
जयशंकर प्रसाद की फाइल फोटो
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बचपन से ही थी साहित्य में रुचि
बागवानी करना भी था खासा पसंद
बनारस में ही हुई थी जयशंकर प्रसाद की मौत
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प्रसाद ने काशी के क्वींस कॉलेज से पढ़ाई की, लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने घर पर ही संस्कृत, उर्दू, हिंदी और फारसी की पढ़ाई शुरू की. उन्हें संस्कृत की शिक्षा प्रसिद्ध विद्वान दीनबंधु ब्रह्मचारी ने दी थी. जयशंकर प्रसाद बचपन में मिले माहौल की वजह से ही साहित्य में खासी रुचि लेने लगे थे. ऐसा कहा जाता है कि जब प्रसाद महज नौ वर्ष के थे, तभी उन्होंने 'कलाधर' नाम से एक सवैया लिख दी थी. उन्होंने वेद, इतिहास, पुराण और साहित्य शास्त्र की भी पढ़ाई की थी. जयशंकर प्रसाद के पिता बाबू देवी प्रसाद कलाकारों का सम्मान करने के लिए काफी विख्यात थे.
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खास तौर पर बनारस में उन्हें काफी सम्मानित पुरुष माना जाता था. यही वजह थी कि आम जनता काशी नरेश के बाद 'हर-हर महादेव' से देवी प्रसाद का स्वागत करती थी. जयशंकर प्रसाद के बारे में यह बात यह कम ही लोगों को पता है कि उन्हें लेखन के अलावा बागवानी और खान-पान में भी विशेष रुचि थी. लेखन की अगर बात करें तो उन्होंने काव्य-रचना ब्रजभाषा से शुरू की और धीरे-धीरे खड़ी बोली को अपनाते हुए इस तरह अग्रसर हुए कि खड़ी बोली के मूर्धन्य कवियों में गिना जाने लगे.
प्रसाद की रचनाएं दो वर्गो- 'काव्यपथ अनुसंधान' और 'रससिद्ध' में विभक्त हैं. उनके नाम 'आंसू', 'लहर' और 'कामायनी' जैसी प्रसिद्ध रचनाएं भी हैं. 1914 में उनकी सर्वप्रथम छायावादी रचना 'खोलो द्वार' पत्रिका इंदु में प्रकाशित हुई. 15 नबंवर,1937 को काशी में ही उनकी मृत्यु हो गई. वह उस समय 48 साल के थे. (इनपुट आईएएनएस से)
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