आवास कंपनियों के प्रवर्तकों और बिल्डरों को कर्ज देने वाले बैंक और वित्तीय संस्थाएं नयी रेरा (RERA) यानी रियल एस्टेट नियममन एवं विकास अधिनियम, 2016 व्यवस्था में असुरक्षित महसूस कर रही हैं और उन्होंने अपने कर्ज़ की सुरक्षा को लेकर सफाई मांगी है. बता दें कि देश के हरक राज्य और केंद्रशासित प्रदेश को अपनी रेगुलेटरी अथॉरिटी बनानी होगी जो कानून के मुताबिक नियम-कानून बनाएगी. साल 2016 में संसद में पास हुए रियल एस्टेट (नियमन एवं विकास) अधिनियम, 2016 की सभी 92 धाराएं आज से प्रभावी हो रही हैं. (RERA) आज से अमल में : मकान खरीददारों के लिए राहत, बिल्डरों के लिए तनाव का सबब - 10 खास बातें)
रियल एस्टेट परियोजनाओं के लिए डेवलपरों को कर्ज देने वाले ये कर्जदाता महसूस करते हैं कि नये विनियामक ढांचे में उनकी भूमिका पर गौर नहीं किया गया है या इस मुद्दे पर अस्पष्टता है. सूत्रों करे हवाले से न्यूज एजेंसी भाषा ने कहा कि यदि बिल्डर अपने वादे पर खरा नहीं उतरता, तो उस स्थिति में ही चिंतिंत मकान खरीददारों की चिंताओं का इस कानून में समाधान किया गया है.
बैंक कर्जदारों से अपने वसूल नहीं होने वाले कर्ज की वसूली के लिए फिलहाल प्रतिभूति एवं वित्तीय संपत्तियों का पुनर्गठन एवं प्रतिभूति हित का प्रवर्तन अधिनियम को अंतिम उपाय के तौर पर इस्तेमाल करते हैं. बैंकिग जगत के सूत्रों ने संकेत दिया कि वे नियामक के सामने अपनी चिंताएं एवं आशंकाएं रखने के लिए प्रतिवेदन दे रहे हैं.
रेरा एक मई से लागू होना था लेकिन बस 13 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों ने नये नियम बनाए हैं. सूत्रों ने बताया कि महाराष्ट्र में वित्तीय संस्थाएं एवं बैंक इस संबंध में आगे चल रहे हैं. महाराष्ट्र ने रेरा सबसे पहले लागू किया है. रेरा में स्पष्ट कहा गया है कि सभी मौजूदा प्रॉजेक्ट्स का रजिस्ट्रेशन संबंधित राज्यों के रेग्युलेटरी अथॉरिटी में जुलाई 2017 तक हो जाना चाहिए. (न्यूज एजेंसी भाषा से भी इनपुट)