
अरुणिमा सिन्हा
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अरुणिमा सिन्हा को कुछ गुंडों ने चलती ट्रेन से फेंक दिया था
इस हादसे में अपना एक पैर गंवाना पड़ा और उनके दूसरे पैर में रॉड लगाई गई
अरुणिमा ने हार नहीं मानी और एवरेस्ट की सबसे ऊंची चोटी को फतह किया
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अरुणिमा का यह जुनून सिर्फ एक महिला के विश्व की सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ाई करने कहानी नहीं है, बल्कि उनके अटूट विश्वास की दास्तां है. अपने इसी विश्वास के दम पर उन्होंने निराशा के हाथों मजबूर होने के बजाए बड़ी मुश्किलों को पार कर अपनी सबसे बड़ी कमजोरी को सबसे बड़ी ताकत बनाने की हिम्मत दिखाई. अपने दर्द को पीछे छोड़ते हुए अरुणिमा ने अपना सफर केवल माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि इसके बाद अलग-अलग महाद्वीपों के पांच दूसरी चोटियों की भी चढ़ाई की. उनका मकसद अझब अंटार्कटिका की सबसे ऊंची चोटी 'एवरेस्ट: विंसन मासिफ' पर तिरंगा फहराने का है.

29 सालक की अरुणिमा के मुताबिक, ' मैं 2011 में एक दुर्घटना का शिकार हुई थी. मैं लखनऊ से दिल्ली जा रही एक ट्रेन के जनरल डिब्बे में सफर कर रही थी. कुछ गुंडों ने मेरे गले में पहनी सोने की चेन खींचने की कोशिश की और जब मैंने अपना बचाव करने का प्रयास किया, तो उन्होंने मुझे बरेली जिले में ट्रेन से बाहर फेंक दिया.' अरुणिमा बगल के ट्रैक से गुजर रही ट्रेन से टकरा गईं और फिर जमीन पर गिर गईं. इसके बाद क्या हुआ, उन्हें कुछ याद नहीं. उन्हें केवल इतना याद है कि होश आने के बाद उन्हें बहुत दर्द हो रहा था और इसका भी अहसास हुआ कि वह अपना एक पैर खो चुकी हैं और दूसरे पर गंभीर चोट लगी है.
उन्होंने कहा, 'मैं मदद के लिए चिल्ला रही थी, लेकिन आस-पास कोई नहीं था, जो मेरी मदद कर सकता. चूहे मेरे घायल पैर को कुतर रहे थे और सारी रात मैं दर्द से कराहती रही. मैंने गिना था, मेरे पास से 49 ट्रेन गुजरी थीं.' सुबह कुछ गांव वालों ने अरुणिमा को देखा और उन्हें पास के अस्पताल में लेकर गए, जहां डॉक्टरों को उनके एक पैर को काटना पड़ा और दूसरे पैर में रॉड लगाई. अरुणिमा ने कहा, 'उनके पास एनीस्थीसिया नहीं था और मैंने कहा था कि बिना एनीस्थीसिया दिए ही मेरे घायल पैर को ठीक करें. मैंने पूरा रात असहनीय दर्द को झेला था और इसलिए मैं जानती थी कि मैं ठीक होने के लिए कुछ और दर्द सह सकती हूं.'

एवरेस्ट से बड़ा है मेरा जुनून : अरुणिमा सिन्हा
इसके बाद, अरुणिमा को नई दिल्ली स्थित एम्स रेफर कर दिया गया, जहां वह करीब चार महीने तक एडमिट रहीं. यहीं पर उन्होंने तय किया कि वह माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करेंगी. अरुणिमा कहती हैं, 'मैं जब थोड़ा ठीक हुई, तो मैंने मीडिया में फैली अफवाहों के बारे में सुना. इसमें कहा जा रहा था कि मेरे पास ट्रेन का टिकट नहीं था और इसलिए, मैं ट्रेन से कूद गई. जब यह बात गलत साबित हुई तो कहा गया मैंने आत्महत्या करने के लिए ट्रेन से छलांग लगाई थी.'
उन्होंने कहा, 'मैं और मेरा परिवार पूरे जोर से विरोध कर रहा था कि ये सब झूठ है, लेकिन किसी ने हमारी बात नहीं सुनी. इसलिए, मैंने उन सभी लोगों को जवाब देने का सबसे सही तरीका चुना. मैंने फैसला किया कि मैं साबित कर दूंगी कि दुर्घटना से पहले मैं क्या थी और अब मैं क्या हूं.'
दुर्घटना के बाद जिस हालत में अरुणिमा थीं, उस हालत में हिल पाना भी मुश्किल होता है. लेकिन, असाधारण इरादों वाली अरुणिमा की कहानी कभी धैर्य न हारने वाले जज्बे की दास्तां साबित हुई. अरुणिमा ने कहा, 'आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि चलने की कोशिश के दौरान मुझे कितना दर्द हो रहा था, लेकिन जब एक इंसान किसी काम को करने की ठान लेता है, तो कोई भी दर्द और मुश्किल उसे रोक नहीं सकती.'

जहां एक ओर पूरी दुनिया उनके इरादों पर संदेह जता रही थी, उनके परिवार और खासकर उनके जीजा ओम प्रकाश ने उनकी हिम्मत बढ़ाई. 42 साल के ओम प्रकाश ने अरुणिमा को उनके लक्ष्य की ओर प्रेरित करने के लिए अपनी केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की नौकरी से इस्तीफा दे दिया. ओम प्रकाश कहते हैं, 'मैं उस रेलवे ट्रैक के हादसे से लेकर एवरेस्ट की चढ़ाई तक उनके हौसले को बढ़ावा देने के लिए हर दिन उनके साथ खड़ा रहा. यहां तक कि मैंने उनके साथ ट्रेनिंग ली और एवरेस्ट के आधार शिविर तक गया भी.'
जिन हालात में अरुणिमा थीं, उसमें लोगों को खड़े होने के लिए सालों लग जाते हैं, वहीं अरुणिमा केवल चार महीने में ही उठ कर खड़ी हो गईं. अगले दो साल उन्होंने एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाली पहली भारतीय महिला बछेंद्री पाल से ट्रेनिंग ली. उन्हें स्पॉन्सर मिले, उनकी यात्रा शुरू हुई और फिर वह दिन भी आया जब मंजिल फतह हुई.

अरुणिमा ने कहा कि इस कोशिश के दौरान उनके पैरों से खून बहता रहता था और अक्सर वह गिर भी जाती थीं. लोग उन्हें पागल कहते थे और उन्हें लगता था कि वह कभी अपने लक्ष्य में सफल नहीं हो पाएंगी. हालांकि, वे सभी उनके इरादों की मजबूती से अंजान थे. उन्होंने कहा, 'लोगों ने मेरी शारीरिक कमजोरी को देखकर अपनी राय बना ली, लेकिन मेरे अंदर के जुनून को नहीं देखा. किसी की परवाह किए बगैर मैंने अपने आपको समझाया कि मैं चल सकती हूं. मेरे असहाय पैरों को भी यह बात समझ आ गई.'
अरुणिमा ने अपने आर्टिफिशियल पैर के दम पर अब तक माउंट एवरेस्ट के अलावा, माउंट किलिमंजारो (अफ्रीका), माउंट कोजिअस्को (आस्ट्रेलिया), माउंट अकोंकागुआ (दक्षिण अमेरिका), कारस्टेन्ज पिरामिड (इंडोनेशिया) और माउंट एलब्रस (यूरोप) की चढ़ाई कर ली है. अंटार्कटिका में 'एवरेस्ट : विंसन मासिफ' की चढ़ाई से पहले अरुणिमा लद्दाख में ट्रेनिंग लेंगी. उन्होंने कहा, 'मैं दिसम्बर में विंसन मासिफ की चढ़ाई के लिए अंटार्कटिका जा रही हूं. यह सातवां शिखर है और एवरेस्ट के बाद सबसे मुश्किल भी.'

अरुणिमा दुनिया को सिर्फ यह बताना चाहती हैं कि अगर कोई शख्स लक्ष्य हासिल करने की ठान ले, तो कोई मुश्किल उसे नहीं रोक सकती. उन्होंने कहा, "जब मैं एवरेस्ट शिखर पर पहुंची तो मैंने चाहा कि मैं चीख कर दुनिया से कहूं कि देखो मैं विश्व के शीर्ष पर हूं जबकि किसी को विश्वास नहीं था कि मैं यह कर सकती हूं.'
अरुणिमा की इच्छा विकलांग लोगों के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय खेल अकादमी की स्थापना करने की है. उन्होंने कहा, 'इसके लिए मैंने कानपुर के पास उन्नाव में जमीन खरीद ली है. इमारत बनाने की जरूरत है जिसपर 55 करोड़ खर्च होंगे. लेकिन, यह एक पैर से माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने से अधिक मुश्किल नहीं होगा.' आपको बता दें कि अरुणिमा ने लखनऊ में 120 विकलांग बच्चों को गोद लिया है और हर संभव तरीके से उनकी मदद कर रही हैं.
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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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