सितंबर का महीना जीएसटी सुधारों के लिहाज से बेहद अहम है. आज यानी 3 सितंबर से जीएसटी काउंसिल की बैठक में टैक्स स्लैब को आसान बनाने और सिर्फ दो स्लैब यानी 5% और 18% पर लाने पर विचार किया जा रहा है. इसे GST 2.0 कहा जा रहा है.
माना जा रहा है कि यह कदम घरेलू खपत को बढ़ावा देगा और त्योहारी सीजन में मार्केट को सहारा देगा. हालांकि, ब्रोकरेज हाउस का मानना है कि इससे सरकार की टैक्स वसूली पर थोड़ा असर पड़ेगा.
खपत बढ़ेगी लेकिन राजस्व पर असर
ग्लोबल ब्रोकरेज मॉर्गन स्टेनली के मुताबिक, जीएसटी में बदलाव से कुल टैक्स कलेक्शन पर 50-60 बेसिस प्वाइंट यानी लगभग 0.3-0.4% जीडीपी तक का असर पड़ सकता है. वहीं एंटीक स्टॉक ब्रोकिंग का अनुमान है कि जीएसटी कलेक्शन में 5-6% की कमी आ सकती है. हालांकि, एनालिस्ट मानते हैं कि खपत में तेजी आने से जीडीपी पर नकारात्मक असर काफी हद तक कम हो जाएगा.
शेयर बाजार पर कैसा होगा असर?
NDTV Profit के साथ Exclusive बातचीत के दौरान कोटक महिंद्रा एएमसी के एमडी नीलेश शाह ने कहा कि अभी शेयर बाजार में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिलेगा. उन्होंने बताया कि अमेरिकी टैरिफ को फिलहाल शॉर्ट-टर्म माना जा रहा है, लेकिन अगर यूरोपियन देश भी इसमें शामिल होते हैं या नए प्रोडक्ट्स पर टैरिफ लगता है तो मार्केट में करेक्शन आ सकता है.
नीलेश शाह के मुताबिक, फिलहाल मार्केट का मूवमेंट इवेंट्स से तय होगा और लंबे समय के निवेशकों के लिए यह "Buy on Correction" वाली स्थिति होगी.
खपत से निवेश को मिलेगा सहारा
नीलेश शाह ने कहा कि जीएसटी सुधार 'एक पत्थर से कई निशान' जैसा होगा. इससे टैक्स स्ट्रक्चर आसान होगा, खपत बढ़ेगी और घरेलू मांग मजबूत होगी. यही नहीं, खपत बढ़ने से प्राइवेट निवेश (Private Investment) को भी मजबूती मिलेगी. उन्होंने कहा कि अभी निवेश धीमा है, लेकिन जीएसटी सुधार (GST Reform India) से कंपनियां कैपेक्स बढ़ा सकती हैं.
प्राइवेट कैपेक्स के लिए माहौल तैयार
नीलेश शाह का कहना है कि भारत में प्राइवेट कैपेक्स के लिए सभी जरूरी चीजें मौजूद हैं. बैंकिंग सिस्टम में लिक्विडिटी है, स्टॉक मार्केट रिकॉर्ड स्तर पर है, आईपीओ और OFS मार्केट में कैपिटल उपलब्ध है और कंपनियों की क्षमता उपयोग 75% से ज्यादा है. अगर जीएसटी सुधार खपत बढ़ाएंगे तो इससे निवेश में भी तेजी आएगी.
US टैरिफ के असर को कैसे करेगा ऑफसेट?
शाह का मानना है कि जीएसटी सुधार सही दिशा में कदम है, लेकिन अमेरिका के टैरिफ के असर से बाहर निकलने के लिए और भी कदम उठाने होंगे. भारत को नई टेक्नोलॉजी और रिसर्च-डेवलपमेंट में आत्मनिर्भर बनना होगा. ईज ऑफ डूइंग बिजनेस और डेटा लोकलाइजेशन जैसे कदम तुरंत उठाए जा सकते हैं, लेकिन लंबी अवधि में 5-10 साल का रोडमैप बनाना होगा.
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