व रंगमंच दिवस (World Theatre Day) की स्थापना 1961 में इंटरनेशनल थियेटर इंस्टीट्यूट (International Theatre Institute) द्वारा की गई थी. उसके बाद से ही हर साल 27 मार्च को विश्वभर में रंगमंच दिवस मनाया जाता आ रहा है. यह दिन उन लोगों के लिए एक उत्सव है जो "थिएटर" के मूल्य और महत्व को देख सकते हैं और सरकारों, राजनेताओं और संस्थानों को जगाने का कार्य कर सकते हैं. इस दिन को मनाने का उद्देश्य दुनिया भर में रंगमंच को बढ़ावा देने और लोगों को रंगमंच के सभी रूपों के मूल्यों से अवगत कराना है. रंगमंच से संबंधित अनेक संस्थाओं और समूहों द्वारा इस दिन को विशेष दिवस के रूप में आयोजित किया जाता है. इस दिवस का एक महत्त्वपूर्ण आयोजन अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संदेश है, जो विश्व के किसी जाने माने रंगकर्मी द्वारा रंगमंच और शांति की संस्कृति विषय पर उसके विचारों को व्यक्त करता है. 1962 में पहला अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संदेश फ्रांस की जीन काक्टे ने दिया था. वर्ष 2002 में यह संदेश भारत के प्रसिद्ध रंगकर्मी गिरीश कर्नाड द्वारा दिया गया था.
भारत में रंगमंच का इतिहास
भारत में रंगमंच का इतिहास बहुत पुराना है. ऐसा समझा जाता है कि नाट्यकला का विकास सर्वप्रथम भारत में ही हुआ. ऋग्वेद के कतिपय सूत्रों में यम और यमी, पुरुरवा और उर्वशी आदि के कुछ संवाद हैं. इन संवादों में लोग नाटक के विकास का चिह्न पाते हैं. कहा जाता है कि इन्हीं संवादों से प्रेरणा ग्रहण कर लागों ने नाटक की रचना की और नाट्यकला का विकास हुआ. उसी समय भरतमुनि ने उसे शास्त्रीय रूप दिया. भारत मे जब रंगमंच की बात होती है तो ऐसा माना जाता है कि छत्तीसगढ़ में स्तिथ रामगढ़ के पहाड़ पर महाकवि कालीदास जी द्वारा निर्मित एक प्राचीनतम नाट्यशाला मौजूद है.
कहा जाता है कि महाकवि कालिदास ने यहीं मेघदूत की रचना की थी. इस आधार पर यह भी कहा जाता है कि अम्बिकापुर जिले के रामगढ़ पहाड़ पर स्तिथ महाकवि कालिदास जी द्वारा निर्मित नाट्यशाला भारत का सबसे पहला नाट्यशाला है. बता दें कि रामगढ़ सरगुजा जिले के उदयपुर क्षेत्र में है,यह अम्बिकापुर-रायपुर हाइवे पर स्तिथ है.
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