स्वामी विवेकानंद की फाइल फोटो
नई दिल्ली:
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था. भारत में उनका जन्मदिन राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है. विवेकानंद जी ऐसी महान शख्सियत थे कि युवा पीढ़ी हमेशा उनकी जिंदगी से प्रेरित होती रहेगी और उनसे कुछ न कुछ सीखती रहेगी. स्वामी विवेकानंद की जयंती के मौके पर हम आपको उनकी जिंदगी से जुड़ी ऐसी 5 बातें बता रहे हैं जिन्होंने उन्हें हमेशा-हमेशा के लिए अमर कर दिया. आप भी इन बातों को अपनाकर अपने फील्ड में सुपर सक्सेसफुल बन सकते हैं.
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1- जो भी करो पूरी शिद्दत से करो
स्वामी विवेकानंद का मानना था कि किसी भी काम को करते वक्त आपका पूरा फोकस उसी पर होना चाहिए. फोकस नहीं कर पाएंगे तो कुछ भी कर लें काम पूरा होगा ही नहीं. इसे लेकर एक बड़ा मजेदार प्रसंग है. स्वामी विवेकानंद अमेरिका में भ्रमण कर रहे थे. एक जगह से गुजरते हुए उन्होंने पुल पर खड़े कुछ लड़कों को नदी में तैर रहे अंडे के छिलकों पर बंदूक से निशाना लगाते देखा. किसी भी लड़के का एक भी निशाना सही नहीं लग रहा था. तब उन्होंने एक लड़के से बंदूक ली और खुद निशाना लगाने लगे. उन्होंने पहला निशाना लगाया और वो बिलकुल सही लगा. फिर एक के बाद एक उन्होंने कुल 12 निशाने लगाए और सभी बिलकुल सटीक लगे. लड़के दंग रह गए और उनसे पूछा, 'भला आप ये कैसे कर लेते हैं?' स्वामी विवेकानंद बोले, 'तुम जो भी कर रहे हो अपना पूरा दिमाग उसी एक काम में लगाओ. अगर तुम निशाना लगा रहे हो तो तम्हारा पूरा ध्यान सिर्फ अपने लक्ष्य पर होना चाहिए. तब तुम कभी चूकोगे नहीं. अगर तुम अपना पाठ पढ़ रहे हो तो सिर्फ पाठ के बारे में सोचो. मेरे देश में बच्चों को यही करना सिखाया जाता है.'
2- डर से भागो मत, उसका सामना करो
स्वामी विवेकानंद का कहना था कि डर से भागने के बजाए उसका सामना करना चाहिए. एक बार बनारस में वे दुर्गा जी के मंदिर से निकल रहे थे कि तभी वहां मौजूद बहुत सारे बंदरों ने उन्हें घेर लिया. बंदर उनके नजदीक आकर उन्हें डराने लगे. विवेकानंद जी खुद को बचाने के लिए भागने लगे, लेकिन बंदरों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा. पास खड़ा एक वृद्ध सन्यासी ये सब देख रहा था. उसने स्वामी विवेकानंद को रोका और बोला, 'रुको! उनका सामना करो.' विवेकानंद जी तुरंत पलटे और बंदरों की तरफ बढ़ने लगे. फिर क्या था सारे बंदर भाग गए. इस घटना से स्वामी जी को सीख मिली और कई सालों बाद उन्होंने एक संबोधन में कहा भी, 'यदि तुम कभी किसी चीज से भयभीत हो, तो उससे भागो मत, पलटो और सामना करो.'
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3- दूसरों के पीछे भागने के बजाए, अपनी मंजिल खुद बनाओ
स्वामी विवेकानंद हमेशा कहते थे कि सफलता पाने के लिए किसी दूसरे के पीछे भागने से कुछ हासिल नहीं होगा. सफलता तभी मिलती है जब आप अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए अपना रास्ता खुद ही बनाते हो. एक बार एक व्यक्ति स्वामी जी से बोला, 'काफी मेहनत के बाद भी मैं सफल नहीं हो पा रहा.' स्वामी जी बोले, 'तुम मेरे कुत्ते को सैर करा लाओ.' जब वह वापस आया तो कुत्ता थका हुआ था और उसका चेहरा चमक रहा था. स्वामी जी ने कारण पूछा तो उसने बताया, 'कुत्ता गली के कुत्तों के पीछे भाग रहा था, जबकि मैं सीधे रास्ते चल रहा था.' स्वामी जी बोले, 'यही तुम्हारा जवाब है. तुम अपनी मंजिल पर जाने के बजाय दूसरों के पीछे भागते रहते हो.'
4- पाने से ज्यादा बड़ा है देने का आनंद
स्वामी विवेकानंद जी का मानना था कि समाज के उत्थान में सभी को योगदान देना चाहिए. हमेशा अपना भला सोचने के बजाए किसी न किसी रूप में समाज को भी कुछ देना चाहिए. भ्रमण और भाषणों से थके हुए स्वामी विवेकानंद अपने निवास स्थान पर लौटे. उन दिनों वे अमेरिका में एक महिला के यहां ठहरे हुए थे. वो खुद अपना खाना बनाते थे. एक दिन वे भोजन की तैयारी कर रहे थे कि कुछ बच्चे पास आकर खड़े हो गए. बच्चे भूखे थे. स्वामी जी ने अपनी सारी रोटियां एक-एक कर बच्चों में बांट दी. महिला वहीं बैठी सब देख रही थी. आखिर उससे रहा नहीं गया और उसने स्वामी जी से पूछ ही लिया, 'आपने सारी रोटियां उन बच्चों को दे डाली, अब आप क्या खाएंगे?' स्वामी जी ने मुस्कुरा कर कहा, 'मां, रोटी तो पेट की ज्वाला शांत करने वाली वस्तु है. इस पेट में न सही, उस पेट में ही सही.' देने का आनंद पाने के आनंद से बड़ा होता है.
5- सादा जीवन जीना सीखें
स्वामी विवेकानंद हमेशा सादा जीवन जीने के पक्षधर थे. वह हमेशा भौतिक साधनों से दूर रहने के लिए दूसरों को प्रेरित करते थे. उनका मानना था कि कुछ हासिल करने के लिए आपको पहले चीजों का त्याग करना चाहिए और सादा जीवन जीना चाहिए. भैतिकवादी सोच आपको लालची बनाती है और इसी वजह से आप अपने लक्ष्य से भटक सकते हैं. एक बार जब स्वामी विवेकानन्द जी विदेश गए तो उनके भगवा वस्त्र और पगड़ी देख कर लोगों ने पूछा, 'आपका बाकी सामान कहां है?'
स्वामी जी बोले, 'बस यही सामान है'. तो कुछ लोगों ने व्यंग्य किया, 'अरे! यह कैसी संस्कृति है आपकी? तन पर केवल एक भगवा चादर लपेट रखी है.' इस पर स्वामी विवेकानंद जी मुस्कुराए और बोले, 'हमारी संस्कृति आपकी संस्कृति से भिन्न है. आपकी संस्कृति का निर्माण आपके दर्जी करते हैं, जबकि हमारी संस्कृति का निर्माण हमारा चरित्र करता है. संस्कृति वस्त्रों में नहीं, चरित्र के विकास में है.'
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1- जो भी करो पूरी शिद्दत से करो
स्वामी विवेकानंद का मानना था कि किसी भी काम को करते वक्त आपका पूरा फोकस उसी पर होना चाहिए. फोकस नहीं कर पाएंगे तो कुछ भी कर लें काम पूरा होगा ही नहीं. इसे लेकर एक बड़ा मजेदार प्रसंग है. स्वामी विवेकानंद अमेरिका में भ्रमण कर रहे थे. एक जगह से गुजरते हुए उन्होंने पुल पर खड़े कुछ लड़कों को नदी में तैर रहे अंडे के छिलकों पर बंदूक से निशाना लगाते देखा. किसी भी लड़के का एक भी निशाना सही नहीं लग रहा था. तब उन्होंने एक लड़के से बंदूक ली और खुद निशाना लगाने लगे. उन्होंने पहला निशाना लगाया और वो बिलकुल सही लगा. फिर एक के बाद एक उन्होंने कुल 12 निशाने लगाए और सभी बिलकुल सटीक लगे. लड़के दंग रह गए और उनसे पूछा, 'भला आप ये कैसे कर लेते हैं?' स्वामी विवेकानंद बोले, 'तुम जो भी कर रहे हो अपना पूरा दिमाग उसी एक काम में लगाओ. अगर तुम निशाना लगा रहे हो तो तम्हारा पूरा ध्यान सिर्फ अपने लक्ष्य पर होना चाहिए. तब तुम कभी चूकोगे नहीं. अगर तुम अपना पाठ पढ़ रहे हो तो सिर्फ पाठ के बारे में सोचो. मेरे देश में बच्चों को यही करना सिखाया जाता है.'
2- डर से भागो मत, उसका सामना करो
स्वामी विवेकानंद का कहना था कि डर से भागने के बजाए उसका सामना करना चाहिए. एक बार बनारस में वे दुर्गा जी के मंदिर से निकल रहे थे कि तभी वहां मौजूद बहुत सारे बंदरों ने उन्हें घेर लिया. बंदर उनके नजदीक आकर उन्हें डराने लगे. विवेकानंद जी खुद को बचाने के लिए भागने लगे, लेकिन बंदरों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा. पास खड़ा एक वृद्ध सन्यासी ये सब देख रहा था. उसने स्वामी विवेकानंद को रोका और बोला, 'रुको! उनका सामना करो.' विवेकानंद जी तुरंत पलटे और बंदरों की तरफ बढ़ने लगे. फिर क्या था सारे बंदर भाग गए. इस घटना से स्वामी जी को सीख मिली और कई सालों बाद उन्होंने एक संबोधन में कहा भी, 'यदि तुम कभी किसी चीज से भयभीत हो, तो उससे भागो मत, पलटो और सामना करो.'
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3- दूसरों के पीछे भागने के बजाए, अपनी मंजिल खुद बनाओ
स्वामी विवेकानंद हमेशा कहते थे कि सफलता पाने के लिए किसी दूसरे के पीछे भागने से कुछ हासिल नहीं होगा. सफलता तभी मिलती है जब आप अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए अपना रास्ता खुद ही बनाते हो. एक बार एक व्यक्ति स्वामी जी से बोला, 'काफी मेहनत के बाद भी मैं सफल नहीं हो पा रहा.' स्वामी जी बोले, 'तुम मेरे कुत्ते को सैर करा लाओ.' जब वह वापस आया तो कुत्ता थका हुआ था और उसका चेहरा चमक रहा था. स्वामी जी ने कारण पूछा तो उसने बताया, 'कुत्ता गली के कुत्तों के पीछे भाग रहा था, जबकि मैं सीधे रास्ते चल रहा था.' स्वामी जी बोले, 'यही तुम्हारा जवाब है. तुम अपनी मंजिल पर जाने के बजाय दूसरों के पीछे भागते रहते हो.'
4- पाने से ज्यादा बड़ा है देने का आनंद
स्वामी विवेकानंद जी का मानना था कि समाज के उत्थान में सभी को योगदान देना चाहिए. हमेशा अपना भला सोचने के बजाए किसी न किसी रूप में समाज को भी कुछ देना चाहिए. भ्रमण और भाषणों से थके हुए स्वामी विवेकानंद अपने निवास स्थान पर लौटे. उन दिनों वे अमेरिका में एक महिला के यहां ठहरे हुए थे. वो खुद अपना खाना बनाते थे. एक दिन वे भोजन की तैयारी कर रहे थे कि कुछ बच्चे पास आकर खड़े हो गए. बच्चे भूखे थे. स्वामी जी ने अपनी सारी रोटियां एक-एक कर बच्चों में बांट दी. महिला वहीं बैठी सब देख रही थी. आखिर उससे रहा नहीं गया और उसने स्वामी जी से पूछ ही लिया, 'आपने सारी रोटियां उन बच्चों को दे डाली, अब आप क्या खाएंगे?' स्वामी जी ने मुस्कुरा कर कहा, 'मां, रोटी तो पेट की ज्वाला शांत करने वाली वस्तु है. इस पेट में न सही, उस पेट में ही सही.' देने का आनंद पाने के आनंद से बड़ा होता है.
5- सादा जीवन जीना सीखें
स्वामी विवेकानंद हमेशा सादा जीवन जीने के पक्षधर थे. वह हमेशा भौतिक साधनों से दूर रहने के लिए दूसरों को प्रेरित करते थे. उनका मानना था कि कुछ हासिल करने के लिए आपको पहले चीजों का त्याग करना चाहिए और सादा जीवन जीना चाहिए. भैतिकवादी सोच आपको लालची बनाती है और इसी वजह से आप अपने लक्ष्य से भटक सकते हैं. एक बार जब स्वामी विवेकानन्द जी विदेश गए तो उनके भगवा वस्त्र और पगड़ी देख कर लोगों ने पूछा, 'आपका बाकी सामान कहां है?'
स्वामी जी बोले, 'बस यही सामान है'. तो कुछ लोगों ने व्यंग्य किया, 'अरे! यह कैसी संस्कृति है आपकी? तन पर केवल एक भगवा चादर लपेट रखी है.' इस पर स्वामी विवेकानंद जी मुस्कुराए और बोले, 'हमारी संस्कृति आपकी संस्कृति से भिन्न है. आपकी संस्कृति का निर्माण आपके दर्जी करते हैं, जबकि हमारी संस्कृति का निर्माण हमारा चरित्र करता है. संस्कृति वस्त्रों में नहीं, चरित्र के विकास में है.'
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