क्रयशक्ति के आधार पर दिल्ली में रहने वालों के लिए एपल का आईफोन-6 खरीदने का मतलब है कुल 360 घंटे की कमाई जेब से निकालना जबकि ज्यूरिख (स्विट्जरलैंड) में रहने वाले औसतन 20 घंटे की मेहनत से ही इस फोन को खरीद सकते हैं।
दिल्ली में आईफोन-6 खरीदने के लिए 360.3 घंटे काम करना होगा
वैश्विक वित्तीय कंपनी यूबीएस की ‘मूल्य एवं आय-2015’ रपट के मुताबिक, दिल्ली में लोगों को एक आईफोन-6 खरीदने के लिए 360.3 घंटे काम करने पड़ेंगे। दाम और काम का यह तीसरा सबसे ऊंचा अनुपात है। एक निश्चित क्रयशक्ति अर्जित करने के लिए काम के घंटों की दृष्टि पांचवें स्थान पर रखे गए मुंबई में आईफोन-6 का मतलब है 349.4 घंटे की कमाई।
उक्रेन निवासियों को करना होगा ज्यादा घंटे काम
इस रपट में दुनिया के 71 शहरों की तुलनात्मक क्रय शक्ति का आकलन किया गया है। वैश्विक स्तर पर 16 जीबी का आईफोन-6 खरीदने के लिए सबसे अधिक 627.2 घंटे की मेहनत उक्रेन के निवासियों को करनी पड़ेंगी। जिसके बाद जकार्ता (इंडोनेशिया), नैरोबी (केन्या) का स्थान है, जो 468 घंटे के साथ दूसरे स्थान पर हैं। काहिरा 353.4 घंटे के साथ चौथे स्थान पर है।
न्यूयॉर्क में 3 दिन से भी कम
इसके उलट ज्यूरिख और न्यूयार्क सिटी जैसे शहरों में लोगों ऐसा एक आईफोन खरीदने के लिए औसतन तीन दिन से भी कम काम करना पड़ेगा। इसी तरह बिग मैक (बर्गर) खरीदने के लिए हांगकांग औसतन नौ मिनट जबकि मुंबई में 40 मिनट और दिल्ली में 50 मिनट काम करना पड़ेगा।
नैरोबी में एक बर्गर खरीदने के लिए तीन घंटे काम करना होगा
इसके उलट नैरोबी के कामगारों को एक बर्गर खरीदने के लिए लगभग तीन घंटे काम करने पड़ेंगे। यूबीएस ने मूल्य और आय की तुलनात्मक रपट के लिए मैकडोनाल्ड के बिग मैक बर्गर और एपल आईफोन का उदाहरण इसलिए लिया है, क्योंकि ये उत्पाद विश्वभर में एक ही गुणवत्ता और स्वरूप में उपलब्ध हैं।
स्विट्जरलैंड के प्रमुख बैंक, यूबीएस के मुताबिक, वेतन स्तर से विश्व भर में होने वाली आय का संकेत मिलता है। जिन शहरों में अपेक्षाकृत ज्यादा सकल वेतन मिलता है, मसलन, ज्यूरिख, जिनीवा और लग्जमबर्ग में नैरोबी, जकार्ता और कीव के मुकाबले औसतन 19 गुना अधिक वेतन मिलता है।
इस बीच शुद्ध वेतन आय बढ़ने की संभावना का संकेतक है। काम की समान अवधि के लिए ज्यूरिख के एक कामगार को कीव के कामगार के मुकाबले 23 गुना अधिक वेतन मिलेगा। रपट के मुताबिक, यदि शुद्ध घंटावार वेतन को बेंचमार्क माना जाए तो भारत के दो शहर - नई दिल्ली और मुंबई - न्यूनतम क्रय शक्ति वाले 10 शहरों में सबसे नीचे हैं।
भारतीय ज्यादा अवधि तक करते हैं काम
रपट के मुताबिक, हालांकि, भारतीय कम क्रय शक्ति की भरपाई ज्यादा अवधि तक काम करके करते हैं। नई दिल्ली में कामगारों को सालाना 2,214 घंटे कड़ी मेहनत करनी पड़ती है और सिर्फ 26 दिन की छुट्टी मिलती है जबकि मुंबई में काम करने की अवधि 2,277 घंटे होती है और सालाना छुट्टी 21 दिन की। इसके अलावा विश्व भर में कामगार साप्ताह में 40 घंटे से अधिक काम करते हैं और डनहें 3.5 सप्ताह की वेतन सहित छुट्टी मिलती है।